शाम के सात बज चुके थे और अब आसमान में तारे जगमग करने लगे थे। मंत्री भानु शाली अभी अपने बंगले से निकला था" वकील से मिलने के लिए। वैसे भी कुछ सेकेन्ड पहले हुई जोरदार बारिश ने रोड पर पानी जमा कर दिया था। ऐसे में अगर उन्हें वकील से मिलना नहीं होता, तो फिलहाल किसी हालत में घर से नहीं निकलते। किन्तु" परिस्थिति ही ऐसी बन आई थी कि, न चाहकर भी उन्हें अपने बंगले से निकलना पड़ा था। दूसरे, वे ऐसे काम पर निकले थे, जिसकी भनक भी किसी को लग जाती, तो उनके लिए तूफान खड़ा हो सकता था। इसलिये मंत्री साहब खुद ही कार ड्राइव कर रहे थे, इस विचार के साथ कि" कहीं इस बरसाती रात में मुसीबत में फंसे तो?
यह भी तो उनके लिए प्रश्न चिन्ह ही था, परन्तु....अचानक ही सामने आ खड़े हुए रज्जो नाम के तूफान के सामने यह मुसीबत तो कुछ भी नहीं था। उन्हें इस बात की भलीभांति अनुभूति थी कि" अगर रज्जो बाला पेज खुला तो, उनकी इज्जत, उनका रुतबा और उनकी पदवी, सब कुछ एक ही झटके में समाप्त हो जाएगा और ऐसा हो, वह किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं कर सकते थे। इस परिस्थिति में उनके सामने केवल एक ही विकल्प था कि" आते हुए रज्जो रुपी तूफान को पूरी ताकत लगाकर रोक दे। नहीं तो, फिर तो उनका अस्तित्व ही इस तूफानी वेग में धराशायी हो जाने बाला था।
भला" किसे नहीं रुतबा और मौज- सोख प्रिय नहीं होता। उन्हें भी खुद से, अपने पद-प्रतिष्ठा से स्नेह था। आखिरकार उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए बहुत पापड़ बेले थे, अनगिनत लाशें बिछाई थी और विश्वास का खून करना तो उनके फितरत में शामिल सा था। ऐसे में भला अपने उम्र के ढलती बेला में वे क्योंकर धराशायी होना पसंद करते। मंत्री भानु शाली, मक्कारी जिसके खून में रची-बसी थी, आज अंजाने से भय से ग्रसित होकर कार को भगाए जा रहे थे। रज्जो रुपी जो अतीत की स्याह परत उनकी ओर तेजी से बढती आ रही थी, उससे बचने के लिए प्रयासरत हो गए थे मंत्री साहब। तभी तो शहर के सड़क पर पानी भरे होने पर भी वो अपनी कार आगे की ओर भगाए जा रहे थे। फिर तो, जैसे उनकी कार बारिश के पानी में डुबी-डुबी आगे की ओर बढ रही थी, उनका मन भी तो विचारों के सैलाब में डुब- डुब कर आगे बढ रहा था।
उन्हें तो इस बात की अनुभूति ही नहीं थी कि" अचानक ही उनके सामने बीता हुआ कल वर्तमान के रुप में आकर खड़ा हो जाएगा। यही तो हुआ था उनके साथ, उन्होंने जिस बात की कल्पना नहीं की थी, वही तो घटित हो गया था और अब वो वर्तमान में परिवर्तित हुए भूतकाल के उस भयावह परछाईं को मिटा डालना चाहते थे। तभी तो उनकी कुर्सी बची रह सकती थी, उनका पाँवर यथावत रह सकता था, नहीं तो फिर अर्श से फर्श में आने में समय नहीं लगने बाला था और ऐसा वो कभी होने नहीं देते। क्योंकि" पाँवर और कुर्सी जाने के बाद तो एक तरह से उनका अस्तित्व ही मिटने लगता। विरोधी तो बस इसी ताक में थे कि" कब वे किसी मामले में फंसे और उनकी लुटिया डुबो दी जाए, उनका अस्तित्व मिटा दिया जाए।
बीतता समय और बीतते समय के साथ ही वेगवान होते विचार। रात धीरे-धीरे आगे की ओर बढता जा रहा था और उसी गति से उनके मन की चिन्ता भी बढती जा रही थी। तभी तो ठेहूना भर पानी में वो कार को बस अंदाजा से दौड़ाए जा रहे थे। बस इसी सोच के साथ कि" पुजारी को साथ में लेकर सीधे वकील के पास चले जाएंगे। इधर उन्होंने मुहम्मद काजी को फोन कर दिया था और काजी ने कहा था कि, वह सीधे वकील के पास ही पहुंच जाएगा। मंत्री भानु शाली इसी विचार के साथ कार ड्राइव कर रहे थे, तभी उनकी तंद्रा टूटी, क्योंकि कार पुजारी के घर के सामने पहुंच चुकी थी। फिर तो उन्होंने पुजारी को साथ लिया और अपने लक्ष्य के लिए निकल पड़े।
