एस. पी. साहब के जाने के बाद जैसे सलिल की तंद्रा टूटी हो। फिर तो उसने रोमील एवं राम माधवन को आँफिस में बुलाया और समझाया कि" उसे आगे क्या करना है? साथ ही उसने पुलिस मूख्यालय भी फोन कर दिया कि" अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेज दिया जाए। फिर तो रोमील एवं राम माधवन पुलिस स्टेशन से निकले और अलग- अलग गाड़ियों में निकल पड़े। वैसे भी अब दिन के दस बजने बाले थे और ऐसे में ज्यादा विलंब करना उचित नहीं था। फिर तो सलिल भी आँफिस से निकला और बाईक के पास पहुंचा। आज वैसे भी उसकी इच्छा थी कि" बाईक से ही पेट्रोलिंग करें।
तभी तो, बाईक पर बैठने के साथ ही उसने श्टार्ट की और आगे बढा दिया। फिर तो पुलिस स्टेशन से निकलते ही सड़क पर फर्राटे भरने लगी। साथ ही उसकी नजर चारों तरफ देखती जा रही थी, इस उम्मीद में कि" कहीं कोई संदिग्ध नजर में चढे। किन्तु" उसे ऐसा कोई भी नजर नहीं आ रहा था, जिसको कह सके कि" हां वो तो संदिग्ध है। परन्तु.....रजौली ने जो कहा, वो गलत भी तो नहीं हो सकता। जरूर आतंकियों ने कोई प्लानिंग की होगी, किन्तु" किस प्रकार की?....प्रश्न था, जो कि उसके दिमाग में घूम रहा था। जानता था कि" पंद्रह अगस्त नजदीक आ चुका है, इस परिस्थिति में आतंकवादियों का टार्गेट होता है कि" कोई बड़े वारदात को अंजाम दे, जिससे कि, पब्लिक में भय और दहशत हो और सरकार की निंद हराम हो जाए।
सलिल इन्हीं बातों को सोच-सोच कर हैरान- परेशान था। परन्तु उसे उम्मीद थी कि" अगर उसने प्रयास किए, तो जरूर ही अपराधी उसके में गिरफ्त होगा। वैसे, उसे इस बात का भी विश्वास था कि" रोमील एवं राम माधवन योग्य आँफिसर है, वे जरूर परिस्थिति को नियंत्रण में ले लेंगे। तभी तो वो बाईक की स्पीड बढाता जा रहा था और बाईक भी फूल रफ्तार से सड़क का शीना रौंदती जा रही थी। आगे की ओर सरपट दौड़ती बाईक और पीछे छूटती ऊँची बिल्डिंगे। वैसे भी बीतते समय के साथ ही शहर की चहल-पहल बढ गई थी। परन्तु....सलिल को इससे मानो कोई मतलब नहीं था। वह तो अपने उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए निकला था और जब तक उसके काम पूरे नहीं हो जाते और विषय के बारे में सोच भी नहीं सकता था।
बीतते समय की गति और पूरे दो घंटे हो गए उसे दिल्ली की सड़क पर उसे बाईक दौड़ाते हुए, परन्तु उसके हाथ निराशा ही लगी। फिर तो बाईक चलाते हुए सलिल थकावट भी महसूस करने लगा। तभी तो उसने सायना रेस्टोरेंट के सामने बाईक खड़ी की और फिर रोमील एवं राम माधवन को भी वहीं पर बुला लिया। फिर तो तीनों रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए बैठ गए, साथ ही रोमील एवं राम माधवन ने उसे बतलाया कि" किस प्रकार से उन्होंने इस इलाके के सुरक्षा को चाक-चौबंद कर दिया है। पेट पुजा होने के बाद फिर से वे तीनों शहर की अलग- अलग दिशाओं में निकल पड़े, इस आशा के साथ कि" कहीं उनके हाथ सफलता लग जाए। कहीं तो कोई आतंकी उनके हाथ लग जाए।
किन्तु" शाम के चार हो गए, फिर भी उन्हें अपने काम में सफलता नहीं मिली। तभी तो सलिल ने रोमील एवं राम माधवन को फोन किया और उन्हें पुलिस मूख्यालय आने को कहा और अपनी भी बाईक उधर ही दौड़ा दी।....जानता था कि" शाम होने बाला है और ऐसे में बाँस को रिपोर्टिंग करने की जरूरत है और साथ ही वे क्या निर्देश देते है?....यह भी तो जानना जरूरी था। तभी तो पुलिस मूख्यालय पहुंचने के बाद उसने बाईक पार्क की और अभी आँफिस बिल्डिंग की ओर बढने ही बाला था, तभी उसकी नजर मूख्यालय गेट से रोमील एवं राम माधवन गाड़ियां लेकर आता हुआ दिखा। फिर तो सलिल रुक गया और उन दोनों के करीब आ जाने के बाद ही आगे बढा।
