7 अप्रैल 2015
115 फ़ॉलोअर्स
कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
अपराधी को सज़ा के प्रावधान के लिए आयु का हवाला देने का आधार ही ग़लत है. यदि ६५-७० साल का कोई व्यक्ति अपराध करे तो क्या उसके लिए कोई दूसरी सज़ा का प्रावधान किया जाये ? आपके विचारों से पूर्णतया सहमत हूँ.
9 अप्रैल 2015
जैसा कि शर्मा जी ने कहा।
9 अप्रैल 2015
बिल्कुल सही सुझाव। दुनियाभर के अपराधी, यहां तक के आतंकवादी संगठन भी किशोरों का उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं
8 अप्रैल 2015