18 जुलाई 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
agree with you .nice article .
20 जुलाई 2015
सच तो यही है जो आपने ब्यां किया है- वास्तविकता से भरपूर बहुत ही सुंदर रचना
19 जुलाई 2015
राजनीती में स्वीकार्यता समय के साथ बदलती है , मंच बदलते ही नया रूप सामने आने लगता है, कल क्या होगा किसको पता ?
19 जुलाई 2015
जो सच है सो कहा गया .. जिस दिन कोई भी बड़ा नेता बंगाल की राजनीति का उल्लेख करेगा श्री ज्योति बासु के लिए भी इन्ही शब्दों के प्रयोग करेगा .. लेकिन आवश्यकता होती है कि बदलते समाज में और आर्थिक सामजिक विकास के बीच उत्तराधिकारियों द्वारा उस व्यापकता को कायम रख पाना .. आज कि परिस्थितियों में जो राजनितिक बदलाव आये है ये सर्वमान्य व्यापकता खोने का ही परिणाम है .. भारतीय राजनीति में सभी बड़े राजनेताओं का सराहनीय योगदान रहा है . तभी आज तक भारत एकजुट होकर विकास कर पा रहा है .. सत्य को उल्लेखित करने से कोई हार या कोई जीत का जश्न नहीं होता .बस एक उदाहरण होता है उन नेताओं के लिए जिन्हे आज जनता ने स्वीकार किया है .. आपका आलेख अच्छा लगा किन्तु मैं अपने विचारों को व्यक्त करने से रोक नहीं पाया .. अगर गलत हो तो मेरा मार्गदर्शन अवश्य कीजियेगा ..
19 जुलाई 2015