15 जून 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
justice delayed is justice denied - सच है ये बात ... आपके इस लेख से सहमत हूँ .... शालिनी जी ....
16 जून 2015
sateek likha hai aapne .badhai
16 जून 2015
शलिनी जी, सबसे पहले आपको इस लेख के लिए अनेक धन्यवाद। आज का यह लेख आपसे मेरे विनम्र अनुरोध के उत्तर के रूप में प्राप्त हुआ है। आपके एक लेख पर टिप्पड़ी करते हुए मैंने एक न्यायिक फैसले का लिंक दिया था, ये उसके काफी नजदीक है। धारा 154 को लागू करने में क़ानून की मंशा तो निसंदेह अच्छी रही होगी लेकिन उसके पालन में बाधा बनने वालों की मंशा अच्छी नहीं रही, और आज तक न्याय में विलम्ब या न्याय मिलने के बाद भी हक़ न मिल पाने के असंख्य मामले चौंकाने वाले हैं। लेकिन ये तय है कि एक लंबे समय से चली आ रही समाज के लिए कोढ़ बनी समस्या बिना भारी संघर्ष के दूर नहीं होने वाली। आपके इस लेख हेतु आभार !
16 जून 2015