इधर एस. पी. साहब भी आँफिस में बैठे हुए उन्हीं का इंतजार कर रहे थे। तभी तो, तीनों ने जैसे ही आँफिस में कदम रखा, एस. पी. साहब धैर्य नहीं रख सके और पूरे दिन की रिपोर्ट मांग बैठे। सलिल उनके इस हरकत से एक पल के लिए बौखला ही गया। उसे समझ ही नहीं आया कि" अचानक ही साहब को क्या हो गया। क्योंकि" इससे पहले तो उसने कभी भी एस. पी. साहब को इस तरह से उत्सुक नहीं देखा था। तभी तो तीनों आगे बढे, सैल्यूट दिया और बैठने के बाद सलिल उनको बतलाने लगा कि" किस तरह से उन तीनों ने शहर की अलग- अलग पेट्रोलिंग की और इस दरमियान उन्हें कुछ भी नहीं मिला।
इसके बाद सलिल उन दोनों के साथ पुलिस मूख्यालय से निकला और दोनों को पुलिस स्टेशन जाने के लिए कह कर खुद हाँस्पिटल के लिए निकला। वैसे भी उसे शांतनु देव का हाल-चाल जानना था और उसके साथ में मशविरा भी करना था इस केस के संदर्भ में। तभी तो...... फिर से उसने सड़क पर बाईक दौड़ा दी, इस विचार के साथ कि" आगे क्या-क्या संभावनाएँ हो सकती है?...यह प्रश्न था, जिसका उत्तर अभी भविष्य के गर्त में छिपा हुआ था। क्योंकि" जब तक रजौली सहयोग नहीं करती, उसके बारे में जानना लगभग नामुमकिन ही था। परन्तु सलिल, इन छोटी-छोटी मुसीबतों से घबरा जाए, ऐसा आँफिसर नहीं था।
उसने आथर्व खेमका एवं रति संवाद के केस में ऐसे ही कई प्राँबलम फेश किए थे। किन्तु उसने धैर्य से काम लिया था, तभी तो उसने सफलता पाई थी। आज भी उसे शांतनु देव के सलाह की जरूरत थी, क्योंकि वह रजौली के द्वारा किए जा रहे हरकतों से उलझ चुका था। वो रजौली के व्यक्तित्व को ही समझ नहीं पा रहा था। कभी तो उसे लगता था कि" रजौली की तालुकात किसी आतंकवादी संगठन से है, क्योंकि" उसने जिस प्रकार के वारदात को अंजाम दिया था, इस प्रकार की घटना को आतंकवादी ही अंजाम देते है। फिर कभी उसे महसूस होने लगता था कि" नहीं- नहीं, रजौली जो दिखती है, वह ऐसी नहीं है। जरूर कुछ ऐसी बात है, जो कि उसे समझ नहीं आ रहा है।
फिलहाल तो उसे इस मसले को सुलझाने के लिए किसी शार्प माइंड के इंसान के मदद की जरूरत थी और शांतनु देव ऐसा ही था। सलिल इस बात को भलीभांति समझता था कि" शांतनु देव की समझ बहुत ही गुढ है। वो किसी भी बात को समझता है और उसके बाद ही प्रतिक्रिया देता है और जो प्रतिक्रिया देता है, पूर्ण रुप से सकारात्मक होता है। इसलिये ही तो सलिल शांतनु देव के पास दौड़ा हुआ जा रहा था। एक तो उसके हाल-चाल भी जान लेगा और अपनी उलझनों पर स्पष्ट तरीके से चर्चा कर सकेगा। तभी तो हाँस्पिटल के करीब पहुंचने के बाद सलिल ने फ्रूट जूस खरीदा और फिर बाईक को हाँस्पिटल कंपाऊंड में खड़ी करने के बाद बिल्डिंग की ओर तेज कदमों से बढा।
उसकी इच्छा यही थी कि" जल्द से जल्द शांतनु देव के पास पहुंच जाए। क्योंकि, फिर उसे पुलिस स्टेशन भी लौटना था और साथ ही नाइट पेट्रोलिंग के लिए भी तो निकलना था। तभी तो, जिस रूम में शांतनु देव था, उस रूम में पहुंचने में उसे कुछ पल ही लगे और जब वो रूम में पहुंचा, शांतनु देव को उपन्यास पढते पाया। किन्तु" ऐसी भी बात नहीं थी कि, शांतनु देव उसके आने से अंजान था। परन्तु.....अभी तक उसकी नजर किताब के पन्नों से नजर नहीं हटी। जबकि, सलिल ने जूस को टेबुल पर रखा और बेड पर ही शांतनु देव के करीब बैठ गया, साथ ही उसने अपनी नजर उसपर टिका दी। ऐसे में शांतनु देव से नहीं रहा गया, उसने किताब किनारे रखी और उसकी ओर मुखातिब हुआ।
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क्रमशः-