दिन के दस बजे से ही पुलिस मूख्यालय में बैठकों का दौर जारी था। वैसे तो पंद्रह अगस्त को लेकर दिल्ली में आर्मी बालों का कमांड हो जाता है। फिर भी प्रशासनिक व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है। इस कारण से ही एस. पी. साहब ने रोहिणी के सभी थाना इंचार्ज को बुला लिया था। मामला अपने इलाके के सुरक्षा को लेकर था, इसलिये अंदर मीटिंग हाँल में मीटिंग चल रहा था।
किन्तु" सलिल इस मीटिंग के लंबे दौर से ऊब चुका था। इसलिये उसने एस. पी. साहब से अनुमति ली और निकल कर मीटिंग रूम से बाहर आ गया। वैसे भी अब शाम के चार बज चुके थे और लगातार मीटिंग में बैठे रहने के कारण उसके कमर में दर्द की अनुभूति होने लगी थी। वैसे भी इन दिनों कुछ विशेष काम नहीं रहता था, इसलिये सलिल ज्यादा टेंशन लेना नहीं चाहता था। जानता था कि".....टेंशन लेने के लिए सीनियर अधिकारी तो है ही, फिर वो क्यों टेंशन लेकर अपना सिर खपाये। तभी तो वो मीटिंग रूम से वो बाहर निकला और बाहर गैलरी में कदम रखते ही उसकी नजर रोमील पर गई।
जो टकटकी लगाए हुए मीटिंग रूम की ओर ही देख रहा था और जैसे ही उसकी नजर सलिल पर गई, उसका चेहरा खिल उठा।....फिर तो सलिल उसको लेकर कैंटिन की ओर बढ गया। फिर दोनों कैंटिन में बैठ गए और सलिल ने हाँट काँफी लाने के लिए आँडर दे दिया। फिर उसने रोमील के चेहरे पर नजर टिका दी। उसे इस तरह से अपनी ओर देखता पाकर रोमील चौंका, फिर उसने सलिल की ओर उत्सुकता से देखा। जबकि सलिल, वह तो सोच रहा था कि" रोमील से खुलकर बात करें। किन्तु" विषय तो कोई था नहीं, लेकिन उसे बात करनी थी, क्योंकि उसने बहुत दिनों से रोमील के साथ खुलकर बात नहीं की थी। अब ऐसी भी बात नहीं थी कि" दोनों अलग-अलग रहते थे। दोनों चौबीस घंटे साथ ही रहते थे, लेकिन फिर भी, सलिल उससे बिना मतलब की बात नहीं करता था। लेकिन आज उसकी इच्छा हो चली थी कि" वो बिना मतलब की बात ही करें, तभी तो बोला।
रोमील!.....आजकल शहर में कुछ शांति सी है। क्या लगता है तुम्हें?
सर!....आप भी न बिना सिर-पैर की बातें करते हो। फिर तो आपकी जुवान भी ऐसी है कि" आप जब भी शांति की बात करते हो, अपने इलाके कुछ न कुछ अशांति हो जाती है और अशांति भी ऐसी कि" मामला सुलझाते-सुलझाते दम निकल जाता है। सलिल की बातें सुनकर रोमील ने अपने शब्दों को चबा कर बोला। जबकि उसकी बातों को सुनकर सलिल मुस्कराया, फिर बोला।
तो फिर तुम यह कहना चाहते हो कि" मेरी जुवान ही काली है। मैं जब भी बोलता हूं,....वह परिणाम का रुप लेकर सामने आ जाता है। सलिल ने कहा और रोमील की ओर देखा, जबकि रोमील" उसकी बातों को सुनकर एक पल के लिए अचकचाया, फिर शब्दों को संभाल कर तौल- तौल कर बोला।
सर!.....ऐसी कोई बात नहीं है। किन्तु" इसे संयोग ही कहेंगे कि" आप जब भी बोलते है, कुछ न कुछ अनहोनी घटित हो जाता है। अब तक तो आपने देखा है कि" हम ऐसे दो मामलों से हमारा सामना हो चुका है। कहने के बाद रोमील ने सलिल के आँखों में देखा।
किन्तु" सलिल ने उसकी बातों का कोई जबाव नहीं दिया। वैसे भी रोमील ने जो कहा था, वह व्यर्थ तो नहीं था। जब-जब भी उसकी इच्छा होती थी कि" वह विशेष गपशप करें और जब वो बात करता था, तब- तब कोई न कोई विशेष घटना घटित हो जाती है। ऐसा ही तो हुआ था "रति संवाद" एवं "आथर्व खेमका" के बारे में। इसलिये सलिल की इच्छा अब जैसे कुंद हो गई थी। वह अब बात करने के मुड में नहीं था, तभी तो काँफी आने के बाद वह काफी पीने में जुट गया। उसे काँफी पीता देख कर रोमील ने भी उसका अनुसरण किया, किन्तु" अभी तो उन दोनों की आधी काँफी भी खतम नहीं हुई थी कि" सलिल के मोबाइल ने वीप दी।
