सलिल को अचानक ही आया देखकर शांतनु देव चौंका जरूर था, किन्तु" उसने अपने चेहरे पर इन भावों को नहीं आने दिया और सलिल को अपने करीब बैठने के साथ ही उसके चेहरे पर नजर टिका दी। जबकि सलिल, उसके करीब बैठने के बाद भी इस बात को तय नहीं कर पाया था कि" बातों की शुरुआत कहां से करें। वैसे भी बाहर अंधेरा ढल चुका था और इसके साथ ही हाँस्पिटल की सारी लाइटें जल चुकी थी, जिसके कारण हाँस्पिटल बिल्डिंग जगमग करने लगा था। बीतते समय के साथ ही सलिल की बेचैनी बढती जा रही थी, परन्तु अब तक वो फैसला नहीं कर पाया था कि" बातों की शुरुआत किस प्रकार से करें, तभी तो शांतनु देव से नहीं रहा गया, तभी तो उसके आँखों में देखकर बोला।
सलिल यार!.....देख रहा हूं कि" जब से आए हो, बेचैन हो और मुझपर ही नजर जमाए हुए हो। क्या कोई विशेष बात है?....शांतनु देव ने कहा और फिर सलिल के चेहरे को देखकर उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा। जबकि, सलिल उसकी बातों को सुनकर जैसे निर्णय कर लिया हो, तभी तो धीरे से बोला।
हां, तुम सही सोच रहे हो शांतनु। बस यही समझो कि" मैं परेशान हो चुका हूं, तभी तो तुम्हारे पास आया हूं। बोलने के बाद एक पल के लिए रुका सलिल, फिर आगे बोला। यार शांतनु!...रजौली ने तो मेरे दिमाग की सभी बत्तियां जला दी है। उसका विचित्र तरह का व्यवहार और उसके बात कहने का अंदाज, समझो कि" उलझ कर रह गया हूं। समझ ही नहीं पा रहा हूं कि" उस औरत से किस प्रकार से बात करुं। बोलने के बाद सलिल शांतनु देव के चेहरे को देखने लगा, जबकि शांतनु देव चौंककर बोला।
तुम उस वारदात करने बाली औरत की बात कर रहे हो क्या सलिल?
हां-हां, उसकी ही बात कर रहा हूं यार!....सलिल उसकी बात खतम होते ही बोल पड़ा।
फिर तो उसने शांतनु देव को "रजौली" के गिरफ्तार होने से लेकर अब तक की घटना को सिलसिलेवार बतलाया। उसने बतलाया कि" रजौली पुलिस स्टेशन में किस तरह के व्यवहार कर रही है और साथ ही यह भी बतलाया कि" उसके कहे अनुसार शहर की पुलिस और सेना के जवान किस तरह से गलियों की खाक छान रहे है। सलिल कहता जा रहा था और शांतनु देव ध्यान पूर्वक उसकी बातों को सुन रहा था और जब सलिल ने बात खतम की, शांतनु देव अवाक सा उसके चेहरे को देख रहा था। बीतता हुआ समय और उसके साथ ही सलिल के चेहरे पर बढती बेचैनी। किन्तु" शांतनु देव फिलहाल तो कुछ कहने की स्थिति नहीं था। जबतक कि" वह रजौली से मिलकर उसे समझ नहीं लेता, किस प्रकार से सलाह दे।
तभी तो शांतनु देव ने सलिल को कहा कि" कल मुझे हाँस्पिटल से छुट्टी मिलती है, उसके बाद देखता हूं। बस इतनी बातें और सलिल ने उससे विदा ली और हाँस्पिटल से निकला। फिर तो उसकी बाईक सड़क पर सरपट दौड़ने लगी और उसी रफ्तार से उसके विचार दौड़ने लगे।....परन्तु, अभी वो इन विचारों से मुक्त रहना चाहता था और उसकी इच्छा यही थी कि" फिलहाल तो पुलिस स्टेशन पहुंचे, उसके बाद ही देखेगा कि, करना क्या है। तभी तो वो बाईक को फूल स्पीड से भगाए जा रहा था। हलांकि एक दो बार उसकी इच्छा हुई कि" बाईक का रुख किसी वियर बार की ओर मोड़ दे। किन्तु नहीं, उसने इस विचार को तत्काल ही त्याग दिया। वैसे भी, परिस्थिति इस प्रकार की थी कि" इस प्रकार की हरकतें करना उसके लिए मुसीबतें पैदा कर सकता था।
जब मामला उलझा हुआ हो, उसमें भी आतंकी हमले की स्थिति हो, वह मौज-मस्ती करने के लिए सोच भी नहीं सकता था। परिस्थिति ऐसी बन चुकी थी कि" रजौली के द्वारा दिए जा रहे बयान ने सीनियर आँफिसरों को भी हलकान कर रखा था और उसे उम्मीद थी कि" इसकी धमक गृह मंत्रालय तक पहुंच गई होगी। ऐसे में वो कभी भी नहीं चाहता कि, थोड़े मजे करने के चक्कर में अपना कीमती समय बर्बाद करें। जानता था कि, कभी भी, किसी समय भी किसी भी प्रकार की जानकारी उसे सुनने को मिल सकती है और किसी भी हालात का सामना करने के लिए उसे तैयार रहना पड़ सकता है। अब इस हालात में उसने ड्रिंकिंग ली, तो फिर मुसीबत आने में समय नहीं लगने बाला।
लेकिन अचानक ही सलिल चौंका, आश्चर्य के कारण उसकी आँखें सिकुड़ी और उसने बाईक रोक दिया। कारण कि" फुटपाथ पर खड़ा वो भिखारी, जो आने-जाने बाले हर एक व्यक्ति को याचना भरी नजरों से देख रहा था। परन्तु सलिल इस लिए नहीं चौंका कि" उसने भिखारी को याचना करते हुए देख लिया था, वह तो चौंका इसलिये था कि" स्ट्रीट लाइट के नीचे खड़ा भिखारी उसे कुछ अजीब सा प्रतीत हो रहा था। स्ट्रीट लाइट की रोशनी उसके चेहरे पर सीधे पड़ रही थी और उस रोशनी में उसका चेहरा चमक रहा था और बस वही चमक सलिल को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। उसे लग रहा था कि" वह चेहरा उसके लिए जाना-पहचाना सा है, परन्तु....किसका है?
