सुबह के पांच बजने के साथ ही सलिल ने अंगड़ाई ली। कहां तो रजौली के कहे अनुसार दिल्ली शहर धमाके की आवाज से दहल जाना चाहिए था, परन्तु....ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। शहर तो अपनी चाल में गति कर रहा था, ऐसे में सलिल का हृदय खीज से भर गया। रजौली ने तो कहा था कि" सब कुछ तबाह कर देगी, किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। तो क्या रजौली" पुलिस को मामु बना रही है। हां, जरूर ऐसा ही होगा, अन्यथा तो कहीं न कहीं तो संदिग्ध गतिविधि घटित होता। परन्तु.....रजौली के बयान को पूरे चौबीस घंटे हो जाएंगे कुछ घंटों बाद। लेकिन अब तक किसी प्रकार की घटना नहीं घटी।
बस, इसी बात को लेकर परेशान हो गया था सलिल। क्योंकि" रजौली के बयान ने सब के होश उड़ा दिए थे और इसलिये ही तो वो पूरी रात पेट्रोलिंग करता रहा था। पागलों की तरह अकेले ही दिल्ली की सड़क पर अपनी कार दौड़ाता रहा। किन्तु" सुबह होने तक जब चारों ओर शांति कायम रही, उसने कार को सड़क किनारे खड़ी करके अंगड़ाइयां लेने लगा। क्योंकि, पूरी रात उसने पलक भी नहीं झपकाई थी और इसलिये ही उसके आँखों पर निंद का असर होता दिख रहा था। कोई और अवसर होता,...तो अब तक सलिल निंद के आगोश में समा चुका होता। परन्तु....फिलहाल तो वो ऐसा नहीं कर सकता था। क्योंकि, उसके दिमाग में जो प्रश्न थे, उसका जबाव उसे नहीं मिल जाता, उसे चैन नहीं आता। ऐसे में सलिल ने कलाईं घड़ी देखी, सुबह के पूरे पांच हो चुके थे। तभी तो उसने नजर इधर-उधर दौड़ाई और चाय की टपरी देखकर उधर ही बढ गया।
साथ ही उसने राम माधवन से फोन कर के जानकारी ले-ली, पुलिस स्टेशन में पूर्ण शांति थी। तभी तो चाय की टपरी पर पहुंच कर उसने चाय पी और वापस कार के पास पहुंचा और ड्राइविंग शीट संभालने के साथ ही उसने कार श्टार्ट करके आगे दौड़ा दी। इसके साथ ही उसके मन में विचार दौड़ पड़े। वह सवाल, जो उसके हृदय को वेधने को तत्पर थे, सलिल उन प्रश्नों पर विचार करने लगा। हृदय में मंथन करने लगा उस प्रश्नों पर। उसे रजौली का व्यवहार ही तो समझ नहीं आ रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि" आखिर क्यों इस तरह से रजौली पुलिस के ध्यान को भटका रही है। हां, इसे ध्यान भटकाना ही कहेंगे, क्योंकि" इस तरह से पुलिस को होने बाले किसी वारदात में उलझा देना, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं हो।
सलिल, बस यही पर आकर उलझ गया। वह जितना रजौली के चरित्र को समझने की कोशिश करता था, उतना ही उलझता जा रहा था। इस परिस्थिति में वह इस निर्णय पर ही नहीं पहुंच पा रहा था कि" रजौली अपराधी है या आतंकवादी। किन्तु" बिना किसी निर्णय पर पहुंचे वह किस प्रकार से आगे के प्रक्रिया को अंजाम देगा, यह भी तो उसके लिए सवाल ही था। उस पर सीनियर अधिकारियों का दबाव और गृह मंत्रालय की खोज-खबर, उसे इन चीजों को भी संभालना था। परन्तु... किस प्रकार से?.....जब तक वह रजौली के व्यक्तित्व को अच्छी तरह से समझ नहीं लेता, आगे की प्रक्रिया किस तरह से आगे बढेगी। परन्तु....भले ही कितनी भी चुनौती हो, काम को तो उसे ही अंजाम देना था। क्योंकि" डिपार्ट मेंट में न शब्द होता ही नहीं,....बस पोसीवल एज एवरी थींग। असंभव तो कहना, पुलिस की डिक्सनरी में लिखा ही नहीं होता।
