13 मई 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
शालिनी जी, हमेशा की तरह, आपका एक और सार्थक लेख...शब्दनगरी संगठन आप सभी सुधी मित्रों के प्रति आभार व्यक्त करता है I विश्वास रखिए, आप सबका अथक श्रम अति शीघ्र इस वेबसाइट के पटल पर सुन्दर साज-सज्जा के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत होने को बिलकुल तैयार है I बस थोड़ी सी प्रतीक्षा करें I धन्यवाद !
14 मई 2015
samyik vishay par sarahniy post .badhai
13 मई 2015