देवी राधारानी का नाम भगवान श्रीकृष्ण से पहले क्यों लिया जाता
है? क्यों हर मंदिर में राधा जी ही कान्हा के साथ विराजित होती हैं? इसके पीछे
बहुत सारी किंवदंतियाँ और पौराणिक मान्यतायें हैं| कहते हैं कि इन प्रश्नों को एक
बार जब नारद जी ने भी भगवान श्रीकृष्ण से पूछा तो उन्होंने कहा कि देवर्षि आप खुद
ही इस बात की परीक्षा कर लीजिये| इस पर नारद जी सहमत हो गए| द्वारका में नारद जी
के कहे अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के बहुत बीमार पड़ जाने की खबर आग की तरह फ़ैल गई| उन पर कोई दवा का असर नहीं होगा यह कह कर नारद जी ने ही स्वयं इसका
उपचार बताया कि जो भगवान श्री कृष्ण की सर्वप्रिया होगी उनके चरणों का जल
(चरणामृत) यदि इन्हें पिला दिया जाएगा तो भगवान श्रीकृष्ण पूरी तरह से ठीक हो
जायेंगे| इस पर नारद जी भगवान श्री कृष्ण की सभी पटरानियों जैसे रुक्मिणी जी,
सत्यभामा जी एवं अन्य सभी रानियों के पास पहुंचें लेकिन उपचार की इस युक्ति के
निष्फल होने पर उन सभी को यह चिंता हुई कि उनके चरणामृत से यदि कान्हा ठीक न हुए
या हो भी गए तो पति को अपने चरणों का जल (चरणामृत) पिलाने से वे महापाप की दोषी अवश्य
होंगी| इस कारण सबने असमर्थता व्यक्त कर दी| इसके बाद नारद जी गोकुल, मथुरा और
वृन्दावन आये और कान्हा की बीमारी तथा उनके उपचार हेतु गोपियों को यह बात बताई|
सभी गोपियों ने भी कान्हा की पटरानियों-रानियों के समान ही सोचते हुए अपनी असमर्थता
दिखा दीं| अन्त में नारद जी बरसाना में राधारानी के पास पहुंचें और जैसे ही उन्होंने
राधारानी को कान्हा की बीमारी और उसके निदान की युक्ति बताई| राधारानी ने बिना कुछ
सोचे, पूछे और बिना देर किये हुए तुरंत अपने चरणों को जल में धो कर अपना चरणामृत
नारद जी को दे दिया और प्रार्थना की कि कान्हा को वह तुरंत यह चरणामृत पिला दें| यह
दृश्य देख वहां उपस्थित सभी गोपियाँ लजा गईं और राधारानी के निःस्वार्थ प्रेम का
गुणगान करने लगीं| इधर नारद जी राधारानी का चरणामृत लिए हुए जब द्वारका पहुंचें और
कान्हा की सभी पटरानियों जैसे रुक्मिणी जी, सत्यभामा जी सहित सभी अन्य रानियों को
राधारानी का चरणामृत दिखाया तो सभी आश्चर्य से भर उठीं और कान्हा के प्रति राधारानी
के निःस्वार्थ, निर्विकार एवं निश्छल प्रेम को देखकर अभिभूत हो गईं और भगवान श्रीकृष्ण
से पहले राधारानी के संबोधन ‘राधेकृष्ण’ और हर मंदिर हर जगह राधा-कृष्णा को एक साथ
विराजित किये जाने के प्रश्नों पर भी निरुत्तर हो गईं| तब नारद जी ने भगवान श्रीकृष्ण
से कहा कि प्रभु! आज मुझे अपने सारे प्रश्नों के उत्तर मिल गए| इस पर मन-ही-मन राधारानी
के निःस्वार्थ, निर्विकार एवं निश्छल प्रेम पर गर्व
से मंद-मंद मुस्कुरा उठे योगाधिश्वर भगवान मुरलीधर (भगवान श्रीकृष्ण)
सच है निःस्वार्थ प्रेम से किसी का भी सर्वप्रिय या सर्वप्रिया
बना जा सकता है|