29 मई 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
क्या खूब लिखा है शालिनी जी.इस सुन्दर रचना के लिए साधुवाद.
30 मई 2015
शालिनी जी, अत्यंत सुन्दर आलंकारिक भाषा का प्रयोग रचना को और भी उत्कृष्टता प्रदान कर रहा है....'ख' वर्ण का प्रयोग विशेष रूप से सुन्दर लगा...शब्दार्थ भी आपने दे दिये हैं....अति सुन्दर रचना प्रकाशित करने हेतु बधाई !
30 मई 2015
मियां-बीवी के रिश्ते की खासियत को दर्शाती आपकी ओर से शब्दनगरी पर पोस्ट रचनाओं में से निश्चय ही यह एक सर्वोत्तम रचना है शालिनी जी
30 मई 2015