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 14: जिऊंगी अपनी ज़िंदगी

9 सितम्बर 2023

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 14: जिऊंगी अपनी ज़िंदगी

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     यह योग ध्यान और मार्शल आर्ट का 15 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर अत्यंत सफल रहा। सभी साधक आत्मविश्वास से लबरेज थे।इसमें साधना के स्तर पर भले वे प्रारंभिक दो चक्रों से ऊपर नहीं उठ पाए लेकिन सभी साधकों ने यह संकल्प लिया कि वे योग्य गुरु के मार्गदर्शन में शरीर के विभिन्न चक्रों के माध्यम से सहस्त्रार की ओर उठने का प्रयास करेंगे। अभी सूर्यनमस्कार व अन्य यौगिक अभ्यास,कलरीपायट्टु  और मल्लयुद्ध के प्रशिक्षण ने ही एक अमूल्य खजाना उन्हें सौंप दिया था।

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योग शिविर का समापन एक अत्यंत भावुक अवसर था, जब महेश बाबा ने साधकों को यहां सीखी योग शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने का आह्वान किया। मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में महेश बाबा ने कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिए निरंतर साधना और परिश्रम की आवश्यकता होती है।राष्ट्र निर्माण एक तरह से एक ऐसी श्रृंखला है, जिसमें एक भी व्यक्ति की कोताही इस पूरी श्रृंखला को ही तोड़ कर रख देती है। उन्होंने कहा कि प्राणायाम आपकी न सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति के लिए सहायक है, बल्कि यह आपके शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य को हमेशा मजबूत बनाए रखेगी।साधकों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि चक्रों और कुंडलिनी शक्ति के जागरण के लिए आप चिंता न करें। कोई शीघ्रता भी न करें। इसके लिए लंबे समय के अभ्यास की आवश्यकता होती है और योग्य गुरु का मार्गदर्शन मिलना बहुत आवश्यक है।

       अपने संदेश में यशस्विनी ने साधकों से कहा कि वे केवल योग साधक नहीं हैं। आवश्यकता होने पर उन्हें समाज की सेवा के लिए सार्वजनिक सेवा और सार्वजनिक क्षेत्र में भी उतरना होगा और लोगों की सहायता भी करनी होगी। योग, प्राणायाम, ध्यान ये सब केवल वैयक्तिक साधना तक ही सीमित नहीं होने चाहिए। इनका सही उपयोग जनता जनार्दन की सेवा में ही होना चाहिए।

       अपने उद्बोधन में रोहित ने साधकों से कहा कि प्रायः प्राचीन भारतीय विज्ञान की शिक्षा पाने वालों को लोग ज्ञान विज्ञान में पिछड़ा समझ लेते हैं। आप साधकों को इस धारणा को तोड़ना होगा और तकनीक के इस्तेमाल में भी हाईटेक होना होगा। लेकिन हां हम अपनी जड़ें न भूलें। हम आत्ममुग्ध न रहें इसलिए पश्चिम की अच्छी चीजों को ग्रहण करें लेकिन हमारी भारतीय सभ्यता की गहरे तक जमी जड़ों को काटने की कोशिश न करें क्योंकि हम,हमारी पहचान, हमारी जड़ें इसी मिट्टी में हैं……

      सभी साधकों को प्रमाण पत्र और स्मृति चिन्ह भी दिया गया। सब ने यह संकल्प लिया कि योग साधक के रूप में वे समाज और राष्ट्र की सेवा करते रहेंगे और आवश्यकता होने पर श्री कृष्ण प्रेमालय के सार्थक कार्यक्रमों में योगदान भी करेंगे। …...या तो यहां आकर या अपनी जगह में रहते हुए…..

       देखते ही देखते 50 साधकों से भरा पूरा पंडाल खाली हो गया। थोड़ी देर के लिए यशस्विनी और रोहित भी भावुक हो गए…. लेकिन अगले ही पल वे सचेत हो गए कि आगे भी अनेक बैचेज़ आएंगे और हमारा उद्देश्य भारत के हर गांव और हर घर तक योग की अलख को जगाना है…. बिना किसी स्वार्थ के…..।

