एक दिन वो
दबे पांव चुपके चुपके से आई
मेरी आंखों पर अपनी
नाजुक हथेलियां रखकर बोली
"पहचानो कौन ? कहां से आई" ?
मैं उसके प्यार में गहरे उतर गया
उसका कोमल स्पर्श पा पिघल गया
कहने लगा "तुम्हें देखने के लिए
आंखों की नहीं दिल की जरूरत होती है
ये आंखें तुम्हें देखते जगती हैं
और देखते हुए ही सोती हैं
तुम्हारी खुशबू दूर से ही तुम्हारा
अहसास करा देती है
दिल की धड़कनें
तुम्हारे कदमों की चाप से
स्वत: बढ़ जाती हैं ।
उदास सा वातावरण खुद ब खुद
बहार बनने लगता है
हृदय तुम्हारे स्वागत में
कालीन सा बिछने लगता है ।
बाहें बच्चों की तरह बेताब होकर
मचल मचल जाती हैं
शायद इन्हें भी तुम्हारे आने की
कहीं से भनक लग जाती है ।
दूर कहीं मंदिर में आरती होती है
तब ऐसा लगता है कि
सारी कायनात भी
हमारे मिलन से खुश होती है ।
क्या अभी और कुछ जानना बाकी है" ?
उसकी हथेलियां आंखों से खिसक कर
मेरे होठों पर आ गई
उसके लबों पर फिर से
वही कातिल मुस्कान छा गई
इसने ही तो मेरा सुख चैन छीना है
अब उसके बिना एक पल भी नहीं जीना है
उसने मुझे कुछ भी बोलने नहीं दिया
और खुद , आंखों से सब कुछ कह गई
और अपना हाथ मेरे दिल पे रखकर
मेरी धड़कनें पढ़ गई ।
खामोशी भी एक जुबान है
जो इश्क में सबसे ज्यादा बोली जाती है
ये प्रेम की बातें
मतलबी दुनिया को कहां समझ आती हैं ।
प्रेमियों की दुनिया अलग ही होती है
एक दूजे का दिल ही उनकी
असली दुनिया होती है ।
"आओ जाना, चलते हैं वहां
दिल की बातें सुनने वाले
लोग रहते हों जहां "।
और वो मुझे ले उड़ी आनंद लोक में
दूर बहुत दूर ।
जी चाहता है कि हम
ऐसे ही उड़ते रहें
जनम जनम हर जनम ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
29.3.22