22 मई 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
शालिनी जी, बहुत ही उम्दा, बेहतरीन ग़ज़ल प्रकाशित करने हेतु बधाई !
23 मई 2015
सुसाइड करने वालों के उत्साहवर्धन में लिखी गई यह कविता निःसंदेह एक मील का पत्थर साबित होगी। बधाइयाँ।
23 मई 2015
मूसा दौड़ा मौत से मौत आगे खड़ी। जिंदगी के सत्य का सटीक वर्णन किया है आपने लेकिन जिंदगी की भागमभाग अगर खत्म हो जाए तो जिंदगी जीने का मजा स्वत: समाप्त होने का भी तो डर है
23 मई 2015