18 मार्च 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
मानव को अपनी अज्ञानता का अहसास सबसे ज्यादा तभी होता है जब वह बहुत अधिक ज्ञान अर्जित कर लेता है पर धर्म के मामले में तो बुद्ध धर्म के अनुनाइयों की सहनशीलता तक भी जगजाहिर है?
24 मार्च 2015
बहुत ही सुन्दर लेख , शालिनी जी (प्रियंका - शब्दानगरी )
19 मार्च 2015
शिव प्रकाश जी, आपका तर्क स्वीकार्य है- धर्म से बड़ा 'मानवता का धर्म' है.
19 मार्च 2015
बेहतरीन तुलनात्मक प्रस्तुति
19 मार्च 2015
तार्किक व् सराहनीय आलेख .बधाई
18 मार्च 2015
जब तक विभिन्न मत रहेंगे तो उनके सिद्धांतो में परस्पर समानताओं और असमानताओं की जंग चलती रहेगी इसलिए मत मतांतरों को छोड़ मूल मानव धर्म का अनुसरण करना चाहिए क्यूंकि कोई गीता में बंध जाता है ,कोई कुरआन में , कोई गुरु ग्रन्थ में कोई बाइबिल में इससे आगे जाने के लिए धर्म ही उपाय है
18 मार्च 2015
मोक्ष जैन बुध और हिन्दुओ में है इस्लाम ईसाइयत में बाइबिल क़ुरआन में ऐसा कोई वाचक शब्द नही है वह जन्नत है जिसमे भोगने के लिए हुर्रे (कम उम्र की लडकिया ) शराब और दूध की नदिया , गिलमा (कम उम्र के लड़के ) आदि भोग सामग्री मिलेगी चाहे तो उनके सर्व मान्य ग्रन्थ से प्रमाण भी दे सकता हु
18 मार्च 2015
इसी तरह बुद्ध ,जैन ,चार्वाक मत इश्वर को नही मानते है ..
18 मार्च 2015
लेकिन धर्म तो एक ही होता है .. बाकी सब हिन्दू मुस्लिम मत है धर्म तो मानव का मानवता है ..जैसे नीबू का धर्म खट्टा पण ऐसे ही जो मनुष्य का धर्म है वो मानवता है ... मुस्लिमो का इश्वर एक है लेकिन वो सर्व व्यापक नही जन्नत के ७ वे आसमान पर है ..पौराणिक में इश्वर क्षीर सागर में ,,लेकिन वेदो में एक और सर्वव्यापक है .. मुस्लिमो में ईश दूत होते है यहाँ हिन्दुओ में दूत नही होते .. मुस्लिमो में इश्वर के साथ साथ शैतान ( इब्लिश ) , फ़रिश्ता (जिब्रील )और दूत मुहम्मद साहब को मानना आवश्यक है लेकिन हिन्दुओ में ऐसा नही है ..मुस्लिम पुनर्जन्म नही मानते लेकिन हिन्दू मानते है इस तरह काफी असमानताएं भी सभी मतो में है ..समानताओं से यही लगता है की एक मत से दूसरा मत बनाया गया है ...मतो का त्याग कर धर्म की और आना चाहिए मानवता की और
18 मार्च 2015