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          यह संयोग था कि योग सत्र की शुरुआत  वाले दिन से ही मीरा के कॉलेज की छुट्टियां थीं। उसने मेडिकल स्टोर से भी छुट्टी ले ली थी। अब योग शिविर समाप्ति के अगले ही दिन से उसे अपने कॉलेज में पढ़ाई के लिए वापस लौटना था और साथ ही मेडिकल स्टोर के पार्ट टाइम जॉब को भी फिर शुरू करना था। घर पहुंचते ही उसने यशस्विनी द्वारा भेजी गई सहायिका को विशेष धन्यवाद दिया। माता-पिता को देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए लेकिन वे जानते थे कि बेटी एक बड़े उद्देश्य को लेकर देश के सर्वश्रेष्ठ योग प्रशिक्षक से योग सीखने के लिए गई है और इसमें न सिर्फ उसका, बल्कि उसके पूरे परिवार का कल्याण है।बेटी से लिपटकर मां-बाप भी फूट-फूट कर रोने लगे।

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       अगले दिन मेडिकल स्टोर से घर लौटते समय किसी कारणवश गार्ड भैया उसके साथ नहीं आ पाया और मीरा को लाइन ऑटो पकड़ कर अपने मोहल्ले लौटना पड़ा। वैसे अगर गार्ड व्यस्त न होते, तब भी वह उन्हें मना कर देती क्योंकि योग प्रशिक्षण और मार्शल आर्ट सीखने के बाद उसके आत्मविश्वास में अत्यंत वृद्धि हुई थी। गांधी चौराहे पर मीरा के मोहल्ले की ऑटो रिक्शा स्टॉपेज है और यहां से उसे पैदल ही घर जाना होता है। बीच में एक मैदान है,जहाँ दिनभर तो चहल पहल रहती है लेकिन रात में 9:00 के बाद वहां खामोशी छा जाती है। कुछ झाड़ियां और झुरमुट भी हैं। यहां अंधेरे और सुनसान का लाभ उठाकर एक दो अवांछित लोग भी कभी-कभी खड़े दिखाई देते हैं।मीरा को आज भी मैदान के दूसरे छोर पर एक-दो ऐसे ही लोग दिखाई पड़े। किसी टकराव और असहज स्थिति से बचने के लिए मीरा तेजी से कदम बढ़ाती हुई इस मैदान के कोने से होकर अपने मोहल्ले की पहली गली की और लपकी।

      उसने पीछे मुड़कर देखा कोई नहीं आ रहा था तो उसकी चाल थोड़ी धीमी हो गई, लेकिन 10 सेकेंड के अंदर उसने अपने पीछे किसी की उपस्थिति का अनुभव किया। वह तुरंत झुक गई।दो लड़के उसके पीछे थे और उन्होंने एक डंडे से उसके सिर पर प्रहार करने की कोशिश की।मीरा साफ बच गई। इस प्रयास में वो जमीन पर गिर पड़ी और दोनों उस पर टूट पड़े। अचानक हुए हमले से मीरा संभल नहीं पाई। मीरा को जबरदस्ती उठाकर वे दोनों झाड़ियों की ओर ले गए।झाड़ियों के पीछे पहुंचते-पहुंचते मीरा उनकी पकड़ से छूट गई और उछलकर खड़ी हो गई। एक के हाथ में डंडा था और दूसरे के हाथ में लंबा चाकू। दोनों मीरा की ओर बढ़े…….

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       योग शिविर समाप्ति के 3 दिनों बाद यशस्विनी ने अखबार में एक लड़की का साहसिक कारनामा पढ़ा।…...जॉब से घर लौटते समय एक कॉलेज छात्रा का अपहरण कर एक सूने मैदान में ले जाने वाले दोनों अपहरणकर्ताओं द्वारा अनाचार की कोशिश को उस साहसी लड़की ने विफल कर दिया। मार्शल आर्ट प्रशिक्षित उस लड़की द्वारा शरीर के अज्ञात स्थलों पर प्रहार से वे दोनों लफंगे बुरी तरह घायल हो गए हैं। अभी तक वे दोनों अस्पताल में बेसुध पड़े हैं…..

       समाचार पढ़कर यशस्विनी मुस्कुरा उठी।उसने स्थान आदि का विवरण पढ़कर अनुमान लगा लिया कि वह साहसी लड़की मीरा ही है।उसके होठों से अनायास निकला:- वेल्डन मीरा... आई एम प्राउड ऑफ यू।"

 

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यशस्विनी के कार्यों में से एक काउंसलिंग भी है। विशेष रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं या अन्य परीक्षा की तैयारियों के दौरान मानसिक रूप से किसी उलझन या कठिनाई का सामना करने वालों के लिए शनिवार की शाम को दो घंटे के परामर्श सत्र का आयोजन किया जाता है।

      आज के परामर्श सत्र में मीरा को देखकर यशस्विनी प्रसन्न हो गई। उसने मीरा को गले लगा लिया।

