19 दिसम्बर 2015
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पर्यटन-प्रशासन एवं प्रबंधन में यूजीसी-नेट उत्तीर्ण, एम.बी.ए. इन टूरिज्म-मैनेजमेंट(सीएसजेएम-कानपुर विश्वविद्यालय), मास्टर्स इन मास-कम्युनिकेशन(लखनऊ विश्वविद्यालय), दैनिक जागरण-यात्रा विभाग में बतौर लेखक (१ जून २००८ से १७ सितम्बर २०१५ तक ) ७ वर्ष, ३ माह एवं १७ दिन का कार्य-अनुभव, नई दिल्ली के प्रकाशकों द्वारा कुछ पुस्तकों का प्रकाशन जैसे - मैनेजिंग एंड सेल्स प्रमोशन इन टूरिज्म (अंग्रेज़ी), शक्तिपीठ (हिंदी) और फिल्म-पटकथा लेखन पर आधारित मौलिक गीतों युक्त हिंदी में लिखी पुस्तक- “देवी विमला”...एक साधारण भारतीय महिला की असाधारण कहानी, प्रख्यात गीतकार श्री प्रसून जोशी द्वारा एक प्रतियोगिता में चयनित सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक गीत शामिल, जागरण जोश के कवर पेज पर आल-एडिशन फोटो...D
<p><span lang="HI" style="font-size:16.0pt;line-height:115%;font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-fareast-font-family:Calibri;mso-fareast-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-ansi-language:EN-IN;mso-fareast-language:EN-US;mso-bidi-language:HI">माँ के लिए नहीं कभी </span></p><p><span lang="HI" style="font-size:16.0pt;line-height:115%;font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-fareast-font-family:Calibri;mso-fareast-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-ansi-language:EN-IN;mso-fareast-language:EN-US;mso-bidi-language:HI">दो सौ रूपयेकी साड़ी,</span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;">लेकिन वैलेंटाइनडे पर </span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;">पाँच सौ</span><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;"> रूपये का गुलाब ।</span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;">भौतिक तृष्णाओं का </span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;">ये सजीला गुलदस्ता है,</span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;">आजकल के प्रेम का </span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;">है अपना ही अन्दाज़ ।</span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;"><span lang="HI" style="font-size:16.0pt;line-height:115%;font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-fareast-font-family:Calibri;mso-fareast-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-ansi-language:EN-US;mso-fareast-language:EN-US;mso-bidi-language:HI">सप्ताह भर में दोस्तीसे </span></span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;"><span lang="HI" style="font-size:16.0pt;line-height:115%;font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-fareast-font-family:Calibri;mso-fareast-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-ansi-language:EN-US;mso-fareast-language:EN-US;mso-bidi-language:HI">प्यार तक का सफर,</span></span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;"><span lang="HI" style="font-size:16.0pt;line-height:115%;font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-fareast-font-family:Calibri;mso-fareast-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-ansi-language:EN-US;mso-fareast-language:EN-US;mso-bidi-language:HI">शारीरिक <span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 21.3333px; line-height: 24.5333px;">क्षुधा के शमन को </span></span></span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%; font-family: Mangal, serif;"><span lang="HI" style="font-size:16.0pt;line-height:115%;font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-fareast-font-family:Calibri;mso-fareast-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-ansi-language:EN-US;mso-fareast-language:EN-US;mso-bidi-language:HI"><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 21.3333px; line-height: 24.5333px;">कम तो नहीं लगता है</span> ।</span></span></p><p><span lang="HI" style="font-size: 16pt; line-height: 115%;"><font face="Mangal, serif">पाक़ रूहानियत चाहिए </f
27 फरवरी 2016
Well said according to you all.
