सुबह के आठ बज चुके थे और इसके साथ ही चारों ओर प्रकाश का साम्राज्य छा चुका था। वैसे भी आकाश साफ था, जिसके कारण किरण का निखार कुछ ज्यादा था। लेकिन मंत्री भानु शाली के चेहरे से प्रतीत हो रहा था कि" उनके चेहरे पर शंका के बादल उमड़- घुमड़ रहे थे। तभी तो बंगले से बाहर निकले और कार की ओर बढे, इन शंकाओं के साथ कि" आने बाले समय का पदचाप किस तरह का हो सकता है और यह किस ओर इशारा करता है। मंत्री भानु शाली समय के उसी पदचाप को सुनने की कोशिश कर रहे थे, किन्तु" उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही थी।
क्योंकि, एक समय ही तो है, जिसके पदचाप को कोई समझ नहीं सकता। यह ऊँट की भांति किस करवट बैठ जाए, कहना आसान नहीं होता। ऐसे में बस, इंसान के बस में यही होता है कि" वो समय के साथ चलने की कोशिश करें और यही उसके बस में होता है। बाकी तो समय प्रारब्ध के आधार पर ही गति करता है। आपने जो भूत में किया है, वर्तमान और भविष्य उसी के आधार पर निर्धारित होता है। मानव के द्वारा किया गया कर्म अगर गलत है, तो फिर आगे जीवन में वही कर्म विषधर पौधे का रुप लेकर फलदाई हो जाता है। बस.....मंत्री भानु शाली के हृदय में इसी बात की चिन्ता थी, उसको भय था कि" भूत में किया गया उनके द्वारा कर्म उनके राहों में कांटे बनकर नहीं उभड़ जाए।
बस इसी चिन्ता के साथ उसने कार को श्टार्ट किया और आगे बढा दिया। फिर तो कार बंगले से निकलते ही सड़क पर फिसलती चली गई। मंत्री भानु शाली, जिसको अहंकार था अपने पद-प्रतिष्ठा का, अपने पाँवर का। तभी तो वे नहीं चाहते थे कि" उनका यह पाँवर, उनकी पहुंच एक पल में धूल-धूसरित नहीं हो जाए। इसलिये तो वे पंडित जगतपति से मिलने जा रहे थे। उससे मिलने जा रहे थे, जो कि उनके हर एक अच्छे और बुरे कर्मों में सम्मिलित होता था। उनके हर एक राज का राजदार था। तभी तो उन्होंने कार की रफ्तार बढा दी थी मंजिल तक पहुंचने के लिए और जैसे ही उनकी कार आध्या निवास पहुंची,....मंत्री साहब ने कार पार्क किया और बिल्डिंग के मुख्य द्वार की ओर बढ गए।
आध्या निवास वैसे तो छोटा सा बंगला था, किन्तु उसकी सजावट इस तरह से की गई थी कि" बिला भी शरमा जाए। दो मंजिला आध्या निवास, जहां पंडित जगतपति अपने बच्चों के साथ निवास करते थे, उनका बेटा सुलभ और पुत्री रेणुका। उनकी पत्नी जगदंबा धार्मिक महिला थी और ज्यादातर धर्म यात्रा पर ही रहती थी। ऐसे में पंडित जगतपति के जीवन में आनंद ही आनंद था और अभी भी वे टीवी के सामने बैठकर जीवन का आनंद लेने में व्यस्त थे। तभी भानु शाली ने हाँल में कदम रखा और पंडित जगतपति के चेहरे पर मुस्कान निखर उठा, तभी तो वो बोला।
आइए- आइए मंत्री साहब!....आपके कदम इस गरीब खाने पर पड़ा। इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है। जगतपति ने मुस्करा कर कहा और मंत्री साहब के चेहरे पर नजर टिका दी। जबकि उसकी बातों को सुनकर मंत्री साहब मुस्कराए बिना आगे बढे और सोफे पर बैठ गए, उसके बाद उन्होंने जगतपति के चेहरे पर नजर टिकाया और धीरे से बोला।
जगतपति!....कभी-कभी फिल्मी दुनिया के रंग-नाच देखने के अलावा न्यूज भी देख लिया करो। तब मतलब समझ आ जाएगा कि" तुम्हारे गरीब खाने पर यह अमीर क्योंकर आ टपका। मंत्री साहब ने अपने शब्दों को चबाकर कहा और नजर जगतपति के चेहरे पर टिका दी। जबकि जगतपति" मंत्री साहब के इस तरह से घुमाकर बात करने पर चौंका और फिर एक पल के लिए चुप्पी साधकर इस बारे में सोचता रहा कि" मंत्री साहब का स्वर इस तरह से क्यों बदला हुआ है। फिर उसने मंत्री साहब के चेहरे को देखा और धीरे से बोला।
