शाम का अंधेरा घिरने लगा था, लेकिन अमूमन जैसा होता है, शहर पर इस अंधेरे का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। तभी तो हनुमान चौक का इलाका रोशनी में जगमगाता हुआ प्रतीत हो रहा था। लेकिन अभी वहां पर बिल्कुल मातमी सन्नाटा पसरा हुआ था। लेकिन पुलिस फोर्स एवं आँफिसरों की आवाजाही इस मातमी सन्नाटे को कभी-कभी वेध देती थी। पंद्रह अगस्त नजदीक होने के कारण सीनियर आँफिसरों के आने का ताता लगा हुआ था। ऐसे में सलिल को थोड़ी असुविधा महसूस हो रही थी। उसे आज ही तो पता चला था कि" सीनियर अधिकारियों के साथ काम करने में कितनी मुश्किलें होती है। परन्तु, वह इस समस्या से भाग भी तो नहीं सकता था, उसके इलाके का मामला था और उसे हर हाल में वहां मौजूद रहना था। किन्तु" इस तरह से तो वो अधिक परेशान हो जाएगा, अधिकारियों के करीब रह कर।
उसने देखा कि" डाँग स्क्वायड एवं फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट अपने काम में उलझे हुए थे। ऐसे में, अपना टाइम पास करने के लिए शुक्ल पान भंडार की ओर बढा, इस बहाने से कि" पूछताछ करेगा। घटना घटित होने के बाद अधिकांश दुकान बंद हो चुकी थी, किन्तु" शुक्ल साहब अभी भी दुकान खोल कर बैठे हुए थे। उनका दुकान खुला देखकर सलिल को मन ही मन आश्चर्य भी हो रहा था और उसके हिम्मत की दाद भी दे रहा था। तभी तो, जैसे ही सलिल पान की दुकान पर पहुंचा, उसने आस- पास नजर घुमाई, फिर शुक्ल साहब के चेहरे को गहरी नजरों से देखता हुआ बोला।
शुक्ल जी!.....बहुत नाम सुना है आपके हाथों लगे पान का। एक पान इस कद्रदान को भी तो खिलाइए। सलिल ने कहा और नजर शुक्ल साहब के चेहरे पर टिका दी। जबकि शुक्ल साहब ने उसकी ओर देखा और फिर नजर झुका कर पान लगाने लगे। ऐसे में सलिल आश्चर्य चकित हुआ। कहां तो पुलिस बाले को सामने देख कर अच्छों- अच्छों का हलक सूख जाता है और कहां पान दुकानदार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। ऐसे में सलिल को आश्चर्य में डुब जाना ही था और अभी वो आगे बोलने बाला था कि" शुक्ल साहब धीरे से बोल पड़े।
साहब!.....आप शायद किसी प्रश्न को पुछना चाहते है। बोलने के बाद शुक्ल साहब ने नजर उठा कर सलिल के चेहरे की ओर देखा, फिर आगे बोला। साहब!....मैं भी कभी वकील रह चुका हूं, लेकिन प्रेक्टिस चली नहीं, इसलिये पान की दुकान खोलकर बैठ गया। यह बात आपके दोस्त शांतनु देव अच्छी तरह से जानते है। तो मैं बतला सकता हूं कि" आप पान खाने के लिए नहीं आएँ है, आपको तो बस जानकारी चाहिए। कहने के बाद शुक्ल साहब फिर से पान बनाने लगे, किन्तु" उनकी तिरछी नजर तो सलिल के चेहरे पर ही टिकी थी। इस बात को सलिल ने भी महसूस किया, तभी तो धीरे से बोला।
तो शुक्ल साहब!....आप इतना बतला दीजिए कि" यहां शाम चार बजे घटना जो घटित हुई थी, वह किस प्रकार से घटित हुई थी?...... आप तो प्रत्यक्षदर्शी है, एक-एक प्वाईंट को बताने का अनुग्रह करें। सलिल ने इस तरह से प्रश्न पुछा की सामने बाले को गलत भी नहीं लगे और उसका काम भी हो जाए।
तभी तो उसकी बातों को सुनकर एवं उसकी वर्दी की ओर देखकर शुक्ल साहब मुस्कराए। फिर उन्होंने अपनी आँखें सलिल के चेहरे पर टिका दी और शाम को वहां पर घटित हुए वाकये को आँखों देखी हाल बतलाने लगे। उन्होंने सलिल को बताया कि" किस प्रकार से शाम साढे़ चार बजे इस हनुमान चौक पर एक भिखारिन की तरह दिखने बाली औरत जिन्न की तरह प्रगट हो गई और फिर उसने किस तरह से अचानक ही ए. के. फोर्टी सेवन निकाल लिया और अंधाधुंध फायरिंग करती हुई सड़क के दूसरी ओर भागी। सलिल उसके द्वारा बताए जा रहे बातों को ध्यान से सुन रहा था, तभी तो उसने उस औरत का हुलिया पुछा। किन्तु" शुक्ल साहब उस औरत के हुलिया को नहीं बता सके।
