सर्व विदित है कि पांडवों को जुए में हारने के बाद बारह वर्ष का अज्ञातवास
भोगना पड़ा था| अज्ञातवास के दौरान एक बार सभी पांचों भाई और द्रौपदी घने जंगलों
में भटक रहे थे। भटकते हुए वे कैलास पर्वत के जंगलों में पहुंच गए। उस समय यक्षों
के राजा कुबेर का निवास भी कैलास पर्वत पर ही था। कुबेर के नगर में एक सरोवर था, जिसमें बहुत सुगंधित
कमल के फूल खिले थे। जब द्रौपदी को उन फूलों की महक आई तो उन्होंने भीम से कहा कि उनके
लिए वो कमल के फूल लायें| भीम द्रौपदी के लिए फूल लाने चल दिये। रास्ते में एक घना जंगल था। भीम ने देखा एक बंदर रास्ते पर पूंछ डाले सो रहा
है। चूंकि किसी जीव को लांघकर गुजर जाना मर्यादा के विरुद्ध था। इसलिए, भीम ने बंदर से कहा
अपनी पूंछ हटा लो, मुझे यहां से गुजरना है। बंदर ने नहीं सुना, भीम को क्रोध आ गया।
उसने कहा तुम मुझे नहीं जानते, मैं महाबली भीम हूं। बंदर ने कहा अगर आप इतने शक्तिशाली
हो तो आप खुद ही मेरी पूंछ रास्ते से हटा दो और गुजर जाओ। भीम ने बहुत कोशिश की, लेकिन पूंछ टस से मस
नहीं हुई। तब भीम हार मानकर बैठ गये और वानर से प्रार्थना करने लगे| तब वानर ने
अपना असली रूप दिखाया। वास्तव में वानर रूप में स्वयं पवनपुत्र हनुमानजी ने भीम के
घमंड को तोड़कर उन्हें सही सीख देने हेतु ऐसा किया था|