मिलेगी खुशी मुझे भी,
पर इंतज़ार रह गया,
मेहरबां होगी ज़िन्दगी कभी,
पर सिलसिला सा हो गया !
किससे कहूं अपनी आशा और उम्मीद
का फ़साना?
यहाँ तो हर शख्स, मुझसे बेगाना
हो गया ।
हँसते हैं छुपाकर दर्द, संभाला
है सबका जर्द,
पर मिलीं बस तन्हाईयाँ, इल्जाम
देकर मुझे बेदर्द ।
चाहे कोई कुछ भी कहे, ताने दे
या हँसे,
पर अब तो मेरी ही बारी है,
सपनों के सच होने में अब थोड़ी
ही इंतजारी है !
अलग चेहरा लगाकर क्यूं घूमते
हैं ऐ दोस्तों,
पता चल जायेगा तुम्हें भी इक
दिन,
जब गर्व से हर जुबां बोल
पड़ेगी;
अरे! ये तो इक निडर, बेबाक,
बेहद सफल,
“हर पल खोजती ज़िन्दगी के
संघर्ष की कहानी” है ।
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@ चंद्रेश विमला त्रिपाठी