फिर तो सलिल ने पान खाया और पैसे अदा किए,....फिर वापस अपने काफिले की ओर जाने के लिए चल पड़ा। वैसे भी, अब यहां रुके रहने का कोई मतलब ही नहीं था, क्योंकि उसे जितनी जानकारी मिल सकता था, मिल चुका था। तभी तो वह सीधे एस. पी. साहब के पास पहुंचा और उसने अब तक जो जानकारी जुटाई थी, क्रमवार बतलाने लगा। वैसे भी शाम के सात बज चुके थे और प्रशासनिक कार्य भी पूर्ण हो चुका था। इसलिये सलिल एस. पी. साहब से अनुमति लेकर हाँस्पिटल के लिए निकला। इस विचार का मन में मंथन करते हुए कि" वो औरत कौन हो सकती है?....... आतंकवादी?.....नहीं-नहीं, आतंकवादी तो ट्रेनी होते है, उनका निशाना नहीं चुक सकता। तो फिर अंडरवर्ल्ड से रिलेटेड?....लेकिन यह थ्योरी भी फिट नहीं बैठ रहा था। ऐसे में उलझन में डुबा हुआ सलिल कार ड्राइव करता जा रहा था।
वैसे भी शांतनु देव के घायल हो जाने के कारण उसका मुड कुछ उखड़ा -उखड़ा सा था। उसे गुस्सा भी आ रहा था शांतनु देव पर। क्योंकि" शांतनु देव तो मार्सल आर्ट में निपुण था, साथ ही उसके पास हमेशा लाइसेंसी रिवाल्वर रहता था, तो फिर वह किस प्रकार से गोलियां खा गया। उसे चिन्ता इस बात की भी थी कि" शांतनु देव को गोली कहां पर और किस प्रकार से लगी है? लँगोटियाँ यार था उसका शांतनु देव और ऐसे में उसको चिन्ता हो, स्वाभाविक ही था। तभी तो वो कार की रफ्तार बढाए जा रहा था, पल-प्रति पल और जैसे ही उसकी कार हाँस्पिटल प्रांगण में पहुंची, उसने कार खड़ी की और बाहर निकला और फिर हाँस्पिटल बिल्डिंग की ओर बढा।
वह तो अभी हाँल में कदम रखा ही था कि" उसकी मुलाकात रोमील से हो गई। रोमील ने उसे बतलाया कि" अब शांतनु देव की स्थिति पहले से बेहतर है और इस हमले में कुल छ आदमी घायल हुए थे। फिर तो सलिल उसके साथ आई. सी. यु में पहुंचा, जहां सभी घायलों को रखा गया था। सभी घायलों का आपरेशन करके गोलियां निकाल दी गई थी और अब सभी को बाहर निकालने की तैयारी हो रही थी। तभी तो सलिल उस रूम में पहुंचा, जहां शांतनु देव को रखा गया था। रूम में पहुंचते ही सलिल की आँख शांतनु देव से टकराई और इतनी पीड़ा होने के बावजूद भी शांतनु देव के चेहरे पर मुस्कराहट उभड़ आई। रूम में जलते हुए नीले बल्ब की रोशनी में शांतनु देव की मुस्कराहट बहुत ही कातिल सी प्रतीत हो रही थी। तभी तो सलिल उसके करीब पहुंचा और वहां रखे स्टुल पर बैठने के बाद शांतनु देव की आँखों में देखता हुआ बोला।
तुमसे तो बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी शांतनु।.....इस तरह से गोलियों से घायल हो जाना, जबकि तुम खुद मार्सल आर्ट के जानकार हो। कहने के बाद सलिल शांतनु देव की ओर देखने लगा, जबकि शांतनु देव उसकी बात सुनकर मुस्कराया, फिर धीरे से बोला।
तुम भी न अमा यार!.....अजीब बातें करते हो। भला मुझे अगर जानकारी होती कि" वहां पर घटना घटित होने बाला है, तो भला अपराध करने बाले को पकड़ कर तुम्हारे हवाले नहीं कर दिया होता। बोलने के बाद एक पल के लिए शांतनु देव चुप हुआ और सलिल के चेहरे को देखा, फिर आगे बोला। अचानक ही हमला हुआ, इसलिये ही तो घायल होकर इस हाँस्पिटल में हूं। बोलने के बाद शांतनु देव सलिल की ओर देखने लगा, जबकि उसकी बातें सुन कर सलिल बोला।
खैर" छोड़ो इन बातों को और मुझे बस इतना बतला दो कि" अपराध को अंजाम देने बाली वो औरत कैसी थी?.. मुझे बस उस औरत का हुलिया बतलाओ?....सलिल ने प्रश्न पुछा और अपनी नजर शांतनु देव के चेहरे पर टिका दी। जबकि उसकी बातों को सुनकर एक पल के लिए शांतनु देव चुप होकर सोचने लगा।
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क्रमशः-