कोर्ट के नोटिस को देखने के बाद जहां सलिल की त्योरियां चढ गई, वही पर एस. पी. साहब एवं शांतनु देव के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें खींच गई। अब भला शांतनु देव से ज्यादा कौन इस बात को समझ सकता था कि" रजौली के गिरफ्तारी को दो दिन हो चुके थे, परन्तु सबूत जुटाना तो दूर, पुलिस अभी रजौली के बारे में जान भी नहीं सकी। ऐसे में कोर्ट के द्वारा पुलिस को डांट ही मिलने बाला था। फिर तो, नोटिस मिल जाने के बाद अब कोई रास्ता भी नहीं बचता था। एस. पी. साहब भी ताजा हालात को समझ चुके थे, जान चुके थे कि" अब तो हर हाल में रजौली को कोर्ट में पेश करना ही पड़ेगा।
जबकि सलिल" कोर्ट के इस रवैये से खासा नाराज था। आखिर क्या हो गया है अपने देश के कानून को?....यह नहीं समझ आता कि" पुलिस के सामने किस प्रकार के मुश्किल हालात होते है किसी- किसी केस के संदर्भ में। परन्तु....कोर्ट को इससे क्या लेना-देना, उन्हें तो बस कानून का रौब झारना है। सलिल यह भी सोचता जा रहा था कि" आगे इस मामले में उसे किस तरह के कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। तभी तो, जब उसे कुछ समझ नहीं आया, उसने अपनी नजर एस. पी. साहब पर टिका दी। परन्तु....तब तक एस. पी. साहब इस निर्णय पर पहुंच चुके थे कि" रजौली को कोर्ट में पेश किया जाए। इसके बाद देखेंगे कि, आगे इस केस में किस तरह की संभावनाएँ बनती है।
तभी तो वे लोग "रजौली" को लेकर कोर्ट के लिए चले। उनकी कार कोर्ट की ओर भागी जा रही थी, परन्तु....ड्राइविंग शीट पर बैठा हुआ सलिल अभी भी इस बात को स्वीकार नहीं कर पाया था कि" रजौली को कोर्ट में पेश करने के लिए ले जा रहा है। किन्तु यह तो सत्य था, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता था। उनकी कार कोर्ट की ओर भागी जा रही थी, जिसमें पिछले शीट पर इस समय रजौली मौजूद थी। उसके बगल में बैठा हुआ शांतनु देव और आगे की शीट पर मौजूद एस. पी. साहब। परन्तु....दोनों के चेहरे पर इस समय शांति की चादर फैली हुई थी, दोनों मौन थे और ध्यान मग्न भी। शायद आने बाले समय के पदचाप को सुनने की कोशिश कर रहे थे। ऐसे में सलिल को अकेले पन की अनुभूति होने लगी और वो विचारों में उलझने लगा।
उसके मन में तरह-तरह के खयाल आने लगे, उलझे हुए और मन मस्तिष्क को कुंद करने बाले। वह तो रजौली नाम के करेक्टर को ही अब तक समझ नहीं पाया था, तो मामले को सुलझाता कैसे?. यह प्रश्न ही तो था, जो उसके सामने खड़ा हो गया था कि" इस मामले को किस प्रकार से सुलझाए। यह तो ऐसा प्रश्न बन चुका था कि" उसको डर की भी अनुभूति होने लगी थी। स्वाभाविक ही था कि" अगर रजौली ने अपनी जुबान नहीं खोली, तो आगे वह किस प्रकार से कोर्ट में पुलिस का पक्ष रख पाएगा। सिर्फ इतना भर कह देने से कि" रजौली के पास ए. के. फोर्टी सेवन था और उसने अचानक ही पब्लिक प्लेस पर गोलियों की बारिश कर दी। कोर्ट इन तथ्यों से तो कदापि संतुष्ट नहीं होने बाला। तो फिर वह क्या करें?....कि" रजौली नाम की पहेली सुलझ जाए और वह दायित्व निभाने में सफल हो।
अभी तो सलिल विचारों में ही उलझा हुआ था कि" उसकी कार ने कोर्ट प्रांगण में प्रवेश किया। फिर तो सलिल ने कार पार्क की और फिर वे लोग निकल कर कोर्ट रूम की ओर बढे। वैसे भी दिन के बारह बज चुके थे और ऐसे में कभी लंच ब्रेक हो सकता था। इस कारण से चाहते थे कि, उससे पहले ही रजौली को कोर्ट में पेश कर दिया जाए। तभी तो उन्होंने कोर्ट रूम में कदम रखने के साथ ही शांतनु देव को इशारा किया। फिर तो शांतनु देव ने "रजौली की फाइल को जज साहब के सामने पेश किया और फिर सुनवाई शुरु हो गई। फिर तो वकील दिगंबर आगे बढा और जज साहब के सामने रजौली के जमानत की याचिका दायर कर दी।
