अचानक ही कुमाऊ रंजन का तबीयत बिगड़ने के बाद सलिल उसे हाँस्पिटल ले आया था। डाक्टरों की टीम कुमाऊ रंजन को इमरजेंसी वार्ड में ले गई थी। परन्तु अब तक सलिल इस सदमे से बाहर नहीं आ सका था कि" आखिर कुमाऊ रंजन को हुआ क्या?....क्या उसे मानसिक बीमारी है और दौड़े पड़ते है?...या फिर उसने रजौली को देखा, इसलिये उसकी स्थिति ऐसी हुई?...बात तो गंभीर थी ही और जब तक कुमाऊ रंजन ठीक नहीं हो जाता, इस रहस्य से पर्दा भी नहीं उठने बाला था।
वेटिंग रूम में बैठा हुआ सलिल, उसके अगलबगल शांतनु देव और रोमील बैठे हुए थे, फिर भी खुद को अकेला महसूस कर रहा था और अमूमन होता भी यही है। जब इंसान मानसिक दबाव में हो, अपने आप को अकेला ही महसूस करता है। सलिल की इच्छा हो रही थी कि" ताजा हालात से एस. पी. साहब को अवगत करवा दे। परन्तु....हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, जानता था कि" साहब का मुड अच्छा नहीं रहा, तो बोल सकते है कि, सलिल!...तुम भी न, तुम्हारे सामने रजौली नाम की इक प्राँबलम मौजूद है सुलझाने के लिए। परन्तु....तुम हो कि" दुनिया के टेंशन लिए फिरते हो। सलिल शायद इस से आगे भी सोचता, परन्तु तभी शांतनु देव उससे मुखातिब हुआ और प्रश्न दाग दिया।
सलिल!....एक बात समझ में नहीं आया। कुमाऊ रंजन का रजौली को देखकर इस तरह से रिएक्ट करना, जैसे कि" उसे बहुत दिनों से जानता हो। बोलने के बाद एक पल के लिए रुका शांतनु देव, फिर आगे बोला। सच कहूं तो यार सलिल!....कुमाऊ रंजन का इस तरह से रिएक्ट करना, मेरे मस्तिष्क में शंका पैदा कर रहा है।
हां सर!...कुछ ऐसा ही समझिए। मैंने भी नोट किया कि" कुमाऊ रंजन ने रज्जो को देखकर ही प्रतिक्रिया दी थी। आप ने देखा न कि" किस तरह से वो बार-बार रज्जो नाम का उच्चारण कर रहे थे और फिर बेहोश हो गए। शांतनु देव की बातें खतम होते ही रोमील भी बोल पड़ा। जबकि, उन दोनों की बातें सुनकर सलिल मुस्कराया। जानता था कि" दोनों इस बातों पर प्रतिक्रिया देंगे। परन्तु....अभी इस विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता था, तभी तो वो शांतनु देव को संबोधित कर के बोला।
यार शांतनु!....अभी कहना मुश्किल है कि" कुमाऊ रंजन ने इस तरह की प्रतिक्रिया क्यों दी?....बोलने के बाद एक पल के लिए रुका सलिल, फिर बोला। अभी तो जब तक कुमाऊ रंजन होश में आकर यह नहीं बतला देता कि" उसे आखिर हुआ क्या है, क्या कहूं। बस इंतजार करते है और देखते है कि, आगे क्या होता है। बोलने के बाद सलिल ने चुप्पी साध ली और उसे इस तरह से चुप्पी साधे देख कर रोमील और शांतनु देव भी मौन हो गए। दोनों समझ गए थे कि" अब सलिल बोलना नहीं चाहता।
ऐसे में गेस्ट रूम में सर्द खामोशी पसर गई और शायद यही स्थिति बहुत देर तक रहता। लेकिन तभी तेज कदमों से चलते हुए अमीत रंजन ने गेस्ट रूम में कदम रखा और उनकी ओर बढने लगा। जबकि उसे आता हुआ देखकर सलिल के आँखों में आशा की चमक उभड़ी। जानता था कि" डाक्टर आया है, तो जरूर ही कुमाऊ रंजन के बारे में ही बतलाने आ रहा होगा। तभी तो सलिल संभल कर बैठ गया, तब तक तो अमीत रंजन उसके पास पहुंच चुका था। फिर तो डाक्टर उसे बतलाने लगा कि" कुमाऊ रंजन होश में आ चुका है। बस इतना ही सुनना काफी था और लगा कि" उसे स्प्रिंग लग गए हो। वो तेजी से उठ खड़ा हुआ और लगभग दौड़ ही गया उस रूम की ओर, जिसमें कुमाऊ रंजन को रखा गया था।