अचानक से बजी मोबाइल की वीप ने सलिल के धड़कनों की स्पीड बढा दी थी। लेकिन काँल तो रीसिव करना ही था, तभी तो उसने मोबाइल निकाला और काँल रीसिव की। फिर तो उधर से न जाने क्या कहा गया कि" सलिल के हाथों से कप उछल पड़ी। चेहरे पर आश्चर्य के भाव और हाथों में कंपन, उसकी यह स्थिति देखकर रोमील सहज ही समझ गया कि" कोई तो बात है। जरूर कहीं न कहीं दुर्घटना घटित हुई है, जिसने बाँस के हौसले उड़ा दिए है। परन्तु, जब तक बाँस पुष्टि नहीं करता, अंदाजा लगाना उचित नहीं होगा, यही सोचकर रोमील सलिल के चेहरे को देखने लगा। जबकि उसे अपनी ओर ऐसे देखता पाकर सलिल ने काँल कट किया और एक पल उसकी ओर देखता रहा, फिर उसे बतलाने लगा कि" कुछ पल पहले हनुमान चौक पर किस तरह की घटना घटी है। फिर तो, चौंकने की बारी रोमील की थी, उसे लगा कि" बाँस ने उसके आस-पास शब्दों का बम फोड़ दिया हो।
जबकि सलिल अपनी जगह से उठ गया था और कैंटिन से बाहर भी निकल गया था। जबकि रोमील वापस गैलरी में आकर खड़ा हो गया। उधर सलिल ने अंदर मीटिंग रूम में जाकर तत्काल घटित हुए घटना के बारे में जानकारी दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि" एक मिनट में ही पुलिस मूख्यालय में हलचल बढ गया। मामला गंभीर इसलिये भी था कि" स्वतंत्रता दिवस सिर पर था और ऐसे में यह घटना घटित हुआ था। ऐसे में स्वाभाविक ही था कि" सब के होश उड़ जाए। क्योंकि यह घटना आतंकी हमला भी हो सकता था। इस समय जो हनुमान चौक पर घटित हुआ था, उसकी भनक तो गृह मंत्रालय को भी लग चुका होगा। इस बात को सलिल एवं एस. पी. साहब अच्छी तरह से जानते थे।
उन्हें इस बात का भी अंदाजा हो चुका था कि" अब तक तो घटना स्थल पर सीनियर अधिकारियों ने दौड़ लगा दी होगी। इसलिये सलिल ने रोमील को समझाया कि" वह राम माधवन को साथ ले-ले और एल. जी. के. हाँस्पिटल चला जाए और घायलों को देखे और वहां किसी प्रकार की दिक्कत हो, तो तुरंत ही सूचित करें। इसके बाद सलिल एस. पी. साहब के साथ बाहर निकला। बाहर कंपाऊंड में एस. पी. साहब की कार तैयार खड़ी थी। फिर क्या था, दोनों कार में बैठे और ड्राइवर ने कार आगे बढा दी। इसके बाद तो कार पुलिस मूख्यालय से निकलते ही सड़क पर सरपट दौड़ने लगी। उसी रफ्तार से सलिल की सोच भी दौड़ने लगा।
एक तो उसे विश्वास हो चुका था कि" उसकी जुवान काली है। वह जब भी कभी ऐसे ही अपनी जुवान खोलता है, उसकी बात सत्य हो जाती है। उसे अपनी सोच और खुद पर गुस्सा आ रहा था, ऐसे में अगर वो एस. पी. साहब के साथ नहीं होता" भगवान कसम खुद की गाल पर खुद ही थप्पड़ लगा चुका होता। किन्तु, अभी इस प्रकार की हरकत करना, उसे बिल्कुल भी उचित नहीं लगा था। दूसरे, उसके मन के किसी कोने में वेदना की लहर भी उठ रही थी, क्योंकि इस हमले में उसका प्रिय दोस्त शांतनु देव भी घायल हो चुका था। वैसे उसे मालूम हो चुका था कि" चिन्ता की बात बिल्कुल नहीं थी, क्योंकि गोली उसके पांव में लगी थी। फिर भी, तकलीफ तो उसे हुई ही थी, क्योंकि उसका परम इष्ट मित्र शांतनु देव इस हमले में घायल हो चुका था। खैर" शांतनु देव से तो वह बाद में भी मिल लेगा, फिलहाल तो उसे घटित हुए घटना के बारे में जानकारी इकट्ठी करनी है। सलिल अभी इसी बात को सोच रहा था कि" उनकी कार हनुमान चौक पहुंच गई।
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क्रमशः-