वो जब जब भी मुस्कुराती है
दिल पर छुरियां सी चल जाती हैं
दिल घायल हो कराह उठता है
और वो, फिर से मुस्कुरा जाती है ।
इस तरह सितम करती है वो
कि आह तक भरने नहीं देती
कभी कंटीले नैनों से बेधती है
कभी छबीली चाल जीने नहीं देती
हम तो उसके इश्क में गिरफ्त हैं
शायद वो हमें कत्ल कर ही देगी
मगर उम्मीद है कि नशीले नयनों के
जाम पिला पिला के जिंदा भी कर देगी
हम आंखों से पीकर जिंदा हो ही रहे थे
कि उनकी अंगड़ाई ने ये काम कर दिया
भरी महफिल में कत्ल ओ गारद मचाकर
सारे आशिकों का जीना हराम कर दिया
एक खास अहसास लेकर जिंदा तो हैं
लेकिन जीने का सामान उनके पास है
कहने को अब हमारा अपना कुछ नहीं
अब तो हमारा दिल भी उन्हीं के पास है ।
हरि शंकर गोयल "हरि"
14.4.22