बड़ी मस्त मस्त एक हसीना थी
बड़ी खूबसूरत जैसे नगीना थी
छू लो तो छुइमुई सी मुरझा जाये
जरा सी धूप से वह कुम्हला जाये
बात बात पर हाय, ऐसे शरमाए
जैसे पूनम का चांद बदली में जाए
हवा की तरह मस्त उड़ती रहती थी
तितली की तरह यहां वहां बैठती थी
ओस की बूंदों की तरह नाजुक थी
आंखें बड़ी तीखी जैसे चाबुक थीं
खुशबू की तरह सबके दिल में बसी थी
फूल सी कोमल थी नाजों में पली थी
किसी दीवाने से उसके नैन टकरा गये
दिन का चैन रातों की नीदें उड़ा गये
तब से वह खोई खोई सी रहने लगी
रह रहकर गर्म आहें वह भरने लगी
सोते जागते बस उसी का खयाल था
दिल के हाथों मजबूर थी बुरा हाल था
पता नहीं था कि इश्क ऐसे तड़पाता है
ना सुकून मिलता है ना करार आता है
पर इस तड़पन का भी एक मजा है
इश्क तो जीवन भर की एक सजा है
उसकी एक झलक पाने को बेकरार थी
बांहों में समा जाने की उसे दरकार थी
दिल की दुआ एक दिन आखिर रंग लाई
उसी छैला से हो गई हसीना की सगाई
नदी को सागर मिला सागर को किनारा
इश्क मुकम्मल हो तो जीने का मजा है यारा
श्री हरि
27.7.22