16 फरवरी 2016
यहां पर सभी लेख कॉपी पेस्ट है प्रेम का असल तात्पर्य ईश्वर से है अर्थात माता पिता से है उनको प्रेम करें बुढ़ापे में उनका सहारा बने यही सच्चा प्रेम है बाकी सुब यूजलेस :P
15 फरवरी 2016
<p>वास्तविक प्रेम किसे कहते हैं ?</p><br><p> ईश्वर को केवल प्रेम से प्राप्त किया जा सकता है। तुलसीदास जी ने भी भगवान शिव के मुख से कहलाया हैं </p><p>" हरि व्यापक सर्वत्र समाना प्रेमते प्रकट होई मैं जाना "</p><p> इसका अर्थ ये है कि ईश्वर तो सर्वत्र है लेकिन उसका साक्षात्कार प्रेम बिना असंभव है। प्रेम की परिभाषा तत्व की दृष्टि से "मैं" से परे हट जाना ही है। प्रेम को समझने के लिए तीन बातों को समझना आवश्यक है प्रेम में किसी प्रकार का क्रय विक्रय नहीं होता है। हम सोचते है कि ये व्यक्ति हमारा प्रेमी है इनसे हमें हर समय मदद की है या नहीं मैनें तो हमेशा इसकी मदद की है ऐसा सोचना भी प्रेम जगत में प्रेम को नहीं समझना है। प्रेमी तो अपने प्रेमी के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देता है उसके बदले में कोई चाह (इच्छा) नाम की बात ही नहीं होती है जैसे उदाहरण के तौर पर वीर हनुमान जी। प्रेम में पुरस्कार भी नहीं होता है न प्रेमी पुरस्कार चाहता है, न प्रशंसा, न किसी प्रकार का आदान प्रदान। यही सच्चे प्रेमी का लक्षण है। प्रेम तो सदा प्रेमी के लिए रोता है वह अपने प्रेमी का सच्चा उत्थान चाहता है जिसमें यदि स्वयं को भी हानि हो तो भी परवाह नहीं। </p><p> प्रेम का दूसरा तत्व है " भयवश प्रेम नहीं किया जाता है" भय वश प्रेम करना अधम का मार्ग है जैसे बहुत से लोग नरक के डर से भगवान से या हानि लाभ के डर से देवी देवताओं से प्रेम करते है। वह अधम मार्ग है। प्रेम में न तो कोई बड़ा होता है न कोई छोटा।</p><p> "प्रेम इसलिए करो कि परमात्मा प्रेमास्पद है।" </p><p> प्रेम का तीसरा तत्व "प्रेम में कोई प्रतिद्वंदता नहीं होती है।" सच्चा प्रेम उसी व्यक्ति से होता है जिसमें मन की शूरता, मन की सौंदर्यता और उदारता कूट-कूट कर भरी हो। सच्चा प्रेमी वह है जो अपने प्रेमी को जिताने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है स्वयं हार कर भी उसको जिताना चाहता है। </p><p> ये तीनों बातें जिस जीव या साधक में हो वही परमात्मा से सच्चा प्रेम कर सकता है क्योंकि प्रेम की वाणी मौन होती है तथा आँखों से जल बरसता है और हाथ अपने प्रेमी की सेवा करने के लिए तत्पर रहते है जैसे श्रीकृष्ण व सुदामा । प्रकृति तत्व व ईश्वर तत्व से उदाहरण स्वरुप श्री राधा व श्रीकृष्ण ! श्री राधे ने अपने लिए अपने आराध्य (श्रीकृष्ण) से कुछ नहीं चाहा केवल मात्र अपने आराध्य की इच्छा में अपनी इच्छा। प्रेम तभी सफल होता है जब अपने हृदय के अंदर प्रेमी के प्रति प्रतिद्वंदता,भय या आदान प्रदान रहित होकर प्रेमास्पद बन जाए तो वही प्रेम आनंदमय हो जाता है।</p>
12 फरवरी 2016
वास्तविक प्रेम एक ऊर्जा की भाति है जिसके अभाव में मानव जीवन अपूर्ण है ,अकल्पनीय है,ये दो आत्माओ को जोड़े रखता है .
