सलिल, रजौली के द्वारा इस तरह लगाए जा रहे ठहाकों से परेशान हो चुका था। उसे उम्मीद थी कि" रजौली इस तरह के हरकत करने के बाद शांत हो जाएगी और फिर उसके साथ सहयोग करेगी। किन्तु नहीं, रजौली तो रुक-रुक कर करीब एक घंटे से ठहाके ही लगा रही थी। उसके हंसने का अंदाज भी तो कुछ अलग था, "वो जब भी ठहाके लगाकर हंसती थी, उसका पूरा शरीर कंपन करने लगता था। लगता था कि" अचानक ही उसके शरीर में भू-कंप के झटके लगने लगे हो। ऐसे में तो पूछताछ हो सके, ऐसी स्थिति बन ही नहीं सकता था। इस दरमियान सलिल दो बार काँफी की चुस्कियां ले चुका था। हलांकि, उसने रजौली को भी काँफी दिया, किन्तु रजौली ने काँफी के कप को अभी तक छूआ भी नहीं था।
धीरे-धीरे आगे की ओर बढता हुआ समय और अब सुबह के नौ बजने बाले थे। ऐसे में सलिल की बेचैनी बढती जा रही थी। रजौली का करीब एक घंटे से इस तरह से हंसना, सलिल की बेचैनी पल- प्रति पल बढाता जा रहा था। जबकि, उसके अगल-बगल बैठे हुए राम माधवन एवं रोमील, समझ ही नहीं पा रहे थे कि" इस परिस्थिति में क्या बोले?....उनके बस में तो सिर्फ यही था कि" टाँर्चर रूम में व्याप्त तनाव को महसूस करें। बीतता समय और बढती हुई बेचैनी,.....सलिल जानता था कि" कभी भी एस. पी. साहब अधिकारियों के साथ आ सकते है, इसलिये उसने रजौली के आँखों में देखा और गंभीर होकर बोला।
रजौली"...तुम इस तरह से हरकत करोगी, तो फिर किस तरह से काम चलेगा?....तुम तो अब अपनी हंसी को रोको और बोलो। बोलने के बाद सलिल ने अपनी नजर रजौली के चेहरे पर टिका दी। जबकि" उसके बाद अचानक ही रजौली रुकी, फिर धीरे से बोली।
तो इसका मतलब है साहब!.....कि" आपको मुझमें किसी प्रकार की दिलचस्पी नहीं है। किन्तु" इससे पहले तो ऐसा नहीं हुआ था। मैं तो अपने इसी शरीर के बदौलत ही इतने काम करती आई थी। जो भी चाहती थी, इसी शरीर को परोस कर करवा लेती थी। रजौली ने कहा और फिर उसने मादक अंगड़ाईं ली और सलिल की ओर इस तरह से देखा, मानो कि" उसे निमंत्रण दे रही हो। जबकि, उसकी बातें सुनते ही तीनों की बौखलाहट बढ गई, जो उनके चेहरे से परिलक्षित होने लगा, तभी तो सलिल बोला।
देखो रजौली, इस तरह से तुम मेरा और अपना, दोनों का समय बर्बाद कर रही हो।.....इस तरह से तो न तुम बच पाओगी और न मैं किसी निष्कर्ष पर पहुंच पाऊँगा। बोलने के बाद एक पल के लिए रुका सलिल, फिर आगे बोला। देखो रजौली" तुमने गंभीर अपराध किए और इस स्थिति में तुम्हें बतलाना होगा कि" तुमने ऐसा क्यों किया?. तुम इस तरह से हरकत करोगी, इस से बच जाओगी, ऐसा तुम सोचो भी नहीं। सलिल ने कहा और रजौली के आँखों में देखने लगा। जबकि" उसकी बातें सुनते ही रजौली मुस्कराई और फिर बोली।
साहब!.....आप न अभी तक समझ नहीं सके कि" मैंने जो वारदात अंजाम दिए है, वह आतंकवादी घटना है। बोलने के बाद एक पल के लिए रुकी रजौली, फिर सर्द स्वर में बोली। साहब!....मैं आतंकवादी हूं और इस शहर को तबाह कर दूंगी। किसी को जिंदा नहीं छोड़ूंगी, किसी को भी बचने नहीं दूंगी। कहने के बाद रजौली फिर से ठहाका लगाने लगी। जबकि, उसकी बातों ने और उसके इस तरह से ठहाके लगाते देखकर तीनों भौचक्के रह गए। सलिल को तो लगा कि" उसके हृदय की धड़कन ही रुकने बाली हो। रजौली ने अपनी बातें ही इस अंदाज से कही थी और उसके बाद जो ठहाका लगाया था.....किसी के दिल की धड़कन बढाने के लिए पर्याप्त था। तभी तो सलिल ने रजौली को आश्चर्य भरी नजरों से देखा और धीरे से बोला।
