रोमील के द्वारा उन चारों घायलों को ले जाने के बाद सलिल ने उस औरत को देखा। तब तक हथियार धारी फोर्स उसके करीब पहुंच चुका था और उन लोगों की नजर सलिल पर टिक गई थी, मानो जानना चाहते हो कि" कुछ देर पहले किस प्रकार की घटना घटित हुई है। सलिल ने उन जवानों के आँखों के भाव को पढ लिया और समझ गया कि" वे लोग आखिर किस प्रकार की जानकारी चाहते है। तभी तो उस औरत के पास से उठा और उन जवानों के पास जाकर उन्हें ताजा उत्पन्न हुए हालात के बारे में जानकारी दी और अभी वो उन लोगों को समझा ही रहा था कि" तभी सलिल की नजर आ रहे एँबुलेंस पर गई। फिर तो एँबुलेंस का गेट खुलते ही सलिल ने तेजी के साथ उस औरत को बांहों में उठाया और एँबुलेंस की और भागा।
फिर तो उस औरत को एँबुलेंस में चढाने के बाद खुद ही ड्राइवर के बगल में बैठा और फिर एँबुलेश श्टार्ट होकर सड़क पर दौड़ने लगी। इसके साथ ही सलिल के "विचार" भी दौड़ने लगे। इससे पहले उसने अभी तक औरत के इस तरह के रुप को नहीं देखा था। आँखों में लपट सी उठती हुई ज्वाला और हाथों से बरसाती हुई गोलियां। जिस समय वो औरत उसके कार से टकराई थी, रण चंडी सी प्रतीत हो रही थी।.....उसके इस रुप को देखकर एक पल के लिए सलिल घबरा सा गया था, एक पल को वो काफी भयभीत हो गया था। इसके बाद तो इस औरत का उसके कार का टकराना और अब तक का पल, उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि" अभी-अभी जो उसके सामने घटित हुआ, वह सत्य है।
वही क्या, कोई और भी होता, तो इतनी जल्दी इस घटना पर विश्वास नहीं कर पाता। क्योंकि घटना ही इतनी तीव्र गति से घटित हुई थी कि" विश्वास कर पाना कठिन सा प्रतीत हो रहा था। किन्तु" घटना तो घटित हुआ था और उसके सामने घटित हुआ था और इसका सबूत भी उसके पास अभी मौजूद था। वो औरत अभी एँबुलेश में बेहोश थी और वो खुद अभी एँबुलेंस पर था, साथ ही अभी रोमील उसके साथ नहीं था। ऐसे में वो यह भी नहीं कह सकता था कि" वह अभी दिग्भ्रमित है। तभी तो उसको शांतनु देव के द्वारा कही गई बातें याद आने लगी। कि" घटना तो अचानक ही घटित होता है और इसका शिकार कोई भी हो सकता है।
अब तो सलिल को थोड़ी शर्मिंदगी भी महसूस हो रही थी। उसने कितनी सहजता से शांतनु देव का उपहास उड़ा दिया था। किन्तु" नहीं-नहीं, उसने उपहास तो कदापि नहीं किया था। वह तो शांतनु के प्रति उसका प्रेम था और इस भय के कारण कि" कहीं उसे कुछ हो जाता तो?....इसी भय के कारण उसने शांतनु देव को केयर लेस कहा था। परन्तु अब जाकर उसे इस बात की अनुभूति हुई थी कि" हादसा तो अचानक ही घटित होता है और किसी के साथ भी घटित हो सकता है। इसमें बुद्धिमान होने और मूर्ख होने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता। खैर" अब जो घटित हो गया, उसपर फिलहाल विचार करने से कोई फायदा नहीं होने बाला। अब तो यह विचार किया जाए कि" आगे क्या करना है?