फिर क्या था, रोमील एवं शांतनु देव ने उसका अनुसरण किया और जब वे लोग रूम में पहुंचे, कुमाऊ रंजन शून्य आँखों से दीवाल को देख रहे थे। ऐसे में जब पदचाप की आवाज उभड़ी, उसने गेट की ओर देखा और गेट पर उन तीनों को देखकर गहरी सांसे ली। उसके आँखों में आश्चर्य के भाव थे, जैसे कि" आगंतुक को पहचानता नहीं हो। तभी तो उन्हें इस तरह से देखते पाकर तीनों ही भौचक्के रह गए और सलिल के दिमाग में यही बात आया कि" क्या कुमाऊ रंजन की याददाश्त लौट चुकी है?....क्या वो मानसिक तौर पर स्वास्थ्य हो चुके है?. प्रश्न था, जो सहज ही उसके दिमाग में कौंधा था। फिर भी, जब तक वे कुछ बोलते नहीं, कंफर्म कुछ कहा नहीं जा सकता था। तभी तो तीनों उनके करीब पहुंचे।
मिस्टर!.....आप लोगों को पहचाना नहीं। आप लोग कौन है और मैं यहां कैसे आ गया?....बोलने के बाद कुमाऊ रंजन आश्चर्य भरी नजरों से उन तीनों के चेहरे को देखने लगा। जबकि" उनकी बातों को सुनकर तीनों अचंभित हो गए। परन्तु....सलिल तुरंत ही संभल गया।
फिर वो कुमाऊ रंजन को बतलाने लगा कि" दो दिन पहले से क्या हो रहा है और वो एक दिन पहले भिखारी के वेश में मिले थे। कुमाऊ रंजन उसकी बातों को आश्चर्य चकित होकर सुन रहा था। जबकि सलिल ने उन्हें अपना, रोमील का एवं शांतनु देव से उनको परिचित करवाया। फिर उन्हें बतलाया कि" वह पुलिस स्टेशन में एक "रजौली" नाम की औरत को देख कर चिल्लाए थे और बेहोश हो गए थे। इसके बाद उन्हें हाँस्पिटल लाया गया था। सलिल के अंतिम शब्दों को सुन कर पहली बार कुमाऊ रंजन के चेहरे पर मुस्कराहट चमक उठी। उन्होंने पहले तो गहरी नजरों से तीनों के चेहरे को देखा, फिर उनसे मुखातिब हुआ।
आँफिसर!.....सच कहूं तो मुझे आश्चर्य ही हो रहा है। फिर भी मैं तुम्हारी बात मानूंगा, क्योंकि" नहीं मानने बाली जैसी कोई बात नहीं। बोलने के बाद एक पल के लिए रुके कुमाऊ रंजन, फिर आगे बोले। आँफिसर!...मैं एक बहुत ही बड़े ट्रैजडी से गुजरा हूं। मुझे पता नहीं कि" मैं कितने दिनों तक अपने मानसिक संतुलन से अनभिज्ञ रहा हूं। मुझे यह भी मालूम नहीं कि" इस दरमियान मैंने क्या किया है, अथवा मेरे साथ क्या हुआ है। परन्तु....इतना तो जरूर समझ सकता हूं कि" मेरी मानसिक अस्वस्थता के कारण मैं दर-दर भटका हूं। कहने के बाद कुमाऊ रंजन ने लंबी सांस ली और फिर तीनों को देखने लगे। जबकि, उनकी बात खतम होते ही सलिल तपाक से बोला।
सर!.....बतला सकते है कि" आपके साथ क्या हुआ कि, आप इस तरह से अपना मानसिक संतुलन गंवा बैठे। सलिल ने प्रश्न पुछा, फिर कुमाऊ के रंजन के चेहरे पर नजर टिका दी। जबकि, उसकी बात सुनकर कुमाऊ रंजन लंबी सांस खींच कर बोले।
आँफिसर!....जरूर बतलाऊँगा कि" ऐसा क्या घटित हुआ कि" मैं अपना मानसिक संतुलन गंवा बैठा। परन्तु....इस से पहले मैं उस औरत से मिलना चाहता हूं, जिसे शायद मैंने रज्जो कह कर संबोधित किया था। कुमाऊ रंजन ने धीरे से कहा और फिर उन्होंने चुप्पी साध ली।
सलिल भी इस बात को समझ चुका था कि" जरूर कोई गंभीर बात है। ऐसी कोई घटना है, जिसके बाहर आने से शहर में सनसनी फैल जाए। उस बात को जानने की कौतूहलता तो सलिल के मन में भी जागृत हो चुकी थी। परन्तु....फिलहाल तो कुमाऊ रंजन ने जो कहा था, उस पर ध्यान देने की जरूरत थी। तभी तो, पहले तो उसने शांतनु देव की ओर देखा, जहां जिज्ञासा के भाव मौजूद थे। फिर उसने रोमील को निर्देशित किया कि" उसको क्या करना है। इसके बाद वो खुद ही वहां से निकला और सीधे डाक्टर अमीत रंजन के पास पहुंचा। साथ ही उसने एस. पी. साहब को भी फोन करके ताजा उत्पन्न हुए हालात के बारे में जानकारी दे दी। इसके बाद अमीत रंजन से कुमाऊ रंजन के बारे में जानकारी ली और कहा कि" उन्हें वापस ले जाना चाहता हूं। उसकी बातों को सुनकर डाक्टर साहब ने सहर्ष अनुमति दे दी।
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क्रमशः-