बस इतना काफी था सलिल को समझ लेने के लिए कि" कोर्ट की नोटिस पुलिस को क्यों मिला?....इधर शांतनु देव ने रजौली के जमानत याचिका का पुरजोर विरोध किया। शांतनु देव ने अदालत को बताया कि, किस तरह से रजौली ने ए. के. फोर्टी सेवन से पब्लिक प्लेस को टार्गेट बनाया। इस तरह के वारदात को आतंकवादियों द्वारा अंजाम दिया जाता है। ऐसे में अगर रजौली की जमानत याचिका स्वीकार कर ली गई, तो फिर वह इससे भी बड़े वारदात को अंजाम दे सकती है। शांतनु देव की दलील और फिर वकील दिगंबर ने कोर्ट में दलील दी कि" पुलिस रजौली को वेजा ही फंसा रही है। जबकि ऐसा कुछ भी घटित हुआ है, तो रजौली का इसमें कोई हाथ नहीं है। परन्तु....वकील दिगंबर की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया।
इसके बाद रजौली" की सात दिनों के पुलिस रिमांड को मंजूर कर लिया गया। बस फिर क्या था, सलिल के होंठों पर कामयाबी की मुस्कान थिरक उठी थी। तभी तो उसने पीछे आए हुए रोमील को कहा कि" रजौली को लेकर पुलिस स्टेशन चला जाए। उसके बाद वो एस. पी. साहब एवं शांतनु देव को साथ लेकर बाहर निकला। इसके बाद उसकी कार फिर से सड़क पर दौड़ने लगी। परन्तु....अब सलिल बिल्कुल शांत था, क्योंकि उसने जो चाहा था, वही हुआ था। तभी तो उसने एस. पी. साहब को पुलिस मूख्यालय छोड़ा और फिर शांतनु देव के साथ वहां से सीधे अपार्ट मेंट के लिए निकला। वैसे ही, उसके मन में इच्छा थी कि" लेखक कुमाऊ रंजन से शांतनु देव को मिलवाए। परन्तु....अब तक उसने कुमाऊ रंजन के बारे में शांतनु देव को कुछ भी नहीं बतलाया था। वह चाहता था कि, शांतनु देव को सरप्राईज दे। परन्तु शांतनु देव, इन बातों से अंजान रह नहीं सका, तभी तो वो सलिल से मुखातिब हुआ।
यार सलिल!....सच कहूं तो, रजौली नाम के करेक्टर को समझने के लिए बहुत धैर्य की आवश्यकता है। बोलने के बाद शांतनु देव एक पल के लिए रुका, फिर आगे बोला। यार सलिल!....तुम जिस तरह से बतला रहे हो न, रजौली बहुत ही बुद्धिमान प्रतीत होती है। ऐसे में उसके जुबान से सच उगलवाना, समझो कि, बहुत ही टेढी खीर है। शांतनु देव ने कहा और नजर सलिल के चेहरे पर टिका दी। जबकि, ड्राइव कर रहे सलिल ने कनखियों से शांतनु देव के चेहरे को देखा, फिर बोला।
सत्य कह रहे हो यार!....सच कहूं तो रजौली के करेक्टर में मैं इतना उलझ चुका हूं कि" अपनी वेदना बतला नहीं सकता। सच कहूं तो, बार-बार उसका इस तरह से बयान बदलना, लगता है कि" वो मेरे पुलिसिया कैरियर पर बम गिरा कर ही मानेगी। सलिल ने कहा और कनखियों से शांतनु देव के चेहरे को देखने लगा। जबकि उसकी बातें सुनकर शांतनु देव ने उसके आँखों में देखा और फिर उससे प्रश्न किया।
तो फिर यार!.....आगे क्या करोगे? शांतनु देव ने प्रश्न पुछा और उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा।
जबकि उसके प्रश्न सुनकर सलिल उलझ सा गया कि" इस प्रश्न का क्या जबाव दे?....अभी तो फिलहाल उसने इस बारे में खुद नहीं सोचा था, तो फिर शांतनु देव को क्या बतलाता। फिर तो फिलहाल वह इस प्रश्न का जबाव देने से बच गया, क्योंकि" उसकी कार अपार्ट मेंट के पास पहुंच चुकी थी। अपार्ट मेंट का गेट खुला हुआ था, क्योंकि राम माधवन अंदर ही मौजूद था। सलिल को इस बात की जानकारी थी, इसलिये वो अंदर की और बढा। जबकि, उसके साथ चल रहे शांतनु देव उसके अपार्ट मेंट को इस तरह से खुला हुआ देख कर आश्चर्य में डुब गया था। परन्तु....सलिल के साथ चलते हुए उसने हाँल में कदम रखा।
****************
क्रमशः-