अचानक से ही बरसात की शुरुआत हो जाने के कारण एक पल के लिए सलिल हकबका सा गया। एक तो रात का आलम ढल चुका था, दूसरे आसमान से तेज गति से गिर रही बारिश की बुंदे। एक पल के लिए उसे समझ ही नहीं आया कि, क्या करें। कोई और मौका होता,...तो वो अपनी बाईक खड़ी कर के बारिश के बुंदों से बचने का प्रयास करता। किन्तु" फिलहाल तो उसके पास बारिश में भिंगने के अलावा कोई आँप्सन ही नहीं था। तभी तो तेज बारिश के बुंदों के बीच भी वो अपनी बाईक भगाए जा रहा था। जबकि, पीछे बैठा हुआ कुमाऊ रंजन, उन्होंने तो किसी प्रकार की प्रतिक्रिया ही नहीं दी। उनका इस तरह से शांत बैठे रहना, लगता था कि" उन्हें बारिश में भिंगना अच्छा लग रहा हो जैसे।
धीरे-धीरे आगे की ओर बढता समय और उसी रफ्तार से बढती बाईक। ठीक सात बजे उसकी बाईक पुलिस स्टेशन के कंपाऊंड में पहुंची और बारिश भी बंद हो गई। लगा कि" जैसे उसको ही भीगोगे के लिए पानी की बुंदे आसमान से टपक रही थी। तभी तो, सलिल ने चिढ कर एक बार आसमान की ओर देखा, जहां पर पल भर में ही तारे चमकने लगे थे, क्योंकि" आसमान अब धीरे-धीरे साफ होने लगा था। फिर कुमाऊ रंजन को लेकर अपने आँफिस की ओर बढा। उधर राम माधवन एवं रोमील की नजर सलिल के साथ आ रहे कोई अनजान व्यक्ति पर गई, पीछे-पीछे वे दोनों भी लपके। परन्तु सलिल इस बात से बिल्कुल भी अनजान नहीं था। तभी तो राम माधवन को नाई को बुलाने के लिए भेज दिया और रोमील को फरमान सुना दिया कि" कुमाऊ रंजन को वाथरुम में ले जाकर अच्छी तरह से नहलाए।
फिर तो, रोमील कुमाऊ रंजन को लेकर वाथरुम की ओर चला गया। जबकि, सलिल अपना वर्दी चेंज करने लगा, इस विचार के साथ कि" अब आगे। कहां तो वो रजौली के केस में उलझा हुआ था और कहां वो कुमाऊ रंजन को उठाकर ले आया था। उसे लग रहा था कि" कहीं उसका यह फैसला गलत तो नहीं हो जाएगा? यह आशंका, जो कि, प्रश्न रुप में उसके हृदय में उठने लगी थी। परन्तु....वह तो मानवता की खातिर कुमाऊ रंजन को अपने साथ ले आया था। अब उनकी स्थिति सही हो जाए, तो उनके परिवार के बारे में पूछताछ करके उनको परिवार के हवाले कर दे, फिर आगे रजौली के बारे में सोचेगा।
अभी तो सलिल अपने कपड़े बदल कर कुर्सी पर बैठा ही था कि" गेट से रोमील के साथ कुमाऊ रंजन ने प्रवेश किया। साथ ही पीछे-पीछे राम माधवन भी अंदर आ गया। तब पहली बार गौर से सलिल ने कुमाऊ रंजन के चेहरे को देखा, बाल-दाढी कटिंग हो जाने और कपड़े बदल दिए जाने के कारण कुमाऊ रंजन का व्यक्तित्व काफी आकर्षक लगने लगा था। तभी तो सलिल ने उन्हें बैठने के लिए इशारा किया और अपनी नजर उनके चेहरे पर टिका दी। फिर तो कुमाऊ रंजन उसके सामने बाली कुर्सी पर बैठ गया। बैठ तो राम माधवन और रोमील भी गए थे, इस प्रश्न को मन में लेकर कि" साहब का इरादा क्या है....और किस को पकड़ कर ले आए?....प्रश्न था, जो कि मन में था, परन्तु....पुछने की हिम्मत नहीं जुटा सके। लेकिन, उन दोनों के हाव-भाव से सलिल को फिलहाल तो कोई मतलब नहीं था, तभी तो कुमाऊ रंजन से मुखातिब होकर बोला।
मैं अगर गलत नहीं हूं, तो आप कुमाऊ रंजन है। स्टेज आर्टिस्ट और मशहूर साहित्यकार?.....सलिल ने प्रश्न पुछा और अपनी नजर कुमाऊ रंजन के चेहरे पर टिका दी। जबकि, उसकी बातें सुनकर एक पल के लिए कुमाऊ रंजन ने अकबका कर इधर-उधर देखा, फिर उसकी ओर देख कर बोला।
हां, तो इससे तुमको क्या मतलब है?...मैं कुमाऊ रंजन होऊँ, या कमाऊ रंजन। फिर इस तरह के प्रश्न पुछने का क्या मतलब है?....फिर तो मैं तुम लोगों को जानता भी तो नहीं हूं। ऐसे में अपने बारे में तुम लोगों को क्यों बतलाने लगूं?....कुमाऊ रंजन ने अटपटी बातें कही और सलिल के चेहरे को देखने लगा। जबकि उनकी बातें सुनकर एक पल के लिए सलिल सोच में पड़ गया। फिर काफी सोच-विचार के बाद आगे बोला।
