आज के दौर में भले ही स्त्रियों ने अपनी काबिलियत से हर क्षेत्र में परचम लहराया हो, लेकिन फिर भी देश का माहौल उनके लिए आज भी सुरक्षित नहीं है। आज के समय में भी जब एक लड़की घर से निकलती है तो उसके वापिस लौट आने तक उसके माता-पिता को चिंता ही लगी रहती है। इतना ही नहीं, बहुत से क्षेत्र में माता-पिता अपनी लड़कियों को महज इसलिए नहीं जाने देते क्योंकि उसमें असमय काम करना पड़ता है और ऐसे में अभिभावक को लगता है कि अमुक क्षेत्र लड़की के लिए सुरक्षित नहीं है। यह सोच हर दिन महिलाओं के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार से ही उपजी है।
छह साल पहले चलती बस में निर्भया के साथ चलती बस में जिस तरह अमानवीयता की सारी हदें पार की गई, उससे पूरा देश आक्रोश से उबल चुका था। आज भी जब निर्भया केस की बात होती है तो दिल दहल जाता है। हालांकि उसके बाद महिलाओं की सुरक्षा हेतु कई नियम-कानून बनाए गए लेकिन आज भी चलती बसें महिलाओं के लिए किसी भी लिहाज से सुरक्षित नहीं है। इसका उदाहरण पिछले दिनों देखने को मिला, जब छावला थाना क्षेत्र में दो लड़कियों के साथ चलती बस में छेड़छाड़ की गई। इतना ही नहीं, जब लड़कियों ने बस को रोकने के लिए कहा तो उनसे कहा गया कि बस नियत स्टाॅप पर ही रूकेगी। हालांकि लड़कियों ने किसी तरह बस की गति थोड़ी कम होने पर बस से कूदकर खुद को बचाया। लेकिन इस घटना ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया कि देश की राजधानी में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सरकार कितनी मुस्तैद है। सड़कांे पर दौड़ती बसों व कारों में महिलाओं के प्रति होने वाली यौन हिंसा पर रोक लगाना अभी तक संभव नहीं हो सका है। वैसे यह महज एक किस्सा नहीं है। हर दिन अखबार में आपको महिलाओं के होने वाली बदसलूकी का कोई न कोई मामला देखने को मिल ही जाएगा।
पिछले दिनों, इसी संदर्भ में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भी प्रधानमंत्री के एक बयान को सच्चाई से बिल्कुल अलग बताया। इस बयान में प्रधानमंत्री ने महिला सुरक्षा और महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार मामले के दोषियों को 3 से 11 दिनों में फंासी देने की बात कही थी। बकौल मालीवाल, प्रतिदिन देश की राजधानी में ही बलात्कार की छह से अधिक वारदातें होती हैं और बलात्कारियों को जल्द सजा नहीं मिलती है। करीब छह साल पहले निर्भया के साथ निर्दयतापूर्वक किए गए बलात्कार में भी आज तक उसके दोषियों को फांसी नहीं मिली है। आए दिन महिलाओं के साथ छेड़छाड़, हत्या और बलात्कार जैसी आमानवीय घटनाएं होती रहती है। आलम यह है कि इस दरिंदगी का शिकार छोटी बच्चियों से लेकर बूढ़ी महिलाएं तक होती हैं।
भले ही सरकारों ने महिला और बच्चियों की सुरक्षा के लिए कई तरह के वादे किए हों लेकिन आंकड़ें कुछ और कहानी ही बयां करते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार, बलात्कार के मामलों में साल 2012 के मुकाबले 2016 में बढ़ोतरी हुई है। साल 2012 में जहां ये बच्चियों के साथ बलात्कार के 8,541 मामले सामने आए, वहीं 2016 में यह आंकड़ा बढ़कर 19,765 हो चुका था। अर्थात, ये आंकड़े पहले के मुकाबले दोगुने हो गए थे। इसमें भी देश की राजधानी की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। यहां पर महिलाओं के प्रति होने वाले क्राइम में कोई कमी नहीं है। दिल्ली में भी साल 2011 से 2016 के बीच महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में 277 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। साल 2011 में जहां दिल्ली में इस तरह के 572 मामले दर्ज किये गए थे, वहीं साल 2016 में यह आंकड़ा 2155 रहा। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर एक घंटे में 4 रेप होते हैं। वहीं दिल्ली को एनसीआरबी द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर पहले ही बताया जा चुका है ।
विकास के पथ पर अग्रसर होते हुए अगर महिलाओं की सुरक्षा पीछे छूट जाए, तो उस विकास का कोई वास्तविक लाभ नहीं है। आज महिलाएं भले ही हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं, लेकिन घर से निकलने के बाद ही उनके व उनके परिवारजन के मन में एक अजीब सा तब तक डर रहता है, जब तक स्त्री सही सलामत घर वापिस लौटकर नहीं आती। इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता है।
अगर वास्तव में महिलाओं के साथ होने वाले दुव्र्यवहार पर रोक लगानी है तो यह आवश्यक है कि देश में पुलिस संसाधनों और उसकी जवाबदेही को बढ़ाया जाए। इसके साथ ही देश में ऐसी व्यवस्था कायम करनी होगी ताकि लोगों के बीच ऐसे घिनौने अपराध के प्रति डर पैदा हो। यह जरूरी है कि हर हाल में दोषियों को जल्द से जल्द सजा हो, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है कि महिलाओं के प्रति होने वाली छेड़छाड़, पीछा करना या बलात्कार जैसी घटनाएं हो ही नहीं। वहीं महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए सभ्य समाज के लोग भी इसके प्रति थोड़े जागरूक व जिम्मेदार हों। अगर लोग किसी भी महिला के साथ कुछ भी गलत होने पर आवाज उठाते हैं तो यकीनन एक बड़े अपराध को होने से पहले ही रोका जा सकता है।
इतना ही नहीं, उन कमियों पर भी गौर किया जाए, जिसके कारण महिलाओं के साथ इस तरह की दुर्घटनाएं होती हैं। मसलन, सड़कों पर दौड़ती बसों व आॅटो आदि में महिलाओं की सुरक्षा की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। भले ही सार्वजनिक परिवहन की गाड़ियों में जीपीएस लगने लगे हैं लेकिन अभी तक भी उनके जरिये गाड़ियों की मॉनिटरिंग का कोई ठोस तंत्र नहीं बन पाया है। इस पर भी व्यापक गौर करने की आवश्यकता है।