सफेद लुंगी, उसपर नीले रंग का कुर्ता और सिर पर जालीदार सफेद टोपी।....चेहरे पर चमक, आँखों पर गोल चश्मा, लंबा कद। चेहरे पर मूंछ नहीं थी, किन्तु" लंबी सफेद दाढी, उम्र यही करीब पचपन वर्ष के करीब। मुहम्मद काजी नाम था उसका, मुहम्मद काजी, जिसका व्यक्तित्व काफी आकर्षक था। काम भी तो था समाज सेवा करना और समाज सेवा की आड़ में अपने गोरख-धंधे चलाना। हां, मुहम्मद काजी के दो नंबर के धंधे थे, जिसकी बदौलत उसने दौलत के अंबार लगा लिए थे। वैसे तो वो काजी ट्रेडर्श नाम से स्क्रेप लेने के लिए कोंन्ट्राक्ट चलाता था। परन्तु.....ड्रग्स सप्लाई, हथियारों की हेराफेरी और मानव तस्करी, ये धंधे थे, जिसे वो समाज सेवा के नाम पर निर्बाध गति से करता था।
इस समय भी मुहम्मद काजी अपने बंगले से निकल रहा था, धंधे पर जाने के लिए। सुबह के नौ बज चुके थे और अब समय हो चुका था कि" वो अपने व्यापार पर निकले और बीते दिनों की आमदनी और आज की योजना, दोनों पर ध्यान दे। मुहम्मद काजी, उनकी दो संतान, आरव एवं सुलतान, खाड़ी के देशों में जाँब करता था। ऐसे में वो अपनी पत्नी के साथ अकेले ही अपने विशाल बंगले पर रहता था। फिर भी.....उसके पैसे की भूख अभी भी कम नहीं हुई थी, तभी तो इक नए दिन की शुरुआत करने के निकला था। जानता था कि" जब उसके कदम दिल्ली की गलियों में पड़ते है, पैसो की बारिश होने लगती है चारों ओर से।
किन्तु" अभी तो वो अपने बंगले से निकल कर कार की ओर बढ ही रहा था कि" तभी उसकी नजर मुख्य द्वार से प्रवेश कर रही कार पर गई और वो चौंका। काजी का चौंकना भी तो स्वाभाविक ही था, उसने देखा था कि" मंत्री साहब की कार ने गेट से प्रवेश किया और पोर्च में आकर खड़ी हो गई। मुहम्मद काजी, अचानक ही मंत्री जी के आने से चौंका, साथ ही उसकी नजर ने बगल बाली शीट पर बैठे हुए जगतपति को भी देख लिया था। तभी तो आश्चर्य के साथ ही उसके मन में आशंका ने जन्म ले लिया। तभी तो उसने तक्षण ही बाहर जाने के इरादे को त्याग दिया और मंत्री साहब के कार की ओर लपका। परन्तु....अभी तो वो कार के पास पहुंच भी नहीं पाया था कि" मंत्री साहब और जगतपति बाहर निकल आए और उन दोनों ने काजी को भरपूर नजरों से देखा। जबकि काजी ने उनके करीब पहुंचते ही सलाम किया और अपनी आश्चर्य भरी नजर उनपर टिका दी। उसे इस तरह से देखते पाकर जगतपति तपाक से बोला।
यार काजी!....तुम भी न, इस तरह से देख रहे हो कि" लगता है कि" इरादा बना चुके हो, यही से वापस कर दोगे। कहने के बाद जगतपति ने अपनी नजर काजी के चेहरे पर टिका दी। जबकि उसकी बातों को सुनकर काजी मुस्कराया। मुस्कान तो मंत्री साहब के चेहरे पर भी उभड़ आई, किन्तु" उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला।
इसके बाद काजी साहब उन दोनों को लेकर बंगले की ओर बैठा और जैसे ही उन्होंने हाँल में कदम रखा, सुहाना बेगम उन लोगों को देखकर आश्चर्य चकित हो गई। जबकि वे तीनों आगे बढे और सोफे पर बैठ गए और बैठने के साथ ही काजी ने उन दोनों के चेहरे पर नजर टिका दी और उन नजर को देखकर कोई भी कह सकता था कि" उसमें प्रश्न है। मंत्री एवं जगतपति के यूं ही अचानक आ धमकने से काजी अचंभित था। उसका हृदय तो आशंका से हलकान हुआ जा रहा था, क्योंकि" इससे पहले तो ऐसा कभी भी नहीं हुआ था। मंत्री और जगतपति का जब भी आना होता, उसके पास फोन पहले ही आ जाता था। किन्तु, आज उन दोनों का ही अचानक ही आगमन होना और इसके बाद हाँल में आने के बाद भी चुप्पी साधे रहना, आशंका को ही जन्म देने बाला था। तभी तो जब काजी से नहीं रहा गया, वह जगतपति से मुखातिब होकर बोला।