" बधाई हो मीरा तूने बहुत बड़ा काम किया है।मुझे तुम पर गर्व है।"

" धन्यवाद दीदी, यह आप ही के प्रशिक्षण और आप ही की प्रेरणा का कमाल था।"

" इसमें मेरा कुछ नहीं है यह तो संकल्प शक्ति का चमत्कार है। क्या नहीं है तुम्हारे शरीर और तुम्हारे मन के संकल्प के भीतर….. बस इच्छा कर लो और प्राण प्रण से उसे पूरा करने में जुट जाओ तो दुनिया की कोई ताकत तुम्हें अपनी मंजिल को प्राप्त करने से नहीं रोक सकती है। यही हाल आत्मरक्षा का भी है।'' यशस्विनी ने कहा।

"आपकी बात सही है दीदी, लेकिन मैं कुछ प्रश्नों को लेकर आई हूं। मैं जानती हूं कि इनका समाधान बस आपके हाथ में है।"

" अच्छा पूछ मीरा, क्या जानना चाहती हो? मैं कोशिश करूंगी तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देने की।"

  अपनी कुर्सी पर बैठी यशस्विनी मीरा की बातें ध्यान से सुनती रही और उसके प्रश्नों का उत्तर देती रही। मनकी इस बीच कॉफी का कप लेकर आई। दोनों की बातचीत जारी रही।

"दीदी, मैं उसी दिन की घटना से अपनी बात शुरू करना चाहती हूं।वे बदमाश छोटे हथियार से लैस थे,इसलिए मैंने उनका सामना किया और उन्हें ठिकाने लगा दिया, पर क्या मार्शल आर्ट हर स्थिति में हमारी रक्षा कर सकता है? योग और प्राणायाम क्या किसी बड़े संगठित हमले के समय भी काम आएंगे?"

" हां अवश्य, क्यों नहीं काम आएंगे?"

" उदाहरण के लिए अगर उन अपराधियों के पास पिस्टल होती और वे मुझे पिस्टल के पॉइंट पर ले लेते तो थोड़ी दूरी से निशाना लगाए जाने की स्थिति में मेरा मार्शल आर्ट क्या कर पाता?.... इसके अलावा अगर उन्होंने घात लगाकर मुझ पर हमला किया होता...पहले मैंने उन्हें दूर से भी नहीं देखा होता….. अचानक वे मेरे पीछे आकर प्रहार करते और मैं और असावधान सी उनके हमले का शिकार हो जाती……" मीरा ने अपनी व्यथा बताई।

यशस्विनी ने उसे समझाते हुए कहा, "देखो मीरा मैं यह नहीं कहती हूं कि कलियरपट्टू या ऐसे मार्शल आर्ट पूरी तरह से फूल प्रूफ हैं,अर्थात वे हर तरह के हमले का जवाब देने में सक्षम हैं…. यह कहना भी अवैज्ञानिक होगा कि हम कोई मंत्र पढ़े व चमत्कार हो जाए और पिस्तौल से दागी गई गोली दागी न जाए या अगर गोली दागी भी गई तो रास्ते में डायवर्ट हो जाए और तुम्हारे शरीर को न लगे।"

" दीदी आखिर इसका समाधान क्या है? अर्थात खौफ के साये में तो हमें जीते ही रहना रहना होगा... अगर किसी ने हमारे आने जाने के समय की रेकी कर ली है तब तो हम परेशानी में कभी भी पड़ सकते हैं…."

" सबसे पहले तुम्हें जो कहना चाहूंगी उसे तुम्हें सुनकर आश्चर्य होगा लेकिन सावधानी सबसे बड़ी सुरक्षा है इसका तुम ध्यान रखो।हम स्वतंत्र हैं, कहीं भी कभी भी आ जा सकते हैं यह सोच कर मूर्खता वाली वीरता दिखाने की जरूरत नहीं है अर्थात समय से घर लौटने की कोशिश करना... असमय में असुरक्षित और सुनसान रास्ते का प्रयोग करने से बचना ।ये सब महिलाओं के लिए ही क्यों पुरुषों के लिए भी तो आवश्यक हैं।पुरुष भी तो लूट हमले का शिकार होते हैं।''

मीरा ने मामले की गंभीरता को समझते हुए कहा- "हां आप सही कह रही हैं दीदी।"

