दिन के दस बजने बाले थे, किन्तु सलिल को अभी तक कहीं सफलता नहीं मिली थी। रजौली" ने जितने भी पते बतलाए थे, उन तमाम जगहों पर अब तक छापामारी की गई थी। परन्तु....वे तमाम जगह, जहां दूर-दूर तक भी संभावना नहीं थी कि" कानून के विरूद्ध वहां पर काम किया जाता हो। अब ऐसे ही नहीं किसी पर हाथ डाला जा सकता था, क्योंकि रजौली का बयान एक दिन पहले ही तो गलत हुआ था, इसलिये सिर्फ उसके बयान पर ही कोई कदम उठा ले, सलिल इस प्रकार के भूल नहीं कर सकता था। क्योंकि, इसमें रिश्क और बदनामी दोनों था।
सलिल ने इस दरमियान रोमील एवं राम माधवन से भी फोन कर के पुछ लिया था। परन्तु.... दोनों ने भी यही बतलाया था कि" सफलता अभी नहीं मिला है। तभी तो सलिल ने तय कर लिया कि" अब व्यर्थ समय बिताने के बदले पुलिस स्टेशन लौट जाया जाए। उसमें भी, जब से उसकी बात शांतनु देव से हुई थी, उसकी इच्छा अति तीव्र हो चुकी थी कि" पुलिस स्टेशन लौटा जाए। परन्तु, इससे पहले एस. पी. साहब के पास जाकर रिपोर्टिंग भी तो करना था। इसलिये उसने कार पुलिस मूख्यालय को दौड़ा दिया इस विचार के साथ कि" शांतनु देव आखिर किस कारण से आया होगा?
वैसे भी, सलिल के मन में पहले से ही विचार था कि" वो शांतनु देव से मिले और ताजा उत्पन्न हुए हालात से उसे अवगत करवाए। इसलिये वो अपना समय निकाल कर हाँस्पिटल जाने ही बाला था। किन्तु" अचानक ही शांतनु देव पुलिस स्टेशन पहुंच चुका था और इतना काफी था सलिल का टेंशन बढाने के लिए। उसे जिसकी उम्मीद नहीं थी, वही हुआ था। अचानक ही शांतनु देव हाँस्पिटल से निकल कर पुलिस स्टेशन पहुंच गया था। तो स्वाभाविक ही था कि" उसके मन मस्तिष्क में प्रश्न का तूफान उठे कि" आखिर क्या हुआ होगा?....... प्रश्न इसलिये भी गंभीर था कि, परसो ही तो शांतनु देव घायल हुआ था। इस परिस्थिति में तो उसे हाँस्पिटल के बेड पर होना चाहिए था। फिर आखिर ऐसा क्या घटित हुआ होगा कि" हाँस्पिटल के बेड को छोड़ कर वो सीधा उससे मिलने के लिए दौड़कर पुलिस स्टेशन आ गया।
इन्हीं प्रश्नों में उलझे हुए सलिल ने कार के इंजन को श्टार्ट किया और आगे बढा दिया। फिर तो कार दिल्ली की सड़क पर सरपट दौड़ने लगी। परन्तु उसके मन के विचार....जो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे और इसलिये सलिल विकल हुआ जा रहा था। बात कोई और समय या किसी और की होती, सलिल इस तरह से परेशान तो नहीं होता। परन्तु....एक तो रजौली के द्वारा दिए जा रहे उलझे बयान और शांतनु देव का इस तरह से आना, सलिल सचमुच उलझ चुका था। यह सच है कि" व्यक्ति जब कहीं विचारों के जाले में उलझ जाता है, उसकी बुद्धि कुंद हो जाती है। फिर तो वह निर्णय ही नहीं ले पाता कि" उसे करना क्या है। वह उलझन के जालों में अपने अस्तित्व को ही उलझाने लगता है। वह एक प्रश्न हल करने को मनोमंथन करता है और उसके दिमाग में अनेकों प्रश्न जन्म लेने लगते है।
तभी तो सलिल बार-बार ड्राइव करने में भूल कर रहा था, जिस कारण से कार बार- बार सड़क पर लहरा जाती थी। फिर अचानक ही वो संभलता था और अपना ध्यान ड्राइव पर केंद्रित कर देता था। परन्तु फिर से वही गलती,....फिर से कार का सड़क पर लहर उठना। सलिल की इच्छा हुई कि" कार को सड़क किनारे खड़ी कर के दो पल के लिए मन को शांत कर ले। नहीं-नहीं, फिलहाल तो वो ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि उसे अभी बहुत काम निपटाने है। सलिल ने खुद से कहा और फिर से ड्राइव में तल्लीन हो गया और आखिर कार पुलिस मूख्यालय का गेट आते ही अंदर ले लिया। फिर तो वो एस. पी साहब के पास पहुंच कर ताजा हालात के बारे में बतलाने लगा। उसने एस. पी. साहब को बतलाया कि" किस प्रकार से रजौली के द्वारा दिया गया बयान गलत हो चुका है। फिर जब वो रिपोर्ट देकर फ्री हुआ, एस. पी. साहब से चलने के लिए अनुमति मांगा। परन्तु....उसकी बात सुनकर एक पल के लिए एस. पी. साहब सोच में डुब गए, फिर वे भी उसके साथ पुलिस स्टेशन चलने के लिए तैयार हो गए।
इसके बाद तो सलिल एक बार फिर से ड्राइविंग शीट पर विराजमान हो गया और कार सड़क पर दौड़ने लगी। परन्तु....इस दरमियान बगल में बैठे एस. पी. साहब ने चुप्पी साध ली और उनके इस तरह मौन धारण कर लेने से सलिल और भी विकल हो गया। क्योंकि वो चाहता था कि" एस. पी. साहब बोले, जिससे उसका ध्यान बटे। सलिल अपने मन में ग्रसित हो चुके विचारों से त्रस्त हो चुका था। उसकी इच्छा यही थी कि" एस. पी. साहब कोई भी बात बोले, वह फिर बात चीत की शुरुआत कर देगा, जिससे कि" सफर आसानी से कट जाएगी। परन्तु एस. पी. साहब के मौन धारण कर लेने से जैसे उसकी इच्छाओं पर तुषारापात हुआ हो।
स्वाभाविक ही है, जब आप किसी के साथ हो, परन्तु फिर भी बीच में चुप्पी पसरी हुई हो, बस हृदय में अकेले पन की फिलिंग आने लगती है। तभी तो, कार में एस. पी. साहब के मौजूद होने के बाद भी सलिल खुद को अकेला महसूस कर रहा था, बिल्कुल तनहा। किन्तु" इस तरह हिया हारने से भी तो काम नहीं चलने बाला था। तभी तो उसने अपने मन को समझाया और ड्राइव पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करने लगा। इधर एस. पी. साहब भले ही मौन थे, परन्तु ऐसा भी नहीं था कि" वे सलिल के मन स्थिति से अनभिज्ञ थे। उन्हें भली प्रकार से इस बात का एहसास था कि" सलिल बात करने के मुड में है। परन्तु....एस. पी. साहब की ही इच्छा नहीं थी इस समय बात करने की। वे तो मौन रह कर वर्तमान में चल रहे परिस्थिति का आकलन करना चाहते थे। वैसे, वे भी रजौली" नाम के चरित्र पर आकर उलझ गए थे। शुरु- शुरु में तो उन्हें यही लगा था कि" रजौली आतंकवादी है और उसके बयानों की खाना पूर्ति करने के बाद बस वे अपने जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे। परन्तु....ऐसा हुआ नहीं और उलटे वे रजौली के व्यक्तित्व पर ही आकर उलझ कर रह गए।
अभी एस. पी. साहब के विचार का घोड़ा और भी दौड़ता, परन्तु....कार पुलिस स्टेशन पहुंच चुकी थी। तभी तो सलिल ने कार प्रांगण में खड़ी की और फिर एस. पी. साहब के साथ अंदर की ओर बढा। अंदर हाँल में रोमील एवं राम माधवन शांतनु देव के साथ बात करने में उलझा हुआ था। ऐसे में सलिल पर शांतनु देव की नजर खड़ी और सलिल ने उसको देखा, परिणाम दोनों की नजर टकराई और सलिल ने शांतनु देव को इशारा किया कि" वो आँफिस में पहुंचे। फिर एस. पी. साहब के साथ आगे बढ गया। फिर क्या था, शांतनु देव भी उनके पीछे लपका और जब आँफिस में पहुंचा। सलिल एवं एस. पी. साहब बैठे हुए थे, परन्तु....उनकी नजर गेट पर ही टिकी थी, मानो कि" उसका ही इंतजार कर रहे हो। तभी तो उसने आँफिस में कदम रखा और सलिल अधीर हो कर उसकी आँखों में देखने लगा। जबकि शांतनु देव आगे बढा, उसने कुर्सी संभाल ली और बैठ भी गया, परन्तु बोला कुछ नहीं। तभी आँफिस में राम माधवन ने कदम रखा और सलिल ने उसे निर्देशित किया कि” रजौली को टाँर्चर रूम में लेकर आए। आदेश सुनते ही राम माधवन उलटे पांव लौट गया। इसके बाद फिर से सलिल ने शांतनु देव पर नजर टिका दी। मानो यहां आने का उद्देश्य पुछ रहा हो, परन्तु बोला कुछ नहीं। ऐसे में आँफिस में सन्नाटा पसर गया।
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क्रमश:-