सुबह सुबह गरमा गरम
एक प्याली चाय की चुस्कियां
कुछ कुछ वैसी ही होती हैं
जैसी कि तुम्हारे चेहरे पर
अठखेलियाँ करती हुईं एक मुस्कान
जो तरोताजा कर देती हैं
मेरा तन, मन, जीवन ।
तब दिल दिमाग के दरवाजे
और खिड़कियां खुलने लगते हैं
शरारतें करने के नये नये
तरीके सूझने लगते हैं ।
कितनी समानताएं हैं ना दोनों में
एक, नींद भगाती है
तो दूसरी, होश उड़ाती है ।
एक आलस्य, थकान दूर करती है
तो दूसरी दिल में प्यार की गागर भरती है ।
ये मुस्कान तब और भी गहरी हो जाती है
जब तुम नशीली आंखों से गहरे घाव देती हो
दोनों की मॉकटेल क्या गुल खिलाते हैं
ये बस, मेरा दिल ही जानता है
बेचारा, सुबह सुबह ही
घायल होकर तड़पने लगता है ।
जब तक तुम्हारे स्पर्श की डोज ना मिले
इस बेचैन दिल को चैन कहाँ से मिले ?
तुम्हारी बांहों का हार "नाश्ते" का काम करता है
जिस दिन तुम्हारा आलिंगन मिल जाता है
उस दिन जैसे बहारें आ जाती है ।
तुम्हारे हाथ की बनी हुई चाय
जब तुम अपने मीठे लबों से छुआकर
उसे शरबती बना देती हो
तो मैं अमर हो जाता हूं ।
चाय की चुस्कियां और ये मुस्कान
मुझे चुस्त, दुरुस्त और तंदुरुस्त रखती हैं
और तुम्हारे बदन की महक ?
मेरे जीने का एक वही तो सहारा है ।
हरि शंकर गोयल "हरि"
19.4.22