सलिल ने ड्राइविंग शीट संभाली, रोमील कुमाऊ रंजन के साथ पीछे बैठा, जबकि बगल बाली शीट पर शांतनु देव बैठ गए। इसके बाद सलिल ने कार श्टार्ट की और हाँस्पिटल गेट से निकाल कर सड़क पर दौड़ा दिया। यूं तो सलिल शांत स्वभाव का था, परिस्थिति चाहे जैसी भी हो जाए, धैर्य कभी नहीं खोता था। परन्तु....जब से कुमाऊ रंजन ने यह कह कर कि" रजौली से मिलना चाहते है, उसके बाद बतलाएंगे कि, आखिर उनको हुआ क्या था। सलिल के शरीर में उत्तेजना का प्रवाह होने लगा था। मन में तरह-तरह के खयाल आने लगे थे और उसके मन में सस्पेंस का भाव क्रिएट हो गया था।
स्वाभाविक ही था, कुमाऊ रंजन ने जो कहा था, उसके बाद यह जानने की उत्कंठा प्रबल होने लगे कि" आखिर कार बीते दिनों हुआ क्या होगा और रजौली से कुमाऊ रंजन के किस तरह के संबंध है। उत्कंठा तो रोमील एवं शांतनु देव के अंदर भी जागृत हो चुका था। परन्तु....दोनों शांत थे, जानते थे कि" देर- सवेर तो कुमाऊ रंजन के द्वारा रहस्य पर से पर्दा उठाया ही जाएगा। परन्तु....सलिल का खुद पर नियंत्रण नहीं था। उसकी तो इच्छा थी कि" कार को हवाई जहाज बना दे और फौरन से पेशतर पुलिस स्टेशन पहुंच जाए। किन्तु" मानव मन का सोचा हुआ कभी होता कहां है, समय तो अपनी गति से ही चलेगी। उसको कोई जरूरत नहीं है कि" आपके गति से ताल-मेल बिठाए। जरूरत तो हमको और आपको है कि" समय के साथ कदम मिलाकर कितनी दूर तक चल पाते है, उससे कितना साथ निभा पाते है।
तभी तो सलिल कार की रफ्तार बढाए जा रहा था। रात के नौ बज चुके थे और अब पहले की अपेक्षा सड़क पर ट्रैफिक में कमी आ गई थी। फिर भी कहते है न कि" सावधानी हटी और दुर्घटना घटी और इसका ताजा-तरीन उदाहरण शांतनु देव था। तभी तो उसने सलिल को इंगित किया था कि" कार के स्पीड को नियंत्रित करो। परन्तु....हृदय में ग्रसित कर चुके जिज्ञासा के कारण सलिल ने उसकी बात अनसुनी कर दी थी। किन्तु" उसने एक काम जरूर किया था कि" एस. पी. साहब को ताजा उत्पन्न हुए हालात के बारे में जानकारी दे दी थी और सामने से एस. पी. साहब ने कहा था कि" तुम पुलिस स्टेशन पहुंचो, मैं भी वहां पर जल्दी ही आ रहा हूं। इतनी बात कहने के बाद एस. पी. साहब ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया था। फिर तो सलिल के दिमाग में वही विचार। वैसे भी, रजौली ने जिस तरह से पुलिस बालों को उलझाया था, ऐसे में स्वाभाविक ही था कि" सलिल के हृदय में जिज्ञासा उछाल ले।
इससे पहले तो किसी अपराधी ने इस तरह से पुलिस को नहीं उलझाया था । ऐसे में रजौली के द्वारा पुलिस को गोलियां देना, उसका डिपार्ट मेंट ही उलझ चुका था। ऐसे में कुमाऊ रंजन की बातों से सलिल के मन मस्तिष्क में चेतना जागृत हुई थी। उसके मन में आशाएँ करवट लेने लगी थी कि" अब कम से कम रजौली के चरित्र पर से पर्दा तो उठेगा। कम से कम यह तो जानकारी होगी कि" दरअसल रजौली कौन है?...फिर तो यह सुलझाने में देर नहीं लगेगी कि, उसने वारदात को क्यों अंजाम दिया। बस इसलिये ही सलिल के मन में उत्सुकता अपने चरम पर चढती जा रही थी।
तभी तो जैसे ही कार ने पुलिस कंपाऊंड में प्रवेश किया, सलिल ने तेजी से ब्रेक लगाए। फिर तो, कार की टायर घिसटने के कारण एक तेज आवाज दूर तक गुंजती चली गई। फिर तो वे लोग कार से बाहर निकले और आँफिस की ओर बढे, तभी सलिल की नजर गेट से प्रवेश कर रहे कार पर गई और उसके मन में विचार कौंधा। लगता है कि, साहब भी आ चुके है और उसका सोचना भी सही था, उसके पीछे-पीछे एस. पी. साहब ने आँफिस में कदम रखा। फिर तो उन लोगों ने कुर्सी संभाल लिया, जबकि" रोमील आँफिस से बाहर काँफी लाने के लिए निकल गया। वैसे भी, उसके मन में विश्वास था कि" साहब उसके मौजूदगी के बिना कभी भी रहस्योद्घाटन नहीं होने देंगे।
