शाम ढलने को तत्पर था और लगता था कि" रात के अंधेरे का आवरण अब वातावरण को अपने आगोश में समेट लेगा। ठीक उसी तरह मंत्री भानु शाली के हृदय में भी भय रुपी अंधेरा घनघोर बादल की तरह बढते जा रहे थे और आतुर थे उनके व्यक्तित्व को ही अपने आगोश में समेटने के लिए। उनका बंगला, जो रोशनी की चादर ओढ कर इस अंधेरे से लड़ने को तत्पर हो चुका था। परन्तु.....उनके मन में जो अंधेरा व्याप्त हो चुका था, उससे किस तरह से पीछा छुड़ाते?...उन्हें तो जिसकी उम्मीद नहीं थी, वही हुआ था। उनका अतीत उनके सामने आकर खड़ा हो गया था और वह भी विकराल रुप लेकर।
जीवन के इस मुकाम पर आकर वो खुद को असहाय सा महसूस करने लगे थे अब। इससे पहले तो कभी भी उनकी मानसिक स्थिति इस तरह से अवसाद ग्रस्त नहीं हुआ था।....कभी भी कोई समस्या आता भी था, तो वे पैसे और पाँवर के बल पर उस समस्या से जीत जाते थे। किन्तु" अब जाकर उन्हें महसूस होने लगा था कि" कभी-कभी पैसे और पाँवर भी धरे रह जाते है, जब समय विपरीत होने लगता है। तभी तो उनके हृदय में व्याकुलता ने डेरा सा जमा लिया था। तभी तो आने बाले समय के पदचाप सुनकर मंत्री भानु शाली की बुद्धि कुंठित होने लगी थी। हाँल में मौजूद मंत्री भानु शाली सोफे पर बैठे हुए बार-बार करवट बदल रहे थे।
काश कि" इस समय पुजारी जल्द ही आ जाता। उसके आने से कम से कम उनके मन की वेदना कुछ कम तो हो जाती। परन्तु....नहीं, उसे तो जब भी जरूरी हो, समय बीता कर आना है। उसकी पुरानी आदत है कि" जब भी उसे बुलाओ, कभी समय पर नहीं आता। हलांकि, मंत्री साहब ने काजी, पुजारी और वकील, तीनों को ही मिलने के लिए बुलाया था। परिस्थिति ही ऐसी बन चुकी थी कि, जरूरत भी इसी की थी। आज जिस तरह से कोर्ट रूम में वकील दिगंबर की एक नहीं चली थी, उसने उनके कान खड़े कर दिए थे। उनके लिए यह समझना काफी था कि" आने बाले समय की पदचाप उनके विरुद्ध जाती है। ऐसे में इस समस्या पर मंथन करने की जरूरत आन खड़ी थी।
चिन्ता में डुबे हुए मंत्री साहब को देखकर उनकी पत्नी घबरा गई थी। उसने दो बार मंत्री साहब को काँफी बना कर परोसे थे और मंत्री साहब पी भी गए थे। किन्तु" फिर भी उन्हें राहत की अनुभूति नहीं हो रही थी। बार-बार वे गेट की ओर ही देख रहे थे, जिससे कि" उनकी पत्नी समझ गई कि, उन्हें किसी का इंतजार है। तभी तो वो अंदर चली गई थी, जबकि, मंत्री साहब अपने विशाल हाँल में बैठे हुए बस इंतजार ही कर रहे थे और फिर उनके इंतजार का अंत भी हुआ। क्योंकि, इधर अंधेरा घिरा और उधर कंपाऊंड में कार आकर लगी। बस मंत्री साहब ने राहत की सांस ली, क्योंकि, उनके लिए इतना ही समझने के लिए काफी था कि" जरूर उन तीनों में से कोई आया होगा। परन्तु.....उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही, जब उन्होंने देखा कि" पुजारी, काजी और वकील, तीनों ने साथ ही हाँल में कदम रखा।
आइए- आइए साहबान लोगों!...आप लोगों ने तो आकर इस मंत्री निवास को पवित्र ही कर दिया। उन तीनों को देखते ही मंत्री साहब ने तीखी प्रतिक्रिया दी और फिर नजर उन पर ही टिका दी। जबकि, उनकी बातों को तीनों ने सुना, मुस्कराए और आगे बढ कर सोफे पर बैठ गए। फिर तो उन तीनों ने ही मंत्री साहब के चेहरे पर नजर टिका दिया, लेकिन बोले कुछ नहीं। ऐसे में मंत्री साहब के चेहरे पर तनाव बढने लगा। तब जाकर वकील दिगंबर ने कुछ सोचा, फिर बोला।
मंत्री साहब!...आप तो खामखा ही टेंशन ले रहे है। आप जितना सोचते है, मामला उतना भी उलझा हुआ नहीं है। बोलने के बाद एक पल के लिए रुका दिगंबर, फिर आगे बोला। मंत्री साहब!...आप विश्वास रखो कि" जल्द ही कोई न कोई रास्ता निकल आएगा। दिगंबर ने कहा और मंत्री साहब की ओर देखने लगा। जबकि, उसकी बातें सुनते ही मंत्री साहब ने तीखी प्रतिक्रिया दी।
