शाम ढलने को व्याकुल हो चुका था। लगता था कि" अब कुछ ही देर में अँधेरे का साम्राज्य व्याप्त हो जाएगा और होना भी यही चाहिए। क्योंकि यह समय चक्र है और इसमें सभी कुछ निर्धारित होता है, पहले से ही। इससे आज तक कोई अछूता नहीं रह सका है। तभी तो एक समय का आलीशान महल आज समय के थपेड़ों से लड़खड़ा कर आज खंडहर में तबदील हो चुका था। एक विशाल खंडहर, अपने आप में एक बीती हुई सभ्यता को समेटे हुए। वीरान, क्योंकि वहां कोई आता ही नहीं था, इसलिये कि" उसकी उपयोगिता नहीं थी। हां, सरकार द्वारा हेरिटेज साइट का तमगा लगाकर संरक्षित किया जा सकता था, किन्तु उपेक्षित था, तिरस्कृत था यह खंडहर।
लेकिन यह खंडहर ऐसा भी नहीं था कि" किसी के काम नहीं आता हो। अकसर यहां पर प्रेमी जोड़े नितांत एकांत की चाह लिए आते थे और यह खंडहर उन्हें संरक्षण देता था। तो कभी-कभी शराबी- जुआरी को भी संरक्षण देता था। किन्तु" इस समय इसने उस महिला को संरक्षण दिया हुआ था, जो अभी-अभी हनुमान चौक पर क्राइम कर के आई थी। हां, वो औरत अब बिल्कुल भी नहीं दौड़ रही थी और न ही उसके चेहरे पर अभी किसी प्रकार के भाव थे। वह तो नितांत अपने कदमों को खंडहर की ओर बढा रही थी। कंधे पर वही पुराना फटा हुआ सा थैला लिए,....जिसमें से अभी ए. के. फोर्टी सेवन झांक रहा था।
परन्तु"...उसे इसकी चिन्ता इस समय तो बिल्कुल भी नहीं थी। जानती थी कि" इस समय वो इस खंडहर के संरक्षण में है, जो अपने-आप में वीराना पन समेटे हुए है। उसके अंदर प्रतिध्वनित होता हुआ साय- साय का स्वर इस बात की तसदीक करता है कि" उसकी ओर कोई जल्दी आता नहीं। लेकिन अपने इस उपेक्षा से तनिक भी दुःखी नहीं है खंडहर, क्योंकि उसे अपना अतीत याद है और भविष्य भी। जानता है कि" जिसका निर्माण हुआ है, उसका विनाश अवश्यंभावी है। तो फिर क्यों दुःखी हो। इसलिये ही तो उस औरत ने इस जगह को रहने के लिए चुना था। उसे लगा था कि" उसकी दासता उस खंडहर से बहुत हद तक मिलती-जुलती है। उसे इस बात का विश्वास था कि" तिरस्कृत हुआ खंडहर उसका तिरस्कार तो कभी नहीं करेगा।
तभी तो, वो आगे बढी और उस रूम में पहुंची, जो कि" जर्जर था, किन्तु खंडहर के और भाग से अपेक्षाकृत कहीं बेहतर था। तभी तो उस औरत ने उस रूम को अपना ठिकाना बनाया था। वैसे तो, उसके लिए दिल्ली शहर अंजाना नहीं था। वह इसके एक-एक गलियों से अच्छी तरह से परिचित थी, किन्तु" इस परिचय में भय था, छल लिए जाने का अंजाना सा डर था। धोखा और मक्कारी की गंध इसकी फिजाओं में घुली हुई थी और ऐसे में शहर की चमचमाती गलियों, ऊँचे चमकते हुए बिल्डिंगो से यह खंडहर ज्यादा अनुकूल था। इसलिये भी अनुकूल था कि" यह छल करने की गुस्ताखी नहीं कर सकता था। यह धोखा करने की हिमाकत नहीं कर सकता था, क्योंकि समय ने अपने थपेड़ों से इसे बेहाल कर दिया था। यह इतनी भी हिमाकत नहीं कर सकता था कि" किसी प्रश्न को पुछ सकें, क्योंकि अब तो इसके अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लग चुका था।
तभी तो वो निश्चिंत होकर उस रूम में पहुंची, फिर अपने कंधे से उस थैला रुपी भार को हटाया और कोने में रख दिया। फिर उसने रूम में चारों तरफ देखा, शांत और सुव्यवस्थित। उसने उस रूम में गृहस्थी के सारे साधन जुटा लिए थे और कमरे में कहीं से रोशनी की भी व्यवस्था कर ली थी। कहीं से उसने बिजली के तार खींच लिए थे और कमरे में एक बल्ब भी जला ली थी। तभी तो उसने बल्ब भी जला लिए और फर्स पर ही बैठ गई । फिर कुछ सोचने लगी और अचानक ही उसके चेहरे पर चमक उभड़ उठा। उसके हृदय में दबी हुई चिंगारी जैसे भड़क उठी हो। आँखों में चमक के साथ चमकता हुआ विश्वास। उसे विश्वास था अपने बाहुबल पर, जानती थी कि" जो करना चाहती है, वो वह कर सकती है। अपने मंसूबों को अंजाम देने की हिम्मत है उसमें। तभी तो वो मुस्कराई और अचानक ही ठहाके लगाने लगी।
