30 जनवरी 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
बहुत खूब लिखा है। बहुत उम्दा
19 सितम्बर 2015
बहुत खूब लिखा है शालिनी जी !
19 सितम्बर 2015
शालिनी जी आपको पड़कर बहुत बहुत अच्छा लगा ........ रखे जो रंजिशें दिल में , कभी न वो बदलता है , भले ही अपने होठों पर , तबस्सुम ले के बैठे है . वाह .....बात में बहुत वज़न है
19 सितम्बर 2015
अति उत्तम
20 मार्च 2015
बहुत खूब .
23 फरवरी 2015
गुलूबंद को जो कानों से , लपेटे अपने बैठे हैं............इशारा साफ़ है कि किस पर यह व्यंग्योक्ति की गई है ?
7 फरवरी 2015
दिल तो दिल है चाहे वो किसी शायर का हो या किसी अधिवक्ता का
1 फरवरी 2015