सलिल ने एक पल के लिए सोचा, फिर उसने बाईक खड़ी की और फिर उस भिखारी की ओर बढा और जब उसके चेहरे को गौर से देखा, आश्चर्य भरी चीख उसके होंठों से निकली।.....कुमाऊ रंजन!...हां वो कुमाऊ रंजन था, जिसका चेहरा स्ट्रीट लाइट की रोशनी में चमक रहा था। वैसे तो शाम ढल जाने के कारण वातावरण में अंधेरा घिर चुका था। परन्तु....अंधेरे से शहर को कोई फर्क नहीं पड़ता, तभी तो सलिल की नजर ने उसको पहचान लिया था। हां, वो कुमाऊ रंजन था, स्टेज आर्टिस्ट एवं साहित्यकार। जिसकी एक समय हाक" चलती थी, वही कुमाऊ रंजन था। अभी तो कुछ देर पहले ही शांतनु देव उसके द्वारा रचित उपन्यास पढ रहा था। वही कुमाऊ रंजन आज भिखारी बना फुटपाथ पर खड़ा था और उस चेहरे को देखकर सलिल चौंका था।
लंबा कद, गोरा रंग, भरा हुआ शरीर, भूरी आँखें और गोल चेहरा। आकर्षक व्यक्तित्व रहा होगा कुमाऊ देव का। किन्तु" अभी बढी हुई दाढी और बिखरे हुए बाल, उसपर शरीर पर फटे हुए कपड़े और कंधे पर लटका हुआ मैला-कुचेला थैला। इस कारण से लग रहा था कि, उसके आकर्षक व्यक्तित्व को जैसे ग्रहण लग गया हो। हां, उनका रायल्टी अभी भी आता होगा, वह भी बहुत बड़े अमाउंट के रुप में। किन्तु" समय की मार ने उसे बेबस कर दिया था कि" आज वो भिखारी के रुप में खड़ा था। परन्तु....उनके साथ ऐसी क्या ट्रैजडी घटित हुई कि" एक समय का चमकता हुआ सितारा आज गर्दिश में है?
प्रश्न उठना सहज भी था। परन्तु....फिलहाल तो अभी क्यों इस प्रश्न में उलझे?...अभी तो जरूरत है कि" उन्हें लेकर पुलिस स्टेशन जाए और उनकी देखभाल करें। फिर आगे देखेगा कि" उनके संदर्भ में क्या किया जा सकता है। सलिल ने सोचा और फिर कुमाऊ रंजन को इशारा किया कि" साथ चलिए और कोई अबोध बच्चा हो जैसे, कुमाऊ देव सलिल के पीछे-पीछे चल पड़े। फिर तो सलिल ने उनको अपने बाईक पर बैठाया और पुलिस स्टेशन के लिए चल पड़ा। किन्तु" इस समय सलिल की सोच डायवर्ट हो चुकी थी। कहां तो वो रजौली के विचारों में खोया हुआ था और कहां कुमाऊ रंजन के विचार में बुरी तरह उलझ गया।
समय की गति बहुत ही न्यारी है। कब किसके साथ क्या घटित हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। नहीं तो एक समय आसमान में चमकता हुआ सितारा इस तरह से तो धूल- धूसरित नहीं हो रहा होता। सोचते-सोचते सलिल का हृदय संवेदना के आवेग से द्रवित हो उठा। उसने तो जिस बात की कल्पना भी नहीं की थी, वह आज उसे देखने को मिला था। तभी तो पुलिस स्टेशन के कंपाऊंड में पहुंचते ही उसने बाईक खड़ी की और कुमाऊ रंजन को लेकर अपने आँफिस की ओर बढा।
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क्रमशः-