3 अप्रैल 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
dahej pratha par kathhor prahar karti rachna hetu badhai
4 अप्रैल 2015
इस बार लेखनी, कविता की शक्ल में, और भी सुन्दर लगी, आभार,
4 अप्रैल 2015
बहुत सुंदर रचना दहेज के दानवों ने इतना अत्याचार फैला दिया है कि लोग उसके डर से अपनी नन्ही परी का गला गर्भ में घोट दिया जा रहा है।पता नहीं कब अन्त होगा इस दानव का।
4 अप्रैल 2015
दहेज़ के दानव ने हजारों घर बर्बाद किये, कई बेटियों की जाने ली अब तो इस सदी से दहेज़ की प्रथा को अपने देश से निकलना ही होगा और ये तब मुमकिन होगा जब आपकी कविता की बेटी ने किया... आज की बेटियों के लिए एक बड़ी सिख है आपकी कविता में ... बहुत बहुत धन्यवाद शालिनी जी ,.. हम सबसे शेयर के लिए ..
3 अप्रैल 2015
रचना दहेज की लाहनत पर हथौड़े समान वार करने वाली है। बहुत बढ़िया दहेज लोभियों का यही हश्र बनता है जो आपकी रचना दर्शा रही है। इसी से समाज में लड़का-लड़़की बराबरी का सिद्धांत भी लागु हो पाएगा।
3 अप्रैल 2015