क्या बात है पुजारी जी?....आप दोनों का अचानक ही आना और इस तरह से चुप्पी साधे रखना। क्या कोई विशेष बात हो गई है क्या?....प्रश्न पुछने के बाद उसने जगतपति के चेहरे पर नजर टिका दी। जबकि, उसकी बात सुनते ही मंत्री साहब ने प्रतिक्रिया दी।
हां काजी!....कुछ ऐसा ही समझो। मामला गंभीर है, तभी तो हम लोग तुम्हारे पास दौड़े- दौड़े आए है।
इसके बाद मंत्री साहब उसे रज्जो के बारे में बतलाने लगे और उनकी बातें सुनते ही जैसे काजी के पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई हो, वो अवाक होकर मंत्री साहब के चेहरे को देखने लगा। तब तक सुहाना बेगम किचन से काँफी बनाकर ले आई और उनके आगे परोस दिया। किन्तु" अभी तो मंत्री साहब ने अपनी बात खत्म नहीं की थी और काजी उसकी बातों को गौर से सुन रहा था और जैसे ही मंत्री साहब ने अपनी बात पूरी की, काजी साहब ने उसके हाथों में काँफी थमा दिया और उनकी ओर देखने लगे। बस ऐसे में वहां चुप्पी छा गई, परन्तु एक बात जरूर हुई कि" उन तीनों ने काँफी खतम कर ली। फिर काजी साहब ने मंत्री साहब के चेहरे को देखा और गंभीर होकर बोला।
तो आप लोग मुझसे क्या चाहते है?
मुझसे चाहते है से मतलब?....काजी, तुम इस तरह से कह कर अपनी जिम्मेदारी से पीछा नहीं छुड़ा सकते। बीच में तपाक से जगतपति बोला और फिर एक पल के लिए वो मौन रहा, उसके बाद आगे बोला। काजी!....इस मामले में हम तीनों ही बराबर के गुनाहगार है। यूं समझो तो, अगर तलवार गिरी, तो हम तीनों का ही सिर कटेगा। ऐसे में तुम बस इतना कह कर कि" आप लोग मुझसे क्या चाहते है? खुद भी नहीं बच पाओगे। जगतपति ने अपने अंतिम के शब्दों पर जोर देकर कहा, जबकि, उसकी बातें सुनकर एक पल के लिए काजी साहब हड़बड़ा गए, फिर उन्होंने खुद को संभाला और बोले।
मैंने कब कहा पुजारी!...कि" मैं इस मामले से अलग हूं। परन्तु बोलो तो सही कि" हमें करना क्या है?
काजी!....अगर यही प्रश्न हम दोनों के समझ में आता, तो तुम्हारे पास दौड़े- दौड़े क्यों आते। मंत्री साहब ने काजी की बातें खतम होते ही प्रतिक्रिया दी और एक पल चुप रहने के बाद बोले। बस इतना ही समझ लो काजी कि" अगर हम दोनों यह समझ जाते कि, हमें आगे क्या करना है? तुम्हारे पास आते नहीं, बल्कि तुम्हें बुला लेते। कहने के बाद मंत्री साहब काजी के चेहरे को बेचारगी से देखने लगे और उनके इस तरह देखने मात्र से ही काजी और भी हलकान हो गया, किन्तु" जानता था कि" परिस्थिति विपरीत है और ऐसे में मौन रहने से भी काम नहीं चलने बाला, तभी तो बोला।
मेरे विचार से तो हम लोगों को किसी सुलझे हुए वकील के पास चलना चाहिए। वहां चलने के बाद ही शायद कोई रास्ता निकल आए, इसकी उम्मीद बने। कहने के बाद काजी ने अपनी नजर मंत्री साहब पर टिका दी। तभी बीच में ही जगतपति बोल पड़ा।
तुम भी न काजी!...सठिया गए लगते हो?....भला वकील के पास जाकर हम लोग सामने से अपने लिए खड्डा खोद ले। जगतपति ने कहा और काजी के चेहरे पर नजर टिका दी, जबकि उसकी बात सुनते ही काजी क्षीण आवाज में बोला।
पुजारी!...तुम भी न, पहले बात भी समझ करो। हमारे पास अभी के परिस्थिति में एक ही रास्ता है कि" हम लोग किसी सुलझे हुए वकील के पास जाए। कहने के बाद काजी ने मंत्री साहब के चेहरे पर नजर टिका दिया, इस आशा के साथ कि" शायद वो उसके बातों का समर्थन कर दे और यही हुआ भी। मंत्री साहब ने बोला तो नहीं, किन्तु उन्होंने सहमति में सिर हिलाया और बस इतना ही काफी था। इसके बाद तीनों विचार करने लगे कि" किस वकील के पास चला जाए, जो उनका काम सुगम हो जाए।
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क्रमशः-