प्रश्न गंभीर था, क्योंकि अभी तक उसे यह भी पता नहीं था कि" वह औरत कौन है और उस ने इस प्रकार से पब्लिक प्लेस पर अचानक हमले क्यों किए?....उसकी गतिविधि बतला रही थी कि" उसने आतंकी हमले को अंजाम दिया है और वो एक आतंक वादी है। किन्तु" जब तक वो अपने मुख से कबूल नहीं कर लेती, कहा नहीं जा सकता था। उसमें भी अभी तो पंद्रह अगस्त नजदीक था और इस प्रकार की घटना का घटित हो जाना, मतलब कि" शहर में हलचल मच जाना था। वैसे ही शाम को उस औरत द्वारा अंजाम दिए गए वारदात ने अधिकारियों के हाथ-पांव फूला दिए थे और फिर एक ही दिन में दूसरी बार वारदात को अंजाम दिया जाना। बस इतनी बात दिमाग में आते ही सलिल को यह बात याद आया कि" अभी अधिकारियों को सूचना भी देना है।
तभी तो उसने मोबाइल निकाला और एस. पी. साहब को फोन लगा दिया और फिर उन्हें अभी घटित हुए घटना के बारे में जानकारी दे-दी। फिर क्या था, एस. पी. साहब ने सारी बातें जानने के बाद उसे निर्देशित किया कि" तुम हाँस्पिटल पर पहुंचो, मैं भी अभी तत्काल वहां पर आ रहा हूं। बस इतना कहने के बाद एस. पी. साहब ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। इधर एँबुलेंस हाँस्पिटल के प्रांगण में प्रवेश कर चुकी थी। अतः फटाफट उस औरत को हाँस्पिटल के स्टाफ द्वारा एँबुलेंस से बाहर निकाला गया और आई. सी. यु. रूम में ले जाया गया। जबकि सलिल रोमील से मिलने के लिए गेस्ट रूम की ओर बढ गया और संयोग से रोमील उसे गेस्ट रूम में ही मिल गया, ऐसे ही बैठा हुआ।
इसके बाद रोमील ने सलिल को जानकारी दी कि" उन चारों युवक- युवतियों को आपरेशन थियेटर में ले जाया गया है। बस सलिल ने राहत की सांस ली, किन्तु" अभी उसे शांति मिले, ऐसी परिस्थिति बिल्कुल भी नहीं थी। क्योंकि" हाँस्पिटल के बाहर मीडिया बालों का हुजूम जमा होने लगा था। जिसकी जानकारी राम माधवन ने आकर उसे दी। फिर क्या था, सलिल के कान खड़े हो गए। जानता था कि" अगर थोड़ी सी भी चुक हुई, तो यहां हाँस्पिटल में बहुत बड़ा हंगामा क्रिएट हो सकता है। इसलिये उसने इसकी जानकारी पुलिस मूख्यालय को दी और वहां से फोर्स की टुकड़ी मंगवा ली।
उधर एस. पी. साहब भी अधिकारियों के साथ हाँस्पिटल पहुंच चुके थे और अब हाँस्पिटल बिल्डिंग की ओर बढ रहे थे। जिसकी जानकारी होते ही सलिल बाहर निकल आया और उन लोगों का स्वागत किया। फिर उनको लेकर हाँस्पिटल के अंदर की ओर बढ गया। .....वैसे भी एस. पी. साहब सब से पहले उस औरत को ही देखना चाहते थे। इस कारण से सलिल उनको लेकर आई. सी. यु. रूम के सामने पहुंचा। किन्तु" अंदर उस औरत का इलाज चल रहा था, जिस कारण से उन्हें अंदर जाने की अनुमति नहीं मिली। उनका, उन चारों घायल युवक-युवतियों से भी मिलना नहीं हो सका। ऐसे में सलिल अधिकारियों के साथ वापस गेस्ट रूम में आ गया। जहां, उन लोगों के बीच आगे के रणनीति को लेकर मंत्रणा होने लगी।
बाहर हाँस्पिटल प्रांगण में काफी हलचल बढ चुका था। विभिन्न मीडिया हाउस के रिपोर्टर इसी जुगत में लग गए थे कि" किस प्रकार से हाँस्पिटल के अंदर प्रवेश कर सके। रात के दो बजे, इस तरह का कोलाहल होना, पुलिस अधिकारियों को समझ आ चुका था कि" अगर जल्द ही उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया, तो मामला बिगड़ भी सकता है। इसलिये एस. पी. साहब ने आनन-फानन में प्रेस नोट देने का फैसला कर लिया और हाँस्पिटल प्रबंधन को इसकी जानकारी दे-दी। इसके बाद तो गेस्ट रूम में ही प्रेस रीलिज के लिए हाँस्पिटल प्रबंधन द्वारा सारी तैयारी कर ली गई और मीडिया बालों को अंदर बुला लिया गया।
इसके बाद एस. पी. साहब ने मीडिया बालों को बतलाया कि" किस प्रकार से उस अंजान औरत ने शाम को हनुमान चौक पर और रात के एक बजे रीठाला मेट्रो स्टेशन के पास वारदात को अंजाम दिया। किन्तु" पुलिस आँफिसर सलिल की सजगता से एक बहुत बड़ा दुर्घटना होने से टल गया और वो औरत पुलिस के गिरफ्त में आ गई। परन्तु इस वारदात में कुछ आम नागरिकों को गोलियां लगी है, जिसकी डिटेल बाद में मीडिया बालों को दे-दी जाएगी। जब मीडिया बालों ने एस. पी. साहब से यह इच्छा जाहिर की कि" वे लोग उस औरत से मिलना चाहते है। इस पर एस. पी. साहब ने साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि" फिलहाल तो ऐसा हो पाना नामुमकिन है। किन्तु" जैसे ही वो औरत आई. सी. यु. से बाहर आ जाएगी, आप लोगों को सूचित कर दिया जाएगा। इसके बाद एस. पी. साहब मीडिया बालों के प्रश्नों का उत्तर देते रहे।
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क्रमशः-