हा-हा-हा-हा-हा।
इसके बाद उसके कंठ से निकला हुआ ठहाका उस जर्जर हो रहे खंडहर में गुंज उठा। उसके विश्वास का ठहाका, उसे जो अनुभूति हो रही थी, उस जीत का ठहाका। जो गुंजने लगा और लगा कि" जैसे खंडहर कंपित होकर उसके ठहाके का अनुमोदन कर रहा हो। लगा कि" खंडहर को जैसे उस औरत के ठहाकों की गुंज में खुद के फिर से जीवंत होने का एहसास सा हुआ हो। इस तरह से कितनी ही देर तक उस औरत का ठहाका गुंजता रहा और फिर अचानक ही वो औरत रोने लगी। कुछ देर पहले तक जो उसकी ठहाकों की गुंज आस-पास को गुंजायमान किया हुआ था, उसके करुण क्रंदन ने मानो उस खुशी को छीन लिया था। उसके करुण क्रंदन ने आस- पास के इलाके को बोझिल कर दिया। लगा कि" खंडहर भी कंपित होकर उसके क्रंदन का समर्थन कर रहा हो। उसके रुदन में शामिल होना चाहता हो।
फिर अचानक ही उस औरत ने चुप्पी साध ली और अपने छलक आए हुए आँसू पोंछे और फिर खुद को ही ढृढ विश्वास के साथ बोली। आज तो मैंने बदला ले लिया, भले ही मैं किसी के जान नहीं ले सकी। किन्तु" कितनों को ही गोलियां लगी। कोई बात नहीं, मैं फिर से प्रयास करूंगी, मैं इस समाज में मौजूद एक-एक को नेस्तनाबूद कर दूंगी। किसी को नहीं छोड़ूंगी, किसी को बचने नहीं दूंगी। उसने इन बातों को पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहा और फिर उठी। रूम से बाहर निकली और दाईं ओर बढी। खंडहर के दाईं ओर एक छोटा सा तालाब था, तालाब छोटा था, किन्तु साफ-सुधरा था। लेकिन उस औरत को जैसे इससे कोई मतलब नहीं था। वह तो तालाब में प्रवेश कर गई और डुबकी लगा-लगा कर नहाने लगी। वो करीब घंटे तक नहाती रही, तब तक नहाती रही, जबतक चारों ओर अंधेरा छा गया। इसके बाद बाहर निकली और वापस उसी रूम में आ गई।
इसके बाद उसने अपने कपड़े बदले। लेकिन इस बार भी उसने फटे हुए ही कपड़े पहने हुए थे, लेकिन कपड़े साफ-सुधरे थे। इसके बाद उसने कमरे के कोने में रखे हुए बड़े बक्से को खोला और उसमें से एक बोतल निकला, जो कि सफेद तरल पदार्थ से भरा हुआ था। जी हां, वो कच्ची शराब थी, जिसकी जरूरत अब उस औरत को महसूस होने लगी थी। तभी तो, उसने बोतल के ढक्कन खोले और फिर अपने मुंह से लगा गई। फिर तो, बोतल उसके मुंह से तभी हटा, जब बोतल में आधी ही शराब रह गई थी। इसके बाद उसने बोतल को किनारे रखा और फिर उस फटे-पुराने थैले की ओर बढ गई, आँखों में मकसद की उजास लिए।
उसने फिर तो बड़े प्यार से ए. के. फोर्टी सेवन को थैले से बाहर निकाला और ममत्व के साथ उसपर अपने हाथ फेरने लगी। साथ ही उसके आँखों में उत्तेजना का भाव भी जागृत हुआ। तभी तो सहसा ही वो अपने आप से बोलने लगी। "रजौली" तुझे चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। क्या हुआ जो आज तेरा निशाना कुछ चुक कर गया" लेकिन तू कभी तो कामयाब होगी। इन वहशी दरिंदों की टोलियों में लाशों के अंबार लगा देगी। तू इस तरह से निराश मत हो "रजौली"। इतना कहने के बाद वह मादक द्रव्य बाली बोतल उठा लाई और मुंह से लगाकर गट- गट पीने लगी। इतनी तेजी के साथ पीने लगी, कि" उसका सांस फूलने लगा। फिर तो, बोतल खाली होने के बाद ही उसके मुंह से हटा, साथ ही उसके मुंह से आनंद की डकार भी निकली, मानो वह तृप्त हो गई हो। इसके बाद वो बाक्स खोलकर उसमें से मैगजीन निकाल लिया और ए. के. फोर्टी सेवन में लोड करने लगी, खूंखार इरादे के साथ।
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क्रमशः-