उसकी मासूमियत पर हम जां निसार कर बैठे
एक हसीन कातिल से यूं बरबस प्यार कर बैठे
होठों पे उसके खिलती है मुस्कान की क्यारियां
शोख अदाओं पे "हरि" दिल गुलजार कर बैठे
मासूम चेहरे के पीछे की साजिशें जान नहीं पाये
एक कुशल शिकारी को कभी पहचान नहीं पाये
तीर ए निगाहों के वार से घायल है ये बेचारा दिल
दिल के दुश्मन से दिल लगा बैठे ये मान नहीं पाये
श्री हरि
13.9.22