स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं, इस बात का कोई भी विरोध नहीं कर सकता। दोनों ही उस ईश्वर की विशेष रचना हैं। वे दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे रह जाते हैं। यद्यपि एक नार्थपोल की तरह है तो दूसरा साऊथपोल की भाँति है। एक-दूसरे के पूरक होने के बावजूद इन दोनों में कई अन्तर भी हैं जिन्हें प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।
इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि इन दोनों की आवश्यकताएँ लगभग एक जैसी हैं। परन्तु दोनों की भावनात्मक आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं। उनकी मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति, उनके सुख-दुख, उनके दायित्व आदि कमोबेश मिलते-जुलते हैं। उनकी शारीरिक संरचना, उनके संस्कार तथा उनकी विचारधारा व स्वभाव में भिन्नता होती है।
स्त्रियाँ घर की जिम्मेदारियों के साथ-साथ आफिस के दायित्व अधिक सुघड़ता से निपटाती हैं। स्त्री पुरुष के बिना अकेले जीवन-यापन कर सकती है, अपने बच्चों का भरण-पोषण कर सकती है। वह बच्चों को पिता की कमी का अनुभव नहीं होने देती। इसके विपरीत पुरुष स्त्री के बिना तो एक कदम भी नहीं चल सकता। आपने बच्चों की देखरेख करने में असमर्थ रहता है। वह पत्नी के न रहने पर चार दिन भी उसकी याद में अकेला नहीं रह पाता।
निस्सन्देह शारीरिक रूप से दोनों में कुछ अन्तर हैं। इनके हार्मोंस में भी भिन्नता होती है, इसका यह अर्थ कदापि नहीं लगाया जा सकता कि स्त्री किसी भी मायने में पुरुष से कमतर है। हार्मोनल प्रभाव के कारण पुरुषों के अपेक्षा स्त्रियाँ कम उम्र में अधिक समझदार हो जाती हैं। इसी प्रकार महिलाएँ पुरुषों के मुकाबले जल्दी जवान तथा बूढ़ी हो जाती हैं।
इस सत्य को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि ईश्वर ने महिलाओं को बनाया ही ऐसा है कि उन्हें हर अवसर पर सजने और संवरने के लिए प्रायः पुरुषों अधिक समय लगता हैं। यह सर्वथा सत्य है कि एक पुरुष और एक स्त्री कभी मित्र नहीं हो सकते। विद्वानों का कथन है कि किसी पुरुष की महिला के साथ दोस्ती के मूल में यौनाकर्षण ही प्रमुख कारण होता है। जबकि महिलाएँ पुरुषों के साथ निस्वार्थ दोस्ती करती हैं। जब उनका स्वयं का रिश्ता चरमराने लगता है तभी वे अपने मित्र से कुछ अधिक की आशा करती हैं।
पुरुषों की तुलना में स्त्रियाँ अपनी प्रशंसा सुनना अधिक पसन्द करती हैं, चाहे वह सत्य हो अथवा असत्य। उन्हें पुरुषों की अपेक्षा तनाव अधिक होता है। इसका प्रमुख कारण आधुनिक जीवन शैली को मान सकते है। उन पर अपने घर-परिवार तथा बच्चों की समस्याओं के अतिरिक्त कैरियर को लेकर भी बहुत प्रेशर रहता है। दूसरी ओर पुरुषों में यह अवसाद अपेक्षाकृत कम दिखाई देता है।
महिलाएँ पुरुषों के मुकाबले अधिक प्रसन्न रहती हैं। इसका कारण महिलाओं के मस्तिष्क में ‘एमएओए’ नामक पाया जाने वाला जीन है। मोटापे का प्रभाव दोनों पर समान रूप से होता है। मोटापे के कारण डायबिटीज, दिल से सम्बन्धित बीमारियों के साथ-साथ उनकी प्रजनन क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है।
आधुनिक परिवेश में अधिकांशत: महिलाओं का यह विचार है कि प्रायः पुरुष स्वार्थी प्रकृति के होते हैं और सदा अपना हित साधने के फेर में रहते हैं। ऐसी स्थिति में निस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करने वाले पुरुष उन्हें अधिक भाते हैं। उन्हें लगता है कि दूसरों का ध्यान रखने वाले (केयरिंग प्रकृति) पुरुष उनका ध्यान रखने में भी सक्षम हो सकते हैं।
एवंविध विश्लेषण करते हुए अनेक तथ्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं। परन्तु यही वास्तविकता है कि प्रकृतिजन्य अन्तर के साथ स्त्री और पुरुष में बहुत कुछ विभिन्नताएँ भी हैं। अतः एक-दूसरे को नीचा दिखाने के स्थान पर उन्हें परस्पर कदमताल करते हुए जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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