मैंने जब होश संभाला तब हमारे घर में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था। उस समय कई लोगों पर लकड़ी के शटर वाले टीवी थे। कई लोग टीवी पर प्लास्टिक की रंगीन स्क्रीन लगाकर उसे रंगीन टीवी बना लेते थे। ये स्क्रीन पारदर्शी लाल, हरे, नीले, पीले कई रंग में आती थी। एक पड़ोसी के पास तो ऐसी स्क्रीन थी जिसमें कई रंग एक साथ थे। इन स्क्रीन के टूट जाने पर कई लोग इसे मोमबत्ती की लौ पर मोड़ माड़ के हाथ घड़ी पर चढ़ाने के लिए फ्रेम बना लेते थे। जो घड़ी को बारिश से बचाता था।
रंगीन टीवी में अपट्रान का टीवी सबसे ज्यादा चलता था पर इसमें चैनल बदलना बहुत मुश्किल होता था। इसमें कई बटन होते थे जिससे चैनल को ट्यून किया जाता था। ब्लैक एंड व्हाइट टीवी में 12 चैनल होते थे जिनको एक नोब को गोल-गोल घुमाकर चैनल बदले जाते थे। रिमोट वाले टीवी में लोग केवल ओनिडा का ही नाम जानते थे पर ये बहुत महंगा होता था।
जुलाई 1997 के आसपास बाजार में बहुत सारी कम्पनियों के रिमोट वाले टीवी आ गये थे। इनकी कीमत भी बहुत कम थी। 14 इंच का टीवी 14000 रुपये में और एक साल बाद ही इनकी कीमत 8000 रुपये के आसपास हो गई थी। उस समय 14, 20, 21 इंच (36, 51, 53 सेमी) के टीवी ही आते थे। इनमें 99 चैलन होते थे पर धीरे-धीरे केवल पर चैनलों की संख्या बढ़ने के कारण कुछ साल बाद 250 चैलन वाले टीवी आने लगे। केवल को टीवी से जोड़ने के लिए सफेद रंग का सॉकेट आता था जिसे बैलून कहते थे। इससे पहले रिबन जैसी चपटी तार आती थी जिसे छीलकर पेच के चारों तरफ लपेट कर टीवी में पेच कस दिये जाते थे।
कुछ कंपनियों ने स्लिम टीवी भी निकाले थे। यह दीवार वाले टीवी के आने से पहले सबसे पलते टीवी थे जो कम जगह में आ जाते थे। एल जी का गोल्डन आई टीवी जिसमें ऑटो ब्राइटनेस होती थी। 1999 में ये लोगों को जादू जैसा लगता था। उस समय हर टीवी में किक्रेट वाली गेम जरूर होती थी जो टीवी रिमोट से खेली जाती थी। भारत में ज्यादातर बच्चों ने सबसे पहला वीडियो गेम यही खेला होगा। नोकिया का स्नेक गेम तो इसके कई साल बाद आया था। उस समय कई कम्पनियों जैसे- जौली स्टार ट्रेक, अपट्रॉन, अकाई, तोशिबा, सेनसुई, ऑस्कर, ओनिडा, शार्प, बी पी एल, थॉमसन, एल जी, वीडियोकॉन, बेलटेक, बुश, बेस्टर्न, आईबा आदि के टीवी आते थे। इनमें बी पी एल का टीवी सबसे बेस्ट था और ऑस्कर व जौली के टीवी सबसे सस्ते (लेकिन क्वालटी में बढ़िया होते थे) थे।