12 अप्रैल 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
बहुत सुन्दर शालिनीजी.आप बिटिया होकर ही तो समाज में एक अलख जगा रहीं हैं.आपकी इस मुहिम के लिए ये समाज और देश सदा ही आपका ऋणी रहेगा,आप कलम से नारी उत्थान के लिए लड़ते रहिये ,हम सब आप के साथ हैं.
15 अप्रैल 2015
महोदया जीवन देना और लेना तो भगवान ने अपने हाथ में रखा है,लेकिन वर्तमान में महिलाों की तरक्की देखकर अधिकतर परिवार बेटी की स्वेच्छा से उम्मीद रखते हैं। कुछेक पुरुषों की गलतियों का ठीकरा संपूर्ण श्रेणी पर नहीं फोड़ा जा सकता
13 अप्रैल 2015
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति शालिनी जी ............ आप नारी के विषय बहुत अच्छा लिखी . मैं भी भगवान से यही प्राथना करती हूँ की अगले जन्म में लड़की न बनाना ....
13 अप्रैल 2015
अच्छा एवं सार्थक लेख है.
13 अप्रैल 2015
अति सुन्दर एवं सार्थक लेख....अनेक धन्यवाद, आभार!
13 अप्रैल 2015
बहुत सार्थक लेख ... एक एक शब्द सटीक हैं शालिनी जी सब समझते हुए और जानते हुए भी( की नारी के बिना कीसी भी क्षेत्र में पुरुष सफल नहीं हो सकते उसे जरुरत रही ही है हर हाल में नारी की ) न जाने क्यों अब भी बराबरी का दर्जा समाज ने नारी को नहीं दिया आज भी समाज पुरुष प्रधान ही है .
12 अप्रैल 2015