तभी तो, जब वह पुलिस स्टेशन के करीब पहुंचा, तब चौंका। फिर तो, उसने कार प्रांगण में खड़ी की और आँफिस की ओर बढा। वैसे भी अब लगता था कि" कभी भी सूर्य देव आसमान में ऊपर आ सकते थे और धरती सूर्य के किरणों से जगमग कर सकती थी। तभी तो, सलिल एक नई ताजगी से भर चुका था और अब दुगुने जोश के साथ अपने कदम बढा रहा था। बीतता हुआ समय, उसे हाँल में ही राम माधवन मिल गया, तो उसे काँफी लाने के लिए कहा और अपने आँफिस में पहुंचा। परन्तु.....अभी तो वह कुर्सी पर बैठा ही था कि" उसकी नजर गेट से प्रवेश कर रहे एस. पी. साहब पर गई और वो कुर्सी से उछल पड़ा, जैसे कि, उसे स्प्रिंग लगा हो। फिर तो उसने जोरदार सैल्यूट दिया और उनके बैठने के बाद बैठ गया। फिर तो, एस. पी. साहब की नजर सलिल पर टिक गई, जिसकी अनुभूति सलिल को भी थी। परन्तु....सामने से बोलना, मतलब कि मुसीबत को निमंत्रण देना। तभी तो, वह इंतजार करने लगा कि" एस. पी. साहब क्या बोलते है?....वैसे भी, उसने सुबह ही फोन करके पुलिस मूख्यालय फोन कर के अब तक के सारे रिपोर्ट दे दिए थे, इसलिये निश्चिंत था।
सलिल!....तुम्हें क्या लगता है रजौली के बारे में?....मेरे विचार से तो वो पुलिस को गोली दे रही है। एस. पी. साहब ने कहा और नजर उसके चेहरे पर टिका दी। जबकि, उनकी बातों को सुनकर एक पल के लिए सलिल विचार मग्न हो गया, परन्तु कब तक?...जबाव तो देना ही था, तभी तो धीरे से बोला।
सर!....फिलहाल तो मैं इस बारे में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया हूं।
तो फिर चलो, रजौली से चलकर अभी मिलते है। उसकी बातें खतम होते ही एस. पी. साहब ने कहा और फिर नजर उसपर टिका दी।
बस बाँस का कहा शब्द आदेश ही तो होता है, तभी तो सलिल ने सहमति में सिर हिलाया। तब तक राम माधवन काँफी का कप लेकर आ चुका था, इसलिये दोनों ने काँफी पी और फिर आँफिस से बाहर निकले। साथ ही सलिल ने राम माधवन को समझा दिया कि" वो रजौली को लेकर टाँर्चर रूम में पहुंचे। फिर तो पंद्रह मिनट बाद एस. पी. साहब, रोमील एवं राम माधवन रजौली के सामने बैठे हुए थे। उनकी नजर रजौली पर ही टिकी हुई थी, जबकि" रजौली तो अपने आप में व्यस्त थी। वह तो नजर भी उठा कर उन तीनों की ओर नहीं देख रही थी। ऐसे में स्वाभाविक ही था कि" उन तीनों के चेहरे पर बेचैनी के भाव परिलक्षित होने लगे। उसमें भी सब से ज्यादा एस. पी. साहब के चेहरे पर ज्यादा व्यग्रता थी। तभी तो वे रजौली को संबोधित करके बोले।
रजौली!....मैंने अनुभव किया है कि, तुम अपने बयानों से पुलिस को गुमराह कर रही हो। बोलने के बाद एक पल के लिए रुके एस. पी. साहब, फिर गंभीर होकर बोले। देखो, इस तरह से जो तुम व्यवहार करोगी, तो तुम और भी कानून के शिकंजे में फंसती चली जाओगी। ऐसे में तुम्हारे लिए भलाई इसी में है कि" पुलिस के साथ पूर्ण सहयोग करो, शायद तब जाकर ही तुम पुलिस और कानून, दोनों के शिकंजे से बच पाओगी। एस. पी. साहब ने कहा और उसपर नजर टिका दी। इधर सलिल और राम माधवन की नजर भी रजौली के चेहरे पर टिक गई थी। जबकि" रजौली ने सुना और एक पल के लिए कुछ सोचती रही, फिर धीमे स्वर में बोली।
साहब!....आप भी न, भले ही मेरी बातों पर विश्वास नहीं करो, परन्तु मैं सत्य कहती हूं। बोलने के बाद रजौली रुकी, फिर उसने एस. पी. साहब के नजरों में पिरोया, फिर आगे बोली। साहब!...आप भले ही विश्वास नहीं करो, किन्तु" मैं आतंकी हूं और मैंने स्लीपर सेल बनाया हुआ है।
इसके बाद तो रजौली के मन में जो भी आया, बोलती चली गई। ऐसे में तीनों आश्चर्य चकित हो कर उसे देख रहे थे और उनकी बातों को सुन रहे थे। भले ही उसकी बातें विश्वास करने योग्य नहीं थी, परन्तु....जिस तरह से वह आत्म- विश्वास के साथ कह रही थी, उनको तो विश्वास करना ही था। साथ ही पंद्रह अगस्त नजदीक होने के कारण टेंशन भी था। तभी तो तीनों उसकी बातों को ध्यान पूर्वक सुनते जा रहे थे, समय अपनी गति से आगे की ओर बढता जा रहा था। फिर तो, जब रजौली ने अपनी बात खतम की, उसने मौन धारण कर लिया।
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क्रमशः-