जबकि" एस. पी. साहब ने सलिल के चेहरे की ओर देखा, मानो पुछ रहे हो कि' अब देर किस बात की है?....परन्तु सलिल, उसे तो इंतजार था राम माधवन के आने का और घड़ी ने ठीक रात के दस बजने का इंडिकेट किया और राम माधवन ने आँफिस में प्रवेश किया। फिर उसने बतलाया कि" रजौली को टाँर्चर रूम में बैठा दिया गया है। फिर तो वे लोग कुमाऊ रंजन के साथ टाँर्चर रूम की ओर बढे। मन में जिज्ञासा के भाव लेकर कि" आगे किस प्रकार का रहस्योद्घाटन होता है?... बस इसका ही इंतजार तो एस. पी. साहब, सलिल एवं शांतनु देव का था। तभी तो चलते हुए भी तीनों कनखियों से बार-बार कुमाऊ रंजन को देख रहे थे।
फिर तो टाँर्चर रूम में पहुंच कर वे लोग यथास्थान बैठ गए। इसी बीच रोमील भी काँफी के कप ट्रे में सजाए हुए आ गया और उसने उन लोगों को काँफी सर्व किया और खुद भी कप लेकर बैठ गया। परन्तु, इस बीच एक बात जरूर हुई कि" कुमाऊ रंजन एवं रजौली की नजर मिली और दोनों आश्चर्य चकित होकर अपलक एक दूसरे को देखने लगे। फिर तो, उन लोगों ने काँफी पी, परन्तु.....इस दरमियान भी रजौली एवं कुमाऊ रंजन की नजर एक-दूसरे से जुड़ी ही रही। इस वाकये को हैरान भरी नजरों से सभी देख रहे थे, किन्तु कोई बोल नहीं रहा था और ऐसे में समय धीमे-धीमे आगे की ओर बढता जा रहा था। किन्तु" राम माधवन बैठा हुआ नहीं था, वह तो लैपटाँप और प्रोजेक्टर से उलझा था। फिर तो जैसे ही राम माधवन फ्री हुआ, उसने अंगूठे का साइन दिखलाया सलिल को और सलिल समझ गया कि" बयान रिकार्ड करने की तैयारी हो चुकी है। तभी तो वो कुमाऊ रंजन से मुखातिब हुआ।
सर!....आपने हाँस्पिटल में बोला था कि" आप किसी राज पर से पर्दा उठाएंगे। बोलने के बाद सलिल एक पल के लिए रुका, फिर आगे बोला। सर!....जहां तक जानता हूं, आप सैलिव्रिटी है और ऐसे में ऐसा क्या आपके साथ घटित हुआ कि" आप मानसिक तौर पर बीमार हो गए? फिर यह भी बात कि" रजौली को आप किस तरह से जानते है?....सलिल ने प्रश्न पुछा फिर नजर कुमाऊ रंजन पर टिका दी। वैसे एस. पी. साहब, शांतनु देव और रोमील तो पहले से ही उनके चेहरे पर नजर जमाये हुए थे। ऐसे में उन लोगों की व्याकुलता देखकर कुमाऊ रंजन ने रजौली पर से नजर हटाया और धीरे से बोले।
आँफिसर!....पहली बात तो, आपके सामने जो बैठी हुई है, वो रजौली" नहीं बल्कि रज्जो है। फिर आपको जो पूरी बात जाननी हो, तो मेरे बीते दिनों में जाना होगा। कुमाऊ रंजन ने कहा और फिर लंबी सांस ली।
सर!....आप इत्मीनान से पूरी बात बतलाइए। हम लोग पूरी तरह से तैयार है और हमारे पास अभी पूरी रात बाकी है। सलिल ने उनके चुप होते ही कहा और उसकी बात सुनकर कुमाऊ रंजन मुस्कराए, फिर बोले।
आँफिसर!....सच कहते हो कि" मैं सैलिव्रिटी हूं और एक समय इसका आनंद भी उठाता था। जहां भी जाता था, फैंस के द्वारा पूजित होता था। बोलने के बाद एक पल के लिए रुके कुमाऊ रंजन, फिर आगे बोला। परन्तु....इससे अलग भी एक जिंदगी थी मेरी। मैं उस समय कुंआरा था, ऐसे में अपने दोस्त विमल चंदानी के साथ ज्योत्सना अपार्ट मेंट में रहता था। स्वभाव से ही मिलनसार विमल चंदानी पेशे से मीडिया रिपोर्टर था और उस समय उसका दिल्ली में बहुत बोल बाला था। साथ ही वो हिंदु वाहिनी सेना" का क्षेत्रीय कार्यकारी अध्यक्ष भी था। बोलते-बोलते कुमाऊ रंजन बीते दिनों की यादों में खोते चले गए।
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क्रमशः-