फिर से वही सफर, पीछे की ओर छूटता बहुमंजिला इमारतों का काफिला और आगे की ओर भागती कार। बीतते समय के साथ ही सड़क का पानी अब धीरे-धीरे कम होने लगा था, जिस कारण से मंत्री साहब को ड्राइव करने में सुविधा की अनुभूति होने लगा था। किन्तु, जगतपति, उसके दिमाग में तो इस समय कई बातें थी, कई विचार थे। वह मंत्री साहब से बात करने के लिए उत्सुक था, परन्तु.... मंत्री साहब को चुप्पी साधे देखकर बेचैन हो रहा था। कहां तो वह इस उम्मीद के साथ कार में बैठा था कि" मंत्री साहब से सामने आए हुए मुश्किल पर चर्चा करेगा और कहां तो मंत्री साहब बात करने के मुड में ही नहीं थे। तभी तो कार मुक्ता निवास पहुंच गई, तब तक मंत्री साहब ने अपने जुबान को नहीं खोला। फिर तो....मुक्ता निवास पहुंचते ही मंत्री साहब ने कार पार्क की और जगतपति के साथ बिल्डिंग की ओर बढे।
और हाँल में कदम रखते ही उन दोनों की नजर वकील दिगंबर के साथ बैठे हुए मुहम्मद काजी पर गई। तो क्या उसने पहले ही आकर वकील को सब कुछ बतला दिया?....वकील के साथ बैठे हुए काजी को देखकर मंत्री साहब के मन में पहला प्रश्न उठा। खैर" जो भी होगा, सामने आ ही जाएगा, यही सोचकर मंत्री साहब जगतपति के साथ आगे बढे और सोफे पर बैठ गए। हाँल में जलती हुई मध्यम सफेद रोशनी, जिसके उजाले में हाँल शीशे की तरह चमक रहा था, क्योंकि उसकी सजावट बेहतरीन ढंग से की गई थी। किन्तु, मंत्री साहब हाँल की सुंदरता देखने नहीं आए थे, अपितु उन्हें तो वकील साहब से काम था। तभी तो उन्होंने अपनी सवालिया नजर वकील के चेहरे पर टिका दी।
वकील दिगंबर, उम्र यही पचपन के करीब, लेकिन उनके शरीर की बनावट ही ऐसी थी कि" उम्र से कम लग रहे थे। लंबा और गोरा चेहरा, नीली आँख और हिप्पी कट बाल और लंबी गर्दन, उसपर गढा हुआ शरीर। वकील दिगंबर का व्यक्तित्व काफी आकर्षक था। साथ ही बोली भी मधुर थी, विचार भी मधुर थे, किन्तु, मक्कारी कोई उनसे सीखे। वकील के सभी गुणों से परिपूर्ण ऐसे वकील दिगंबर। इस समय अपनी नीली आँखों से आने बाले आगंतुक को देखा और उसे समझते देर नहीं लगी कि" मंत्री साहब के आँखों में प्रश्न है। परन्तु किस बात के लिए?...यही तो उसे मालूम नहीं था, तभी तो मंत्री साहब से मुखातिब होकर बोला।
क्या हुआ मंत्री साहब?....आप इस तरह से मुझे देख रहे है, जैसे कि" आपके आँखों में कोई प्रश्न छिपा हुआ हो। वकील ने कहा और नजर मंत्री साहब के चेहरे पर टिका दी , जबकि उसकी बातें खतम होते ही मंत्री साहब व्याकुल होकर बोले।
तो क्या आपको काजी ने कुछ नहीं बतलाया?
नहीं तो, काजी ने मुझे कुछ नहीं बतलाया। मंत्री साहब की बाते सुनते ही वकील ने प्रतिक्रिया दी।
जबकि, उसकी बातें खतम होते ही मंत्री साहब उसे बतलाने लगे कि" किस प्रकार से बीता हुआ समय उसके सामने आकर खड़ा हो गया है। फिर तो एक-एक करके उसने दिगंबर को बतला दिया कि, किस प्रकार से "रज्जो" उसके लिए मुसीबत बनने जा रही है। वकील साहब को जहां भी एरर लगा, उन्होंने टोका। फिर तो जब मंत्री साहब ने अपनी बात पूरी की, उन्होंने वकील के चेहरे पर नजर टिका दिया। परन्तु....उनकी बातें सुनते के बाद जैसे वकील उलझ सा गया था। उसे कुछ समझ ही तो नहीं आ रहा था, ऐसे में मंत्री साहब के प्रश्नों का क्या जबाव दे, यही तो उसे समझ नहीं आ रहा था। परन्तु...... चुप्पी साधे रहने से भी तो काम नहीं चलने बाला था।
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क्रमशः-