28 मार्च 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
बहुत उपयोगी जानकारी है
7 अप्रैल 2015
हमेशा की तरह एक और विधिक जानकारी, जो सबके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. आभार !
30 मार्च 2015
bahut achchhi vidhik jankari se yukt aalekh .aabhar
29 मार्च 2015
महोदया बतौर अधिवक्ता बहुत अच्छी विधिक जानकारी दी है आपने । अगर सभी अधिवक्ता आप की ही तरह इस तरह का दायित्व भारतीय भाषाओं में निभाएं तो भारत को विश्व शक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि भारतीय नीति निर्धारन में अधिवक्ताओं की महती भूमिका है तथा वे अपना अंग्रेजी ज्ञान आमजन तक नहीं पहुंचने देना चाहते।
29 मार्च 2015