10 जुलाई 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
sateek likha hai aapne .badhai
11 जुलाई 2015
शालिनी जी बहुत सटीक लिखा है आपने जिस तरह से आज हमारी जनसंख़्यां बढ़ रही है, उससे आगे बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा| काम से काम शिक्षित लोगो को तो अपनी जिमेदारी निभानी होगी... धन्यवाद
11 जुलाई 2015
विश्व जनसँख्या दिवस पर अत्यंत सार्थक लेख...बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! आभार !
11 जुलाई 2015
शालिनी जी, सर्वप्रथम विश्व जनसँख्या दिवस पर लेख प्रस्तुति हेतु अनेक धन्यवाद ! हमेशा की तरह लेख बहुत सटीक एवं सार्थक है। हम अपने अनेक मित्रों से यह आशा करते हैं कि देश-दुनिया के सरोकार से जुड़े ऐसे विषयों पर अवश्य लिखें और एक दूसरे की रचनाओं पर प्रतिक्रिया लिखकर उत्साहवर्धन अवश्य करें। आप सबका साथ न होता तो हम यहाँ तक नहीं आ पाते। हर मुद्दा जटिल है। एकजुट होने की बहुत ज़रूरत है। एकजुतता की यही शक्ति हमें किसी निर्णय तक पहुंचा सकती है। आपके लेख हेतु हार्दिक आभार !
11 जुलाई 2015
बिल्कुल सटीक लिखा है आपने जनसंख्या विस्फोट में शिक्षित-अशिक्षित रु़ढ़िवादियों का ही अधिक योगदान है
11 जुलाई 2015