" कहीं जाओ और वह नियमित आने जाने से अलग हटकर है तो घर के लोगों और परिचितों को बता कर जाओ। वापस लौटने की संभावित अवधि भी बता कर जाओ। मोबाइल फोन से अपनों के संपर्क में रहो। पैनिक बटन का इस्तेमाल जानो ताकि इमरजेंसी होने पर तत्काल तुम्हें मदद पहुंच सके और... यह बात तुम्हें अटपटी लगेगी लेकिन अपने पर्स में मिर्च पाउडर, छोटा चाकू आदि रखने में भी कोई बुराई नहीं है….. अगर तुमसे एक व्यक्ति लड़ने आए मीरा तो तुम उसे पछाड़ दोगी लेकिन एक से अधिक अपराधी हैं तो इस तरह के सुरक्षात्मक उपायों और चीजों का प्रयोग करने में कहीं से कोई बुराई नहीं है।"

" आप ठीक कह रही है दीदी ...और क्या योग, प्राणायाम, ध्यान से भी हमारे शरीर में ऐसी क्षमता जाग्रत होती है कि हम इस तरह के खतरों और हमलों को नाकाम कर दें….."

" हां अवश्य होती है मीरा जब तुम ध्यान के चक्र में ऊपर उठती जाओगी तो तुम्हारी छठी इंद्री भी जाग्रत होगी और इस तरह के किसी भी संभावित हमले का संकेत तुम्हें प्राप्त हो सकता है।….. हम अपने आसपास के अच्छे लोगों की सकारात्मक तरंगों को भी उनके आने से पहले ही जान जाते हैं और बुरे लोगों के इरादों और उनके आसपास उपस्थिति को भी उनकी नकारात्मक तरंगों के माध्यम से जान जाते हैं। ऐसा तुमने भी कई बार अनुभव किया होगा हालांकि ठीक-ठीक खतरे का अनुमान लगाना साधना के ऊंचे स्तर पर ही संभव है और मैं तुम्हें इस पर फोकस करने के लिए कह भी नहीं रही हूँ….।

    ऐसा कहती हुई यशस्विनी थोड़ी देर के लिए रोहित के ख्यालों में डूब गई…. जब कल शाम वह ऑफिस में बैठकर कुछ कार्य कर रही थी तो उसे ऐसा लगा कि रोहित थोड़ी ही देर में यहां पहुंचने वाला है और सचमुच ऐसा हो ही गया... लगभग 5 मिनट के भीतर रोहित दरवाजे पर खड़ा मुस्कुरा रहा था "...मे आई कम इन यशस्विनी……"पर आने के बाद रोहित रुके नहीं  थे और यशस्विनी की अलमारी  में रखी हुई किसी फाइल को निकाल कर वापस लौट गए थे।

मीरा: "आप क्या सोच रही हो दीदी? क्या किसी के ख्यालों में खो गई हो?"

         यशस्विनी कल शाम रोहित के इस तरह उसका ध्यान करते ही आ जाने की बात पर मन ही मन मुस्कुरा उठी।मीरा की ओर देखते हुए उसने कहा -

कुछ नहीं मीरा, हम जिस थ्योरी पर चर्चा कर रहे हैं उससे जुड़ी हुई कल शाम की एक घटना की याद आ गई थी……

(पूर्णतः काल्पनिक रचना। किसी भी व्यक्ति, वस्तु, पद, स्थान, साधना पद्धति या अन्य रीति रिवाज, नीति, समूह, निर्णय, कालावधि, घटना, धर्म, जाति आदि से अगर कोई भी समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र ही होगी।)

( कृपया वर्णित योग,ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यासों, मार्शल आर्ट आदि का बिना योग्य गुरु की उपस्थिति और मार्गदर्शन के अनुसरण व अभ्यास न करें। वर्णित योग ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यास मार्शल आर्ट आदि की सटीकता का दावा नहीं है लेखक ने अपने अध्ययन सामान्य ज्ञान तथा सामान्य अनुभवों के आधार पर उनकी साहित्यिक प्रस्तुति की है)

(लेखक कोविड-19 समेत समस्त रोगों के उपचार में एलोपैथी,आयुर्वेद और होम्योपैथी समेत सभी मान्य चिकित्सा पद्धतियों के उपचार का समर्थन करता है और भारत की केंद्रीय सरकार तथा विभिन्न प्रदेश की सरकारों के समस्त कोविडरोधी प्रोटोकॉल का पालन करता है।इस काल्पनिक उपन्यास के किसी भी अंश के विवरण का रोगों के इलाज आदि में मानक रूप में अनुसरण न किया जाए। सदैव डॉक्टरों की सलाह का पालन किया जाए।)

योगेंद्र

 

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रचनाएँ
यशस्विनी:देह से आत्मा तक
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "यशस्विनी:देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास "यशस्विनी: देह से आत्मा तक" के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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