सत्य बतलाना रजौली!.....कि" तुम चाहती क्या थी?...... फिर अपने प्लानिंग भी बतलाओ?....बोलने के बाद एक पल के लिए रुका सलिल और रजौली के आँखों में देखते हुए बोला।....मैं बस इतना ही जानना चाहता हूं कि" तुम करना क्या चाहती हो और आगे की प्लानिंग क्या है?.... सलिल ने कहा और नजर रजौली के चेहरे पर टिका दी, फिर तो रजौली के होंठों से ठहाके गुंजने लगे। किन्तु" दो पल बाद ही रुकी और फिर बोली।
साहब!....आप न, प्लानिंग जानकर ही क्या कर लोगे?... मैं तो बस इस शहर को ही ध्वस्त करना चाहती हूं। हाँस्पिटल, काँलेज, रेलवे स्टेशन और चौक, कहीं भी नहीं छोड़ूंगी। सब को तबाह कर दूंगी, सब को बर्बाद कर दूंगी। बोलने के बाद एक पल के लिए रुकी वो, फिर अपने शब्दों पर जोर देकर बोली। एक जोरदार धमाका होगा"... धड़ाम" और सब बर्बाद। बोलने के बाद रजौली ने अचानक ही चुप्पी साध लिया। उसके चेहरे के भावों से यही लगता था कि" अब वो बोलना नहीं चाहती।
एक तो उसके द्वारा फोड़ा गया शब्दों का बम, उसने जो कहा था कि" एक धमाका होगा और सब कुछ खाक हो जाएगा। उसने सलिल के दिमाग को फ्रीज करके रख दिया था। उसपर दुविधा ये कि" रजौली ने चुप्पी की जो भाव-भंगिमा बनाई थी, उसने सलिल के दिमाग में आतिशबाजी शुरु कर दी थी। सलिल इतना तो समझ चुका था कि" उसके सामने जो रजौली नाम की ये औरत बैठी हुई है, पहुंची हुई चीज है।...किन्तु" उसके द्वारा कहे गए शब्दों का अर्थ भी तो जानना जरूरी था। परन्तु किस प्रकार से?....प्रश्न था, जो कि उसके दिमाग में घूमने लगा। अब ऐसी भी बात नहीं थी कि" रोमील एवं राम माधवन इससे अलग सोच रहे थे। उन दोनों का दिमाग तो और भी उलझ गया था" रजौली के बातों को सुनकर। तभी टाँर्चर रूम में रामदिन नाम का सिपाही दौड़ता हुआ आया और उसने सलिल को जानकारी दी कि" एस. पी. साहब अधिकारियों के साथ आए हुए है। बस सलिल ने राम माधवन की ओर इस तरह से देखा, मानो कि" कह रहा हो, तुम देख लेना।
फिर रोमील के साथ टाँर्चर रूम से बाहर निकला और तेज कदमों से चलता हुआ आँफिस में पहुंचा और आँफिस में पहुंचते ही उसकी नजर एस. पी. विनय त्यागी पर गई। साथ ही डी. जी. कुमुद देव भी बैठे हुए गेट पर नजर टिकाये हुए थे। तभी तो सलिल ने सैल्यूट दिया, फिर बढकर अपनी शीट पर बैठ गया। इस दरमियान उसने महसूस किया कि" एस. पी. साहब की नजर उसपर ही टिकी है और उसमें प्रश्न है। ....सलिल तो पहले से ही जानता था कि" एस. पी. साहब कभी भी आ सकते है। मैटर भी गंभीर था, पंद्रह अगस्त नजदीक था और ऐसे में पब्लिक प्लेस पर हुई वारदात ने आँफिसरों के होश उड़ा दिए थे। तभी तो दोनों ही अधिकारी आ धमके थे इस समय। तभी तो अपनी जगह पर बैठते ही सलिल उनसे मुखातिब हुआ और उन्हें बतलाने लगा कि" रजौली से किस तरह की बातचीत हुई है।
और उसके द्वारा कहे शब्दों ने अधिकारियों की चिन्ता बढा दी। तब तक रोमील काँफी लेकर आ चुका था, इसलिये उन लोगों ने काँफी पिया और फिर वहां से निकल कर टाँर्चर रूम में पहुंचे। वहां पर एस. पी. साहब ने रजौली को देखा जरूर, किन्तु" उन्होंने उससे किसी प्रकार की बातचीत नहीं की। फिर वहां से वे लोग निकल कर आँफिस में आकर बैठ गए। फिर तो उन लोगों के बीच चुप्पी छा गई। शायद तीनों ही अपने-अपने स्तर पर "रजौली के द्वारा कहे गए शब्दों का निष्कर्ष निकालना चाहते थे। परन्तु, जब उन तीनों के समझ में कुछ नहीं आया, ऐसे में एस. पी. साहब ने सलिल को निर्देशित किया कि" शहर में सर्च आपरेशन चलाया जाए। मुख्य- मुख्य जगहों पर पुलिस फोर्स तैनात किए जाए और शहर में पुलिस पेट्रोलिंग बढा दी जाए। सलिल को निर्देशित करने के बाद एस. पी. साहब कुमुद देव के साथ आँफिस से बाहर निकले। सलिल उन दोनों को कार तक छोड़ने के लिए गया।
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क्रमशः-