आदर्श नारी के गुण बखान करती कविता - ******************************************** @@@@@@@@ सुलखण नार @@@@@@@@ ************************************************************ घर -मन्दिर की जो हो देवी ,पूजे जिसको उसका भरतार | जीवन में ही स्वर्ग मिल जाए ,पाकर पत्नी सुलखण नार || जान हो जो अपने बच्चों की ,पति करे जिस पर जान निसार | घर को जो स्वर्ग बना दे ,वो कहलाती सुलक्षण नार || काया जिसकी कंचन जैसी ,माया जिसकी अपरम्पार | घर को जो मंदिर बना दे ,वो कहलाती सुलखण नार || कोयल सी वाणी जो बोले ,होता जिसकी हर बात में सार | बच्चों को हुनर सिखाने वाली , कहलाती सुलखण नार || जिसके दर्शन मात्र से ही ,आनन्द का नहीं रहता पार | ऐसी हर सुदर्शन नारी , कहलाती है सुलखण नार || घर दमकता जिसके दम से ,जीवन का हो जो आधार | जंगल को जो मंगल कर दे ,वो कहलाती सुलखण नार || मेहमान नवाजी देख जिसकी ,आते अतिथि बारम्बार | चीजें रखे जो सही ठौर पर ,वो कहलाती सुलखण नार || परम पवित्र दिल हो जिसका ,बहाती जो स्नेह की धार | दुर्जन को जो सज्जन करदे ,वो कहलाती सुलखण नार || रखे साफ दिल जो अपना ,रखे साफ़ अपना घर-बार | पारस जैसा गुण हो जिसमें ,वो कहलाती सुलखण नार || प्रवीण हो जो हर कला में ,देती हो जो सुख अपार | परिजन -सेवा शौक हो जिसका ,वो कहलाती सुलखण नार || इस धरा की सर्वोत्तम रचना ,करती है जो सपने साकार | दुःख में भी जो साथ निभाएं ,वो कहलाती सुलखण नार || भगवान् तो है कोरी कल्पना ,पर सुघड़ नारी होती साकार | वन्दन करता दुर्गेश भी उसको ,जो होती सुलखण नार ||