5 फरवरी 2016
<p><span style="line-height: 18.5714px;">प्रेम तो बस प्रेम होता है | ये वास्तविक या अवास्तविक नहीं होता, या तो प्रेम है या नहीं है |</span></p><p style="color: rgb(34, 34, 34); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; line-height: normal;"><span style="color: rgb(51, 51, 51); font-family: 'Noto Sans', sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18.5714px;">प्रेम निस्वार्थ होता है | ये बिना किसी अपेक्षा के किया जाता है,,, प्रेम निश्छल होता है | जब हम प्रेम से भरे होते हैं तो सभी के लिये हमारे दिल में प्रेम भरे भाव होते हैं, सच पूछिये तो वही प्रेम होता है | जब किसी एक के लिये प्रेम व किसी अन्य के लिये दिल में नफरत भरी हो तो वो प्रेम का आभासी रूप होता है | हमें सिर्फ महसूस होता है कि हमारा प्रेम सच्चा है जबकी वो प्रेम होता ही नहीं है बल्कि सिर्फ आसक्ति होती है | प्रेम हमें श्रेष्ठ मानव बनाता है | इसमें त्याग व समर्पण की भाव भरपूर होते हैं | </span></p>
3 फरवरी 2016
प्रेम की वास्तविक परिभाषा यह पूरा संसार हे जिसके कारण आज हमारा अस्तित्व हे इस दुनिया में |
21 दिसम्बर 2015
वास्तविक प्रेम मानव मन की उत्कृष्ट अभियक्ति है या फिर कहें तो एक सुखद अहसास है प्रेम त्याग , समर्पण है , प्रेम वक्ती को विनर्म् बनाता है हम २० वि और २१ वि सदी के प्रेम की बात करें तो आज के इस अधुनिक् समय मैं किसी को किसी के लिय समय ही कहाँ है तो ये प्रेम की व्याख्या प्रासंगिक नहीं है । आज hum लोग भोतिक्त के इतने आदि हो चुके हैं की ये सभी बाटे मूर्खता पुर्वक् lagti है । प्रेम वय्क्ति को सहस देता है , शक्ति प्रदान करता है और हमें जिम्मेदार बनता है , प्रेम की भी कुछ मर्यादाएं है , प्रेम मैं गुस्से का कोई ेस्थान नहीं होता …… वैसे मुझे ग़ालिब साहब का एक शेर याद आता है ....इश्क् ने हमें कर दिया निकमा ग़ालिब वार्ना आदमी तो हम भी थे kam के । धन्यवाद
19 दिसम्बर 2015
<strong>वास्तविक </strong><strong>प्रेम </strong><strong>एक </strong><strong>ऐसी </strong><strong>भावना </strong><strong>है </strong><strong>जिससे </strong><strong>सुधा </strong><strong>रस </strong><strong>छलकती </strong><strong>है। </strong><strong>जो </strong><strong>व्यक्ति </strong><strong>प्रेम </strong><strong>धारण </strong><strong>कर </strong><strong>लिया </strong><strong>उसके </strong><strong>लिए </strong><strong>सभी </strong><strong>प्रिय </strong><strong>हो </strong><strong>जाते </strong><strong>हैं शत्रु</strong><strong> </strong><strong>कोई </strong><strong>नहीं </strong><strong>रहता। </strong><strong>वास्तविक </strong><strong>प्रेम </strong><strong>की भावना केवल </strong><strong>प्रेमी </strong><strong>या </strong><strong>प्रेमिका </strong><strong>के </strong><strong>लिए व्यक्तिगत </strong><strong>नहीं </strong><strong>होती </strong><strong>बल्कि </strong><strong>सार्वजनिक </strong><strong>हो </strong><strong>जाती है। </strong><strong>प्रेम </strong><strong>में </strong><strong>संलिप्त </strong><strong>होकर </strong><strong>व्यक्ति </strong><strong>अपना </strong><strong>सर्वश्व </strong><strong>अपने </strong><strong>प्रियतम </strong><strong>के </strong><strong>लिए </strong><strong>न्योछावर </strong><strong>कर </strong><strong>देता </strong><strong>है </strong><strong>सच्चे </strong><strong>प्रेम </strong><strong>में </strong><strong>स्वार्थ </strong><strong>की भावना</strong><strong> </strong><strong>नहीं होती।</strong>
19 दिसम्बर 2015