6 मई 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
जैसा कि पुष्पा जी ने कहा।
9 मई 2015
समाजसुधार की आपकी अन्य रचनाओं की ही तरह आपकी यह रचना भी सटीक है
8 मई 2015
खुद जो नारकीय पीड़ा से गुजर रही है वो माँ ये ही चाहेगी की कोई दूसरी बेटी जो की एक महिला ही बनेगी उसको उस नरक की आग में न जलना पड़े इस अच्छे विचार की वजह से एक माँ बेटी नहीं चाहेेगी किन्तु यह गलत होगा की एक बेटी का जन्म न हो या जन्म से पहले उसकी हत्या कर दी जाय,... जन्म देकर उसे इस काबिल बनाना जरुरी होगा की वो ऐसे पुरुष जो की अन्यायी हैं उनका सामना करे और खुद कितनी सबल है ये बता दे न की इस तरह के भयंकर अत्याचार सहकर भी ऐसे गंदे स्वाभाव के इंसान के साथ ही रहे . एक माँ चाहे तो बेटी को बचा सकती है . .......मार्मिक तो है यह लेख पर इससे अधिक समाज की महिलाओं को जागरूक होने पर बल दिया गया है .. धन्यवाद शालिनी जी
7 मई 2015
bahut dukhad hai . sarthak aalekh .aabhar
6 मई 2015