कब हल निकल जाएगा!....जब कि" पूरा ही बेड़ा गरक हो जाएगा। बोलने के बाद एक पल के लिए रुके मंत्री साहब, फिर आगे बोले। कहीं ऐसा तो नहीं कि" तुमने इरादा बना लिया हो कि, मेरा सत्यानाश करके ही मानोगे। सच कहूं, तो मुझे तुम पर शक होने लगा है वकील। परन्तु....एक बात समझ लो कि" अगर मैं तबाह हुआ, तो बच तुम लोग भी नहीं पाओगे। मंत्री साहब ने अपने अंतिम के शब्दों पर जोर देकर कहा और फिर उन लोगों की ओर देखने लगा। जबकि, उनकी बातें सुनते ही पुजारी से नहीं रहा गया, तभी तो बीच में बोल पड़ा।
भानु शाली साहब!....आप भी न, बातों का बतंगड़ बना रहे हो। भला, इन बातों से हम लोग अंजान नहीं है और आप भी, बिना मतलब के अपने-आप को इस तरह से अकेला मत समझो।
तो फिर मैं क्या समझूं पुजारी!...तुम लोग कानून के पंजे में फंसोगे तो अकेले ही जाओगे। बोलने के बाद रुके मंत्री साहब, फिर आगे बोले। लेकिन मेरा तो, इज्जत, मेरा रुतबा और मेरा ये विशाल साम्राज्य दाव पर लग गया है। अगर मैं फंसा न, तो मेरा सब कुछ तबाह हो जाएगा। मंत्री साहब ने कहा और फिर वे लंबी-लंबी सांस लेने लगे। जबकि, उनकी बात सुनकर काजी बोला।
मंत्री साहब!....इस तरह से बेचैन होने से क्या समस्या हल होने बाला है?....नहीं न, तो फिर इस तरह से परेशान क्यों हो रहे हो आप?....समझिए आप कि" आप अकेले इस मामले में नहीं फंसे हुए है, जबकि तलवार हम सभी के सिर पर लटक रहा है। तो फिर हम लोग चैन से इस मसले को सुलझाने की कोशिश करेंगे। काजी ने मंत्री साहब के आँखों में देख कर बोला। जबकि, उसकी बातों को सुन कर मंत्री साहब पूर्ववत बोले।
तो क्या काजी पानी सिर से ऊपर होकर गुजर जाएगा, तब हम लोग इस मसले को सुलझाएंगे। बोलने के बाद एक पल के लिए रुके मंत्री साहब, फिर आगे बोले। तुम भी इस बातों को अच्छी तरह से समझते हो काजी कि" मामला अगर हम लोगों के हाथों से निकला, तो फिर हम लोग कुछ भी नहीं कर पाएंगे। बोलने के बाद मंत्री साहब ने लंबी सांस ली और अभी उन्होंने बात खतम ही किया था कि" वकील गंभीर शब्दों में बोला।
मंत्री साहब!....मैं ने पहले भी कहा था और अब भी वही कह रहा हूं कि" दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका समाधान नहीं हो। हम लोग तो इसलिये ही यहां पर आए हुए है कि" इस मसले को सुलझाने के लिए विस्तरित चर्चा कर सकें।
इसके बाद तो वे लोग सामने आए हुए समस्या पर मन मंथन करने लगे। जहां पुजारी ने उन को सलिल के बारे में बतलाया कि" वह किस प्रकार का आँफिसर है। साथ ही उसने उदाहरण स्वरूप "रति संवाद" और "आथर्व खेमका" के बारे में बतलाया। फिर तो काजी ने बतलाया कि" क्या-क्या संभावनाएँ हो सकती है इस मसले को सुलझाने के लिए। काजी का मत यही था कि" शार्प शूटर को हायर किया जाए और हवालात में ही "रज्जो" को खतम करवा दिया जाए। परन्तु....मंत्री साहब इस प्रकार के रिश्क को लेना नहीं चाहते थे। उन्हें इसमें बहुत ही रिश्क लग रहा था और दूसरी बात, सलिल के बारे में जानते थे, इसलिये उससे पंगा नहीं लेना चाहते थे। ऐसे में मंत्री साहब ने वकील पर दबाव डाला कि" वही कोई रास्ता निकाले, जिससे कि, साँप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे। फिर तो उनके बीच बातें होती ही रही। इस बीच मंत्री साहब की पत्नी उन लोगों को काँफी सर्व कर गई। परन्तु....मसला इस तरह का था कि" उनकी काँफी ठंढी होती रही।
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क्रमशः-