21 जून 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
हिर्दय स्पर्शी रचना ...
25 जून 2015
बहुत सटीक महोदया घरौंदा बसाने के लिए तो तिनका-तिनका इकट्ठा करना पड़ता है किंतु उजड़ने में पल भी नहीं लगता
22 जून 2015
bahut khoob .badhai
22 जून 2015
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने.....बधाई !
22 जून 2015
कभी महफूज़ थे इन्सां,यहाँ जिस सरपरस्ती में , सरकते आज उसके ही ,हमें पांव दिख जाते हैं......बेहद उम्दा और सटीक भी ! बधाई !
22 जून 2015