बात तो आपकी सच ही है। आप भले ही हम लोगों को नहीं पहचान पा रहे हो, परन्तु....मैं आपको अच्छी तरह से जानता हूं। बोलने के बाद एक पल के लिए सलिल रुका, फिर कुमाऊ रंजन की आँखों में झांकते हुए बोला। सर!... आप साहित्यकार और मजे हुए आर्टिस्ट है। भले ही आप मानसिक चिन्ता के कारण अपनी स्थिति के बारे में समझ नहीं पा रहे हो, परन्तु मैं स्थिति को समझ चुका हूं। तभी तो आपको लेकर यहां आ गया हूं। अब आप अपने बारे में बतलाइए, जिससे कि" आपको आपके परिवार के हवाले कर सकूं। सलिल ने अंतिम के शब्दों पर जोर देकर कहा और फिर पूर्ववत उनके चेहरे को देखने लगा। जबकि" उसकी बातें सुनकर कुमाऊ रंजन मुस्कराया, फिर धीरे से बोला।
आँफिसर!....तुमने ठीक ही किया कि" मुझे यहां पर लेकर आ गए। परन्तु आँफिसर!...जब तक तुम मुझे पेट भर के भोजन नहीं करवाओगे, मैं अपने बारे में कुछ भी नहीं बतलाने बाला। बोलने के बाद एक पल के लिए रुके कुमाऊ रंजन, फिर आगे बोले। सच कहूं तो आँफिसर!... बहुत दिनों से मैंने भरपेट भोजन नहीं खाया है और कहते है न कि "भूखे भजन नहीं होही गोपाला, लै लो अपनी कंठी माला"। बोलने के बाद अचानक ही कुमाऊ रंजन ठहाके लगाकर हंसने लगा। हा-हा-हा-हा।
कुमाऊ रंजन को अचानक ही इस प्रकार से हंसते देखकर सलिल चौंका। जबकि, रोमील एवं राम माधवन सकते में आ गए। स्वाभाविक ही था कि" कुमाऊ रंजन के हरकतों से कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि" उनका मानसिक संतुलन सही नहीं है। बात ठीक भी थी, इस बात को सलिल पहले ही समझ चुका था, तभी तो उनको साथ लेकर पुलिस स्टेशन लेकर चला आया था। किन्तु अब?...प्रश्न उठा उसके दिमाग में, लेकिन पहले तो कुमाऊ रंजन की पेट पुजा हो, इसके बारे में सोचना था। तभी तो, उसने रोमील को निर्देशित किया कि" कुमाऊ रंजन को अपार्ट मेंट पर लेकर जाए और उनके खाने के लिए व्यवस्था करें। इतनी बातें कहने के बाद राम माधवन के साथ आँफिस से बाहर निकला, पेट्रोलिंग करने के लिए।
जानता था कि" पंद्रह अगस्त नजदीक होने के कारण आतंकी हमले की संभावना बहुत ही अधिक थी। उसपर रजौली के द्वारा दिए गए बयान ने तो जैसे पुलिस डिपार्ट के हाथ-पांव ही फूला दिए थे। ऐसे में वह नहीं चाहता था कि, उससे किसी प्रकार की गलती हो। उस पर भी, उसका डिपार्ट मेंट उसपर कुछ अधिक ही विश्वास करता था और सलिल नहीं चाहता था कि" उस विश्वास में किसी प्रकार की कमी हो। तभी तो वो राम माधवन के साथ आँफिस से निकल कर बाहर आया और फिर दोनों कार में बैठ गए। फिर तो ड्राइविंग शीट संभालने के साथ ही राम माधवन ने कार श्टार्ट करके आगे बढा दी और पुलिस स्टेशन से निकलने के बाद कार को रफ्तार पकड़ते देर नहीं लगी।
किन्तु" अभी अपने कार्य पर फोकस करने की बजाए सलिल कुमाऊ देव में ही उलझ गया था। कहां तो उसे रजौली के बारे में सोचना चाहिए था और कहां वो कुमाऊ देव पर अटक गया था। तभी तो, कभी- कभी उसे लगता था कि" उसने कुमाऊ देव को साथ लाकर गलत तो नहीं कर दिया। फिर तो उसका हृदय गवाही देने लगता था कि" उसने जो किया, वह मानवता के नाते बिल्कुल ठीक ही है। ऐसे में उसकी इच्छा हो रही थी कि" इस बारे में एस. पी. साहब को बतला दे। परन्तु... उन्हें क्या बतलाएंगे?...यह भी तो एक प्रश्न ही था। तभी तो उसने अपने सभी विचार झटके और वर्तमान के बारे में सोचने की कोशिश करने लगा। किन्तु" कुमाऊ रंजन भी तो वर्तमान ही थे, तभी तो सलिल बार-बार उनपर ही आकर अटक जाता था।
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क्रमशः-