मंत्री साहब!....हम तो ठहरे धार्मिक प्रवृति के। भला रास- रंग को नहीं देखेंगे, तो भला इस न्यूज चैनलों को देखकर कौन अपना दिमाग खपाए। बोलने के बाद जगतपति एक पल के लिए रुका और मंत्री साहब के चेहरे की प्रतिक्रिया देखने की कोशिश की, फिर आगे बोला। मंत्री साहब!.... लेकिन बात क्या है?....जो आप इस तरह से उलझी हुई बातें कर रहें है। आपका इस तरह से बात करना, सच कहूं तो, मेरे हृदय के स्पंदन को बढा रहा है। कहने के बाद जगतपति ने मंत्री साहब के चेहरे पर नजर टिका दी और अपने शब्दों की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश करने लगा। जबकि, उसकी बातों को सुनते ही मंत्री भानु शाली बौखला गए, लगा कि क्रोध के कारण उनकी भृकुटि तन गई हो, तभी तो आवेशित होकर बोले।
जगतपति!....तुम तो मसखरी में स्पंदन की बातें कर रहे हो। परन्तु, हकीकतन कहूं तो, सुबह से ही मैं परेशान हूं। तुम जान नहीं सकते कि" मुझ पर क्या बीत रही है। बस समझो कि" आते हुए समय के पदचाप को सुनकर घबरा गया हूं और इसलिये तुम्हारे पास दौड़कर आया हूं। मंत्री साहब ने कहा और उनकी बातें सुनते ही जगतपति गंभीर हो गया। फिर उसने मंत्री साहब के आँखों में देखा। अब उसे विश्वास हो चुका था कि" जरूर कोई गंभीर मुद्दा है। अन्यथा मंत्री भानु शाली जैसा शख्स कभी भी विचलित नहीं होता। जगतपति का हृदय शंका से ग्रसित हो चुका था, तभी तो गंभीर होकर बोला।
मंत्री साहब!....बात क्या है?....इससे पहले तो आपको इस तरह से बेचैन नहीं देखा। लगता है कि" कहीं गंभीर मैटर फंसा हुआ है। किन्तु" जब तक आप बतलाएंगे नहीं, किस प्रकार से जान सकूंगा। जगतपति ने कहा और उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा। जबकि, उसकी बातें सुनते ही मंत्री साहब उसे बतलाने लगे कि" आज सुबह ही उन्होंने किस प्रकार के न्यूज को देखा था।
मंत्री साहब उसे बतलाने लगे कि" आज सुबह से ही वो किस प्रकार से और किसलिये परेशान है। जबकि, उनकी बातें सुनते ही जगतपति का चेहरा पसीने से लथपथ हो गया। लगा कि" मंत्री साहब ने उसके सामने बातों का बम फोड़ दिया हो और उस धमाके में उसका अस्तित्व चिथड़े- चिथड़े बनकर बिखर जाने बाला हो। बात सही भी था, जब भी किसी के सामने उसका अतीत स्याह परत बन कर अचानक ही आ जाता है। उसकी इसी तरह की स्थिति होती है। किन्तु" मानव अपने बीते हुए अतीत के पन्नों से खुद को जुदा नहीं कर सकता। क्योंकि" अतीत किसी के लिए परछाईं के समान होता है, जो कभी न कभी उसके सामने जरूर आता है। आप अच्छा करोगे, तो अच्छी आकृति का रुप लेगा, नहीं तो आपके लिए विष बेल बन जाएगा।
यही तो जगतपति और मंत्री साहब के साथ हुआ था। उनका अतीत उनके सामने आकर उन्हें डराने लगा था। तभी तो मंत्री साहब ने अपनी बात पूरी की और नजर जगतपति पर टिका दी, इस आशा में कि" वह कुछ तो बोलेगा। किन्तु" जगतपति, वह भला क्या बोलता, वह तो मंत्री जी के बातों को सुनकर उलझ गया था और सोचने लगा था। परन्तु,....ऐसे समय में तो मानव की बुद्धि भी कुंद होकर रह जाती है। हां, जगतपति की बुद्धि कुंद होकर रह गई थी, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि “आने बाला समय किस प्रकार का होगा?...यह जो प्रश्न था, उसके हृदय पटल पर अंकित हो चुका था। इस परिस्थिति में मंत्री साहब का इस तरह से आशा भरी नजरों से अपनी ओर देखते पाकर जगतपति और भी परेशान हो गया, उसकी हैरानगी बढ गई।
वैसे इसके बाद उसके दिमाग में जो पहला नाम गुंजा था, वह था "मुहम्मद काजी। हां, इस समय उसके पास ही चलना चाहिए, ऐसा सोचकर उसने इस संदर्भ में मंत्री साहब से बात की। मंत्री साहब ने उसकी बात सुनी और तुरंत ही सहमति प्रदान कर दी। इसके बाद तो दोनों उठकर खड़े हुए और बाहर की ओर निकले। अपने लक्ष्य को साधने के लिए, अपने अतीत की काली परछाईं से पीछा छुड़ाने का प्रयास करने के लिए।
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क्रमशः-