यह सवैया आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व लिखा गया था । आज मैं अपने पुराने कागज ढूंढ रहा था तो एक कागज पर यह लिखा हुआ मिला । मुझे बड़ा अच्छा लगा कि 30 साल पहले भी कभी कभी मैं कुछ लिख लेता था । यह सवैया आप सबके लिए यहां प्रस्तुत है ।
सवैया
तेरे इन नैनन में अटक्यो है दिल मेरो
खटक्यो है मदभरी अंखियन को कजरा
डूब गयो सरस, सुगंधित, सुवास बिच
खुल गयो जब तेरे गेसुअन को गजरा
चटक्यो चटाचट चट्ट कड़क्यो कालजो
रसीली रसीले लब खुले जब जरा जरा
कौन बिधि कहूँ कैसी गति भई "हरि" की
कामिनी सरक गयो जब तेरो अंचरा
हरिशंकर गोयल "हरि"
27.3.22