4 जुलाई 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
बचपन से जुड़ा भयावह वानर सेना का संस्मरण रोमांचकारी भी है और थोड़ा सा दुखद भी...सैनिक आज भी है आपके भीतर, और वो सदैव रहना भी चाहिए। बचपन में कभी डरा होगा छोटा सैनिक, लेकिन आज वी किसी से नहीं डरता। ऐसे ही अन्य सुंदर संस्मरणों की प्रतीक्षा है।
6 जुलाई 2015
बचपन एक सुनहरा दौर है जीवन का इसकी मिठास कभी कम नही होती!!
5 जुलाई 2015
bahut sundar sansmaran .aabhar shalini ji .
5 जुलाई 2015
बचपन की यादों के पिटारे से निकला बहुत ही बढ़ियां जीवन वृत्तांत
5 जुलाई 2015
बचपन के दिन भुला ना देना शालिनी जी वो भी क्या दिन थे ...दादी कहती थी की सुबह- सुबह अगर वानर का नाम लिया तो दिन भर खाना नहीं मिलता ..
5 जुलाई 2015