अपार्ट मेंट के अंदर हाँल में कुमाऊ रंजन सोफे पर अकड़ूँ बैठा हुआ था, परन्तु.....उसकी नजर टी. बी स्क्रीन पर ही चिपकी हुई थी। टी. बी. स्क्रीन पर चल रहा एंटरटेंनमेंट, लगता था कि, कुमाऊ रंजन तन्मयता से देख रहा हो। किन्तु" ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। कुमाऊ रंजन बार-बार अपने पैरो के अंगूठे को खुजला रहा था और चेहरे के हाव- भाव इस तरह से बना रहा था, जैसे कि" उसको बहुत आनंद आ रहा हो। जबकि, किचन में मौजूद राम माधवन पकौड़ियां तल रहा था। कहने को तो वो पकौड़ी तल रहा था, किन्तु" उसके चेहरे पर उभड़े तनाव को स्पष्ट महसूस किया जा सकता था। तनाव होता भी क्यों नहीं?. इस पागल के सुरक्षा की जिम्मेदारी जो सिर पर थी। हां, बाँस का सख्त आदेश था कि" कुमाऊ रंजन की देखभाल अच्छे से की जाए। तभी तो रोमील अभी पुलिस स्टेशन गया था और अब उसके सिर पर इस पागल की जिम्मेदारी थी। नहीं तो, उसका बस चलता तो, कब का कुमाऊ रंजन को भगा चुका होता।
कुमाऊ रंजन की हरकत भी अजीब सी थी। वह बार-बार अलग-अलग चीजों को खाने की फरमाइश करता था और अभी भी यही बात थी। तभी तो राम माधवन को पकौड़ियां तलने आना पड़ा था। ऐसे में बिंदास स्वभाव का राम माधवन चिढ चुका था। अगर बाँस के हुक्म की बात नहीं होती, तो अब तक उसने इस खूसट पागल कुमाऊ रंजन को सबक सीखा दिया होता। खैर, उसके मन की स्थिति उस जुआरी की तरह हो रही थी, जो सर्वस्व जुआ में हार चुका हो। स्वाभाविक ही था, इस तरह से किसी की सेवा हजूरी में जुटे रहना, वह भी एक पागल के, उसके स्वभाव के विपरीत था। परन्तु....कहते है न कि, मरता क्या नहीं करता।
तभी तो, पकौड़ियां तैयार होते ही प्लेट में रख कर उसने हाँल में कदम रखा और उसकी नजर गेट से प्रवेश कर रहे शांतनु देव और सलिल पर गई। हाश!....अब शांति मिलेगी। राम माधवन सुकून सा महसूस करता हुआ अपने-आप से बोला। तब तक तो सलिल एवं शांतनु देव कुमाऊ रंजन के करीब आकर बैठ चुके थे। वह भी तो पकौड़ी के प्लेट लेकर उसके करीब पहुंच चुका था और अब उसके सामने टेबुल पर रखा। फिर तो उसके प्लेट रखने की देर थी कि" कुमाऊ रंजन पकौड़ियों पर टूट पड़ा और अपने दोनों हाथ से उठा-उठा कर मुंह में ठूंसने लगा। जबकि शांतनु देव ने जब से हाँल में कदम रखा था, उसकी नजर कुमाऊ रंजन पर ही टिकी हुई थी।
हां, शांतनु देव की आँखों में आश्चर्य के भाव थे और वो गहरी नजरों से कुमाऊ रंजन को ही देखे जा रहा था। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि" प्रसिद्ध स्टेज आर्टिस्ट एवं विख्यात लेखक उसके सामने बैठा हुआ है, वह भी इस हालत में। जबकि सलिल, वह तो बस कुमाऊ रंजन को खाते हुए देख रहा था, बस गहरी नजरों से। साथ में मन में इस विचार को भी मथता हुआ कि" समय की गति कितनी न्यारी है। समय किसी का मोहताज नहीं होता, बल्कि पूरी दुनिया इसकी मोहताज है। यह पलक झपकते ही किसी को राई से पर्वत तो किसी को पर्वत से राई बना सकता है। बस मानव समय के आते हुए पदचाप को समझ नहीं पाता। नहीं तो, वह कभी ऐसी गलती नहीं करता, जिससे कि" उसका पतन अवश्यंभावी हो जाए। परन्तु....कुमाऊ रंजन के साथ क्या हुआ होगा? यह प्रश्न ही तो था सलिल के लिए। अभी वो इस संदर्भ में और भी सोचता, तभी शांतनु ने उसे टोका।
यार सलिल!....अगर मैं गलत नहीं हूं, तो यह कुमाऊ रंजन है। महान स्टेज आर्टिस्ट और उपन्यासकार?...... शांतनु देव ने पुछा और नजर सलिल पर टिका दी। जबकि उसकी बातें सुनकर एक पल के लिए सलिल सोचने लगा, फिर निर्णय पर पहुंचता हुआ बोला।
हां शांतनु!.....तुम सही सोच रहे हो। ये कुमाऊ रंजन ही है, परन्तु फिलहाल तो ऐसा लगता है कि" ये अपने अस्तित्व को भूल चुके है। बोलने के बाद एक पल के लिए रुका सलिल, फिर आगे बोला। यार शांतनु!...कल शाम को जब मैं तुम्हारे पास से लौट रहा था, तो इन्हें भीख मांगते हुए देखा और साथ ले आया।
तो तुम्हें इनको इनके परिवार के हवाले कर देना चाहिए था। सलिल की बात सुनते ही शांतनु देव बीच में तपाक से बोल पड़ा। जबकि, उसकी बातों को सुनकर सलिल धीरे से बोला।
यार शांतनु!....अगर मुझे इनके परिवार के बारे में जानकारी होती, तो तुम्हें लगता है कि" अभी तक ये यहां मौजूद होते। बोलने के बाद रुका सलिल, फिर आगे बोला। परन्तु....जल्द ही इनके बारे में अखबार में इश्तहार दूंगा। सलिल ने कहा और अभी वो आगे भी बोलता, लेकिन तभी राम माधवन किचन से काँफी का कप संभाले हुए आ गया। तभी तो वे लोग काँफी पीने में व्यस्त हो गए। किन्तु" शांतनु देव के दिमाग में विचार चल रहा था, तभी तो वो काँफी पीते हुए बोला।
यार सलिल!....मेरे विचार से हम लोगों को आज किसी वियर बार में चलना चाहिए और चाहो तो, कुमाऊ रंजन को भी साथ ले लेते है। शांतनु देव ने कहा और सलिल के चेहरे को देखने लगा। जबकि सलिल एक पल विचार करने के बाद बोला।
बात तो तुम सही करते हो।.....परन्तु, मैं चाहता हूं कि अभी पुलिस स्टेशन चलूं पहले। फिर तो शाम होने में अभी बहुत समय बाकी है।
सलिल ने कहा और शांतनु देव ने सहमति जता दी। फिर तो, काँफी खतम होने के बाद वे लोग बाहर निकले। राम माधवन ने ड्राइविंग शीट संभाल ली, जबकि कुमाऊ रंजन को उसके बगल में बिठाया गया और सलिल एवं शांतनु देव पीछे बैठ गए। फिर तो कार सरपट सड़क पर दौड़ने लगी और करीब तीन बजे पुलिस स्टेशन पहुंच गई। इसके बाद तो सलिल ने आँफिस में पहुंचते ही रोमील को निर्देशित किया कि" रजौली को टाँर्चर रूम में तैयार रखे। फिर तो वे लोग आँफिस में नहीं रुके, क्योंकि" उनका आगे का प्लान भी बन चुका था। तभी तो वे लोग टाँर्चर रूम में पहुंचे। हलांकि , कुमाऊ रंजन को वे साथ लेकर आए हुए थे, इसलिये इस समय भी कुमाऊ रंजन उनके साथ था।
तभी तो, कुमाऊ रंजन की नजर रजौली पर गई और रजौली ने उसे देखा। दोनों के आँखों में आश्चर्य की अधिकता बहुत थी। फिर तो, अचानक ही कुमाऊ रंजन चीखने- चिल्लाने लगा। रज्जो-रज्जो" वह इतने तीव्र स्वर में इस शब्द को उच्चारित कर रहा था कि" एक पल के लिए किसी को भी समझ नहीं आया कि" अचानक ही टाँर्चर रूम में कदम रखने के साथ ही कुमाऊ रंजन को क्या हो गया?.....जबकि" अचानक ही चिल्लाते - चिल्लाते कुमाऊ रंजन पर दौड़े पड़ने लगे। उसके पूरे शरीर से पसीना छलकने लगा और अचानक ही वह बेहोश होकर धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ा। तभी तो, अचानक ही उसे इस तरह से गिरते देखकर वे सभी चौंके, खास कर सलिल एवं शांतनु देव।
उन्हें तो उम्मीद नहीं थी कि" इस प्रकार की घटना भी घट सकती है। अभी तो उन्हें कुछ भी समझ नहीं आया था, तभी रोमील दौड़ा और उसने कुमाऊ रंजन को संभाल लिया। जबकि, सलिल एवं शांतनु देव की नजर "रजौली" पर अचानक ही गई और उनके आश्चर्य में इजाफा हुआ। उन दोनों ने देखा कि, रजौली एकटक ही कुमाऊ रंजन के चेहरे को देख रही थी। उसे इस तरह से कुमाऊ रंजन को देखते पाकर उन दोनों को समझ ही नहीं आया कि" आखिर बात क्या है?..... परन्तु, अभी इन बातों को सोचने का समय नहीं था, अभी तो कुमाऊ रंजन को प्राथमिक उपचार की जरूरत थी। इसलिये रजौली के पास राम माधवन को छोड़ कर वे लोग कुमाऊ रंजन को लेकर बाहर निकले। फिर तो उनकी कार हाँस्पिटल के लिए निकली।
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क्रमशः-