13 जून 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
लोगों की सोच बदले तभी सकारात्मक परिवर्तन संभव हैं। सुन्दर एवं सार्थक लेख ! आभार !
16 जून 2015
sateek likha hai aapne .aabhar
14 जून 2015
बिल्कुल सटीक सुझाव क्योंकि इससे शादीयां तो सलीके से संपंन होंगी ही पुलिस का भ्रष्टाचार भी कम होगा ,पुलिसवाले खुशी का तोहफा पाएंगे और चोरी के प्रभावितों से यह कहकर पैसे तो नहीं मांगेंगे कि आप हमें कौन सा किसी शादी सम्रारोह में बुलाएंगे। समाज का तो हर किसी को डर है ही
14 जून 2015