लोककथा है कि किसी समय एक धनाड्य परिवार में एक दंपति ने अपने इकलौते बेटे को मिट्टी खोद कर उसमें मिट्टी के पात्र “भरुई” (लोटा) और “परई” (कटोरा) को दबाते हुए देखा और आश्चर्य से पूछा बेटे ये क्या कर रहे हो ? बेटे ने अपने पिता-माता को जवाब दिया| ध्यान से देखिये आप लोग, यह वही चीजें हैं जिनमें आप लोग दादा जी को पीने-खाने को देते थे जबकि हम सब तो अच्छे बर्तनों में खाते थे | मै भी ये चीज़ें आप लोगों के लिए ही सुरखित रख रहा हूँ | जब आप लोग बूढ़े हो जायेंगे तो मै भी इन्हीं में आप लोगों को पानी-खाना दूंगा | अपने प्रिय एवं लाडले बेटे के इस जवाब पर जिसे वो दुनिया की हर सुख-सुविधा देने के लिए अपनी जरूरतों तक को दांव पर लगाने से कभी नहीं चुके, इस दंपति का अब यह हाल था कि इन्हें काटो तो खून नहीं |
सच है प्रकृति का शाश्वत सार है “जो जैसा बोयेगा वैसा ही काटेगा” |
अतएव अपने बड़े-बुजुर्गों का वैसा ख्याल रखिये जैसा अपने बच्चों का रखते हैं |
इन्हें आपके प्यार और सम्मान की जरुरत है |
यकीन मानिये इससे आपका जीवन